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अचारी मिर्च की खेती एवं उत्पादन तकनीक

Written by Vijay Gaderi

मिर्च की खेती मसाला, अचार, सब्जी एवं अन्य रूपों में प्रयोग हेतु की जाती है। (भंरवा मिर्च) अचारी मिर्च (Achari Chillies) की खेती मुख्य रूप से अचार, सब्जी एवं अन्य उत्पाद बनाने में होता है।

अचारी मिर्च की खेती

अचारी मिर्च की खेती पूर्वांचल में 1478 से कृषक कर रहे है परन्तु स्थानीय प्रजाति का ही अधिकतर प्रयोग करते है। कुछ उन्नतशील प्रजातियों का विकास होने से उत्पादन में वृद्धि हो रही है। पूर्वान्चल (उत्तरप्रदेश) के जनपद अम्बेडकरनगर तथा आजमगढ़ में अचारी मिर्च खेती आय प्राप्त करने का अच्छा साधन है।

जलवायु:-

अचारी मिर्च गर्म तर जलवायु की फसल है परन्तु पाले से प्रभावित होती है। गर्म एवं आद्र जलवायु इसकी बढ़वार के लिए नितांत आवश्यक है परन्तु फल पकते समय शुष्क मौसम का होना आवश्यक है। इसकी खेती के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है।

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अचारी मिर्च की उन्नत किस्में:-

अब तक (भंरवा) अचारी मिर्च की उन्नतशील प्रजातियां बहुत ज्यादा विकसित नहीं हुई है इसलिए स्थानीय किस्में ही प्रचलित है। इसमें ए-36 व ए-8 है। टी. एस.-1 एक उन्नत किस्म विकसित की गई है। जिससे उत्पादन तथा कृषि आय में आशातीत वृद्धि हुई है।

ए-36:-

यह अचार की उपयुक्त किस्म है, पौधे बौने किस्म के तथा शीघ्र पकने वाली किस्म है। पके फल लाल रंग के होते है। लाल फल 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदा होते है।

ए-8:-

यह भी अचारी मिर्च की किस्म है। इसके पौधे ऊंचाई में अधिक बढ़ते है तथा फल देरी से पकते है। फल की लम्बाई 6-8 से.मी. तथा मोटा 1.8 से 2.0 से.मी. तथा पकने पर चमकीले लाल रंग के होते है। इसकी उपज क्षमता 100-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर लाल पके फल प्राप्त होते है।

टी. एस. – 1:-

यह अचारी मिर्च की नवीनतम विकसित प्रजाति है। इसकी क्षमता उचित परिस्थितियों में 90-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

भूमि:-

अचारी मिर्च की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्ठी  जिसमे जीवांश भरपूर मात्रा में उपलब्ध हो उपयुक्त होती है। क्षारीय भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। 20 टन गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट पहली जुताई के बाद भूमि में अछि प्रकार से मिलानी चाहिए।

बुवाई का समय:-

(भंरवा) अचारी मिर्च की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई समय से करनी चाहिए। पौधशाला में बीज जून-जुलाई तथा रोपण जुलाई-अगस्त में करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतू में बुवाई के लिए इसकी पौधशाला में बुवाई मार्च-अप्रैल तथा रोपण 30-35 दिन बाद किया जा सकता है। ग्रीष्म ऋतू में सिंचाई की जल्दी आवश्यकता होती है।

बीज की मात्रा:-

एक हेक्टेयर खेत में अचारी मिर्च की रोपाई के लिए 700-800 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। बीज को बोन से पूर्व थाइरम नामक दवा से उपचारित करना चाहीए।

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नर्सरी तैयार करना:-

मिर्च के बीज सर्वप्रथम पौधशाला में बुवाई कर पपोड़ तैयार करनी की जाती है। उचित आकार एवं आयु के पौधे हो जाने पर लगभग 25-30 की अवस्था पर रोपाई करनी चाहिए। नर्सरी हेतु अच्छे जल निकास वाली ऊँची भूमियों का प्रयोग करना चाहिए। एक हेक्टेयर की रोपाई हेतु 7 मी. x 0.75 मी. x 0.20 मीटर की आकार की 15 क्यारिया बना लेते है।

क्यारियों के मध्य 1 फीट चौड़ी नाली बनाते है जो जल निकास तथा खपतवार नियंत्रण के काम आती है। इसके बाद इन क्यारियों के ऊपर मृदा मिश्रण (सम्मान अनुपात में मिली अच्छी प्रकार छनी हुई पकी गोबर की खाद + मोती बालू) की 3 इंच मोटी पर्त (लगभग 60 किग्रा. मृदा मिश्रण प्रतिक्यारी) बिछा देते है।

मृदा का निजर्मीकरण:-

इसके पश्चात मृदा सौर्यन विधि या रसायन विधि द्वारा मृदा का निजर्मीकरण कर देते है-

मृदा सौर्यन विधि:-

इस विधि में क्यारियाँ तैयार करने के पश्चात् इसे नम करते है तथा उसे 200 गेज मोटी पारदर्शी पॉलीथिन शीट से 8-10 सप्ताह के लिए ढक देते है। यह विधि गर्मियों में उपयुक्त है।

रसायन विधि:-

इस विधि में 40% व्यवसायिक फार्मेल्डिहाइड को 25 मिली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर तैयार कैरियों में मृदा मिश्रण को अच्छी तरह से नम करके पॉलीथिन शीट से ढककर वायुरोधित कर देते है। 10-12 दिन में मृदा पूर्णतया निजर्मीकृत हो जाता है। बुवाई के 4 दिन पूर्व पॉलीथिन हटाकर हलकी गुड़ाई कर गैस बाहर निकल जाने देते है। यदि मिट्ठी का मृदा मिश्रण का निजर्मीकरण न हो पाया हो तो थाइरम फफूंदीनाशक का प्रति वर्ग मीटर 5-6 ग्राम मृदा मिश्रण में मिला देते है।

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बुवाई एवं सिंचाई:-

उपचारित क्यारियों  में 4 घंटे पूर्व पानी में भिगोये गए बीजों को लाइनों में 5 सेमि. दुरी पर 1.0 से.मी. की गहराई पर बुवाई कर मिश्रण को ढक देते है। बुवाई के पश्चात क्यारियों को सुखी पत्तियों से ढककर समय-समय पर आवश्यकतानुसार फुहारे/हजारे से सिंचाई करते है। बीजों के अंकुरण के पश्चात पुआल को हटा देते है।

पौधों की देखभाल:-

अच्छे सख्त व मजबूत पौधे तैयार के लिए 50 ग्राम डी. ए. पी. प्रति वर्ग मीटर की दर से क्यारियों में मिलाना अच्छा रहता है। पौध को आद्र गलन रोग से बचाने के लिए 5-6 दिन के अन्तराल पर क्यारियों में केप्टान 0.2% अथवा कार्बेंडाजिम 0.1 घोल का छिड़काव करना चाहिए। बीज शैया में बीज की बुवाई 25-30 दिन बाद जब पौधों की ऊंचाई 15 से.मी. तथा उनमें 3-4 पत्तियां निकल जाती है।

अच्छी पौध तैयार  करने के लिए वर्षा ऋतू में तैयार की जा रही पौध को विषजनित रोगों से (माहु/सफेद मक्खी) से बचाने हेतु नर्सरी को लोटनल पॉलीहाऊस में जिसमें एग्रोनेट भी लगा हुआ हो उगना चाहिए।

रोपण एवं दुरी:-

जहां तक हो सके पौधे की रोपाई सांयकाल ही करनी चाहिए। साफ मौसम या तेज धुप के समय रोपाई करने से पौधे अच्छी प्रकार अपनी वृद्धि नहीं कर पाते है। नई रोपाई के उपरांत हल्की सिंचाई करनी चाहिए। साधारण तोर पर से.मी. की दुरी पर या से.मी. की दुरी पर रोपाई करनी चाहिए। 15 अगस्त से 15 सितंबर तक रोपाई अवश्य कर देना चाहिए।

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खाद एवं उर्वरक:-

अच्छी उपज के लिए 250 से 300 क्विंटल पाकी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर मिला दे और तत्व के रूप में 100-110 किग्रा. फॉस्फोरस एवं 50 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। नत्रजन दो बार में रोपाई के 30 व 45 दिन बाद कड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। पौध रोपाई के बाद तुरंत हल्की सिंचाई करना चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिए। खेत में नमी के अधिक उतार चढ़ाव से फूल गिरने लगते है।

अधिकाधिक उपज प्राप्त करने के लिए आवश्यक है की भूमि एक समान नमी बनी रहे। अचारी मिर्च में सिंचाई वर्षा, भूमि, तापमान एवं आद्रता के आधार पर निर्भर करती है। वर्षा कम होने पर 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। अचारी मिर्च की फसल खेत में जल ठहराव से अत्यधिक प्रभावित होती है।

खरपतवार नियंत्रण एवं मिट्टी चढ़ाना:-

वर्षा ऋतु में अचारी मिर्च के खेत में अनेकों प्रकार के खरपतवार उग आते है। अतः समय-समय पर निराई करते रहना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डामेथिलीन 30 ई.सी. रसायन की 30 ली. मात्रा को 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई पूर्व खेत में छिड़काव करने से खरपतवार नष्ट हो जाती है।

फलों की तुड़ाई:-

अचारी मिर्च की टी.एस.-1 किस्म से प्रति हेक्टेयर 90-100 क्विंटल लाल पके फल प्राप्त होते है। अचारी मिर्च 7 महीने की फसल होती है। फलों की तुड़ाई के बाद फलों की ग्रेडिंग करनी चाहिए तथा गणि बेग या प्लास्टिक की क्रेट में भर कर फलों को बाजार में भेजा जाता है। फलतः रोपाई के 60 दिन में प्राप्त होने लगते है।

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अचारी मिर्च में लगने वाले प्रमुख रोग:-

डेम्पिंग ऑफ (आद्र गलन):-

फफूंदी जनित यह रोग प्रमुख रूप से नर्सरी अवस्था में लगता है। प्रभावित पौधशाला में बीजों का जमाव कम होता है और जमने के बाद पौधों का सतह से लगा तना पतला हो जाता है और बाद में बिर्लीगत होकर गिर जाता है। पौधे सड़ने लगते है। अधिक नमी और गर्म भूमि में रोग तेजी से बढ़ता है।

उपचार:-
  1. नर्सरी में बुवाई से पूर्व बीजों को कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज अथवा थाइरम 3 ग्राम/किग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
  2. नर्सरी की भूमि अथवा बेड की थाइरम 6 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से शोधित करने से इस रोग का प्रकोप कम होता है।
  3. इसके अतिरक्त फफूंदीनाशक दवा जैसे थाइरम, या कैप्टान 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से भी रोग का प्रकोप कम होता है। भूमि शोधन एवं उचित जल निकास से रोग नियंत्रण में रहता है।

मोजेक चितकबरा तथा पत्ती कुंचन (लीफ कर्ल):-

यह रोग वाइरस से उत्पन होता है। मोजेक में पत्तियों में चितकबरापन आ जाता है और पाटिया सिकुड़कर कोढ़ग्रस्त एवं मोटी हो जाती  है। लीफ कर्ल रोग  में पौधे हरे ही रहते है पर उनमे एक और मुड़ जाने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

इसमें पौधे की पत्तियां बहुत ही छोटी हो जाती है और एक स्थान पर गुचे के रूप में एकत्रित हो जाती है। जिसमे पौधे झाड़ीनुमा लगने लगते है। मोजेक का प्रसार माहु तथा लीफ कर्ल बेमेसिया टेक्साइ नामक छोटी सफ़ेद मक्खी द्वारा होता है।

उपचार:-
  1. रोगी पौधे को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। इससे रोग प्रसार को कम किया जा सकता है।
  2. अचारी मिर्च की फसल दर फसल आने से पहले 10-15 दिन के अन्तराल पर मेलाथियान 50 ई. सी. 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इससे छोटी सफेद मक्खी और माहु का नियंत्रण हो जाता है।

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