एरोपोनिक… एक ऐसी पद्धति, जिसका उपयोग करने वाले किसानों को आलू की फसल के लिए जमीन मिट्टी की जरुरत नहीं होगी। हवा में ये खेती की जा सकेगी और आलू के विभिन्न किस्म के बीज तैयार किए जा सकेंगे। एरोपोनिक तकनीक की यूनिट के लिए मध्यप्रदेश सरकार के उद्यानिकी विभाग और इसे तैयार करने वाली एग्रोनोवेट इंडिया लिमिटेड के बीच दिल्ली के कृषि भवन में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व प्रदेश के उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाह की मौजूदगी में करार होगा। जिसके बाद प्रदेश की पहली यूनिट ग्वालियर में स्थापित किए जाने का काम शुरू होगा और प्रदेशभर के किसानों को यहां से विभिन्न किस्म के आलू बीज तथा एरोपोनिक तकनीक साझा की जाएगी।
उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाह ने बताया कि एरोपोनिक तकनीक का उपयोग आलू बीज ट्यूबर के उत्पादन के लिए होगा। जिनसे मिलने वाले पौधों को किसान बिना मिट्टी के भी फसल में उपयोग कर सकेंगे और इस तकनीक से फसल का उत्पादन भी 10 से 12 प्रतिशत बढ़ेगा, जिससे किसानों की लागत कम व आमदनी ज्यादा होगी।
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आलू की डिमांड बढ़ी, मगर उत्पादन नहीं
देश में आलू उत्पादन के क्षेत्र में मप्र का विशिष्ट स्थान है, लेकिन मांग के अनुरूप यहाँ उत्पादन नहीं हो पा रहा। ज्यादातर किसान पारंपरिक स्त्रातों से ही बीज लेते हैं। नतीजतन, किसानों को उनकी मेहनत के अनुरूप उत्पादन नहीं मिलता, लेकिन एरोपोनिक तकनीक से किसानों की ये समस्या खत्म हो जाएगी।
ऐसे होती है एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती
इसकी खेती पॉली हाउस में की जाती है। इसमें आलू के पौधे ऊपर की तरफ होते हैं और उनकी जड़ें नीचे अंधेरे में टंगी रहती हैं। नीचे की तरफ पानी के फव्वारे लगे होते हैं, जिससे पानी पौधे को दिया जाता है और फव्वारे के पानी में न्यूट्रिएटस मिलाया जाता है। इससे पौधे को नीचे से पोषक तत्व दिए जाते हैं और ऊपर से धूप। जिससे पौधे का विकास अच्छा होता है।
दूसरे देशों में भी मध्यप्रदेश के आलू की मांग बढ़ी
मप्र के आलू की क्वालिटी अच्छी होने के कारण इसकी मांग मिडिल ईस्ट, साउथ इंस्ट एशिया, मलेशिया आदि देशों में बढ़ी है। एरोपोनिक यूनिट चालू होने के बाद आलू के बीज एवं उत्पादन की क्वालिटी और बढ़ेगी।
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