आम खेती की उन्नत खेती एवं तकनीक, हमारे देश में उगाये जाने वाले फलों में आम सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसका फल विटामिन ‘ए’ तथा सी का श्रेष्ठ स्रोत है। ताजा फल के उपयोग के अलावा इसका उपयोग अचार अमचूर, चटनी, स्क्वेश तथा मुरब्बा आदि उत्पाद बनाने में भी उपयोग किया जाता है।
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जलवायु एवं भूमि:-
आम की उचित बढ़वार एवं फलन के लिये जीवांशयुक्त गहरी बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो, उपयुक्त रहती है। ऐसी भूमि जिसके 2 मीटर गहराई तक अवरोध न हो आम उत्पादन के लिये अच्छी रहती है।
भूमि का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 होना आम उत्पादन के लिये उत्तम रहता है। चूनायुक्त कंकरीली पथरीली व ऊसर भूमि इसकी खेती के लिये अनुपयुक्त रहती है।
आम की उन्नत किस्में:-
केसर :-
फल मध्यम आकार के सुगन्ध युक्त, गूदा रेशे रहित रंग केसरिया लिए हुए होता है। पूर्ण विकसित वृक्ष से औसतन 100 किग्रा. फल प्रति वृक्ष प्राप्त हो जाते हैं। इसके फल भी जुलाई में पकते है।
दशहरी :-
फल आकार में छोटे से मध्यम आकार के होते है। इनका छिलका मोटा व पीला, गूदा पीला व रेशे रहित होता है। अच्छी मिठास (18° ब्रिक्स) वाली इस फल की गुठली पतली होती है। प्रति वृक्ष 80-100 किग्रा. फल फलन वर्ष में प्राप्त होते हैं।
लंगड़ा :-
यह मध्यम आकार का होता है। इसका छिलका मोटा, चिकना व हरा, गूदा पीला, मिठा सुगन्ध युक्त होता है। इसकी गुठली मध्यम आकार की होती है एवं फल जुलाई में पकता है। प्रति वृक्ष औसतन 95 किग्रा. फल प्राप्त होते हैं।
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मल्लिका:-
नीलम तथा दशहरी के संकरण से बनी हुई नियमित फलन वाली यह किस्म
जुलाई में फल देती है। हर वर्ष औसतन 82 किग्रा. तक फल उपज मिलती है जिनमें
औसत फल वजन 262 ग्राम होता है।
आम्रपाली :-
यह किस्म दशहरी तथा नीलम के संकरण से तैयार की गई है यह हर साल फल देती है तथा सघन बागवानी हेतु उपयुक्त है तथा प्रति वृक्ष मल्लिका की तरह 82 किग्रा तक उपज प्राप्त होती है परन्तु फलो का वजन 90-350 ग्राम तक पाया जाता है।
अन्य किस्मों में समर बहिस्त, चौसा फजली, पूसा अरूणिमा, पूसा सूर्या, पूसा लालिमा, पूसा श्रेष्ठा, पूसा प्रतिभा व पूसा पीताबर किस्में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली तथा अम्बिका व अरूणिका, सी.आई.एस.एच. लखनऊ से प्राप्त कर सकते हैं।
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पदोन्नति:-
आम को बीज व वानस्पतिक विधियों द्वारा प्रवर्धित किया जा सकता है। अच्छे गुणों वाले इच्छित पौधे तैयार करने के लिए वानस्पतिक विधियों का ही प्रयोग किया जाता है।
इन विधियों में इनाचिंग, वीनियर ग्राफ्टिंग, सॉफ्टवुड़ ग्राफ्टिंग एवं स्टोन ग्राफ्टिंग प्रमुख है।
पौधे लगाने की विधि:-
उन्नत विधियों द्वारा प्रवर्धित किये गये पौधों को वर्षा ऋतु (जुलाई से सितम्बर) में रोपण किया जाना चाहिए। भूमि को समतल कर मई माह में 1X1X1 मीटर आकार के गढ्ढे 10 X10 या 8 X 8 मीटर की दूरी पर खोदकर उन्हें 20 से 25 दिन खुला छोड देवें।
प्रत्येक गढ्ढे में 25 किलो सड़ी हुयी गोबर की खाद, एक किलोग्राम सुपर फॉस्फेट तथा 100 ग्राम मिथाइल पैराथियान (2 प्रतिशत) चूर्ण मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गढ्ढा भर देवें संकर किस्म आम्रपाली को 2.5 2.5 मीटर दूरी पर लगाया जाता है।
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खाद एवं उर्वरक:-
आम की उचित बढवार के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद, उर्वरक एवं अन्य पोषक तत्वों का प्रयोग आवश्यक होता है। अधोलिखित तालिका के अनुसार आम के वृक्षों में खाद व उर्वरक (मात्रा किग्रा. प्रति वृक्ष) देनी चाहिए।
खाद व उर्वरक | प्रथम वर्ष | द्वितीय वर्ष | तृतीय वर्ष | चतुर्थ वर्ष | पंचम वर्ष बाद में | देने का समय |
गोबर की खाद | 15 | 30 | 45 | 60 | 75 | दिसम्बर |
सुपर फॉस्फेट | 0.25 | 0.50 | 0.75 | 1.00 | 1.00 | जनवरी |
म्यूरेट ऑफ पोटाश | – | – | – | 0.25 | 0.50 | जनवरी |
यूरिया
| 0.25 | 0.50 | 0.75 | 1.00 | 1.25 | आधा भाग फूल आने के बाद (मार्च) व शेष जून |
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गोबर की खाद को दिसम्बर तथा सुपर फास्फेट व म्यूरेट आफ पोटाश को जनवरी माह में देना चाहिए जबकि नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने के बाद (मार्च) व शेष आधी मात्रा जून माह में देनी चाहिए।
जस्ते की कमी होने पर 0.3 प्रतिशत जिंक सल्फेट के तीन छिड़काव पुष्पन के पश्चात् करना चाहिए।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई:-
आम के बाग में वर्षा ऋतु को छोड़कर गर्मियों में प्रति सप्ताह तथा शीत ऋतु में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिये परन्तु नये लगाये गये पौधों को (बरसात छोडकर) 3-4 दिन के अन्तराल पर सींचना चाहिए।
फल बनते समय भूमि में पर्याप्त नमी होना आवश्यक होता है परन्तु फूल आने से फल बनने तक सिंचाई नही करनी चाहिए।
आम के बगीचों को खरपतवारों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए व भूमि की उर्वराशक्ति बनायें रखने के लिए निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
आम के बगीचों में प्रतिवर्ष 2-3 जुताई करके खरपतवार रहित कर देना उपयुक्त रहता है।
पौध संरक्षण:-
कीट प्रबंध:-
आम की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले विभिन्न कीटों में निम्नलिखित कीट प्रमुख है
मिली बग :-
यह कीट आम की मुलायम टहनियों, पुष्पक्रम तथा छोटे फलों के डण्ठलों पर एकत्रित होकर रस चूसते हैं। इसके निदान के लिए दिसम्बर माह में खेत की जुताई करें।
कीट को वृक्षों के ऊपर चढ़ने से रोकने के लिए पेड़ के चारों ओर पोलीथीन की 30-40 सेमी चौड़ी पट्टी जमीन से 60 सेमी. की ऊँचाई पर तने के चारों तरफ लगाकर इसके निचले भाग में 15-20 सेमी तक ग्रीस का लेप कर देवें।
इसका नियन्त्रण कीटनाशी इमेडाक्लोरपिड 1 मिली प्रति 3 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
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आम का फुदका:-
आम का फुदका यह भूरे रंग का बहुत ही छोटा कीट होता है व आम के फूल, छोटे फल तथा नई वृद्धि का रस चूसता है जिससे पुष्पक्रम एवं छोटे फलों को काफी नुकसान होता है। फल मुरझाकर गिर जाते हैं तथा उपज घट जाती है।
इसके नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
छाल भक्षक कीट:-
छाल भक्षक कीट यह कीट आम की छाल में घुसकर छाल को खाता है। तने एव शाखाओं में सुरंग बना कर वृक्ष को खोखला बना देता है। इसके नियंत्रण हेतु रूई को पेट्रोल या केरोसीन में भिगोकर कीट की सुरंगों के अन्दर भर देना चाहिए तथा ऊपर से मिट्टी लगा देवें।
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व्याधि प्रबंध:-
आम की फसल को प्रभावित करने वाली निम्नलिखित व्याधियाँ प्रमुख है
चूर्णी फफूंद:-
चूर्णी फफूंद यह रोग ओडियम मेन्जीफेरी नामक कवक से होता है। इस रोग से प्रभावित टहनियों, पत्तियों व पुष्पक्रमों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है तथा अधिक प्रकोप की अवस्था में पुष्प व पत्तियाँ गिर जाती है।
इसके नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक 25 ग्राम या कैराथेन 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर दो बार (15 दिन अन्तराल) छिड़काव करना चाहिए।
श्यामवर्ण:-
इस रोग से प्रभावित पत्तियों पर भूरे व काले फफोलेनुमा धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्तियाँ गिरने लगती है।
इसके नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मेन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें तथा रोग ग्रस्त टहनियों व पत्तियों को काट कर नष्ट कर देवें।
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कार्यिकीय विकार (फिजियोलोजिकल डिसआर्डर):-
पुष्पशीर्ष विकृति (मेंगों मालफोर्मेशन) या गुच्छा-मुच्छा रोग: इस रोग से प्रभावित पत्तियाँ एवं पुष्पक्रम गुच्छों के रूप में परिवर्तित हो जाते है व पौधे की बढ़वार रूक जाती है तथा उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अभी तक इस रोग के स्पष्ट कारणों का पता नही चल सका है,
परन्तु इसके प्रभाव को कम करने के लिए रोगी भाग को नष्ट करने के साथ 200 पी.पी.एम. अल्फा-नेपथेलीन एसीटिक अम्ल (एन.ए.ए) 4 मिली. प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव सितम्बर-अक्टूबर माह में करना चाहियें तथा शीघ्र आने वाले (अगेती) पुष्पक्रमों को तोड़ देना चाहिए।
ब्लैक टिप:-
ब्लैक टिप यह व्याधि आम के उन बगीचों में पाई जाती है जो ईंट के भट्टों के दो किलोमीटर के क्षेत्र में हो। इससे बचाव के लिये आम के बाग ईंट के भट्टों से दूर लगाये तथा भट्टों की चिमनियाँ ऊँची होनी चाहिये। बोरेक्स रसायन का 0.6 प्रतिशत (6 ग्रा. प्रति लीटर) की दर से छिड़काव 15 के दिन अंतराल पर फलन के बाद करना हितकर रहता है।
तुड़ाई एवं उपज:-
फलों का रंग जब हल्का हरे से पीलापन लिए होने लगे तब सावधानी पूर्वक डंठल के साथ तोड़े। आम के एक वयस्क पौधे से 80 से 100 किलोग्राम फल प्राप्त हो जाते है।
वैसे पैदावार पेड़ की उम्र, किस्म तथा बगीचे की देखभाल पर भी निर्भर करती है। परिपक्व फल पकाने हेतु इथरल 500 पी.पी.एम. (0.5 मिली. प्रति लीटर) के घोल में 2 मिनट डुबोकर उसके पानी को सुखाकर पेंकिग करने से 3 से 4 दिन में फल पककर तैयार हो जाते हैं।
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