करेले की मचान विधि से उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक - innovativefarmers.in
kheti kisani सब्जियों की खेती

करेले की मचान विधि से उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

करेले की मचान विधि से उन्नत खेती
Written by Bheru Lal Gaderi

करेला एक लता वाली सब्जी है। इसे करेली तथा करेले आदि नामों से भी जाना जाता है। करेले की आरो ही अथवा विसर्पी कोमल लताएं झाड़ियों और बाड़ों परस्वतः अथवा खेत में बोई जाती है।

YouTube player

इनकी पत्तियां 5-7 खंडों में विभक्त, पुष्प पीले होते हैं। स्वाद में कटु (कड़वा) होने पर भीरुचि कर और सुपाच्य शाक के रूप में इसका उपयोग होता है। चिकित्सा में लता या पत्र का उपयोग कफ-पीत-नाश तथा ज्वर, कृमि, रक्तशोधक और वातादि में हितकारी माना जाता है।

Read also – मैड्रिड कीटनाशक कपास में रसचूसक कीट नियंत्रण

जलवायु:-

करेला के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है।करेला अधिक सहित सहन कर लेता है परंतु पालें से हानि होती है।

भूमि:-

इसको विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है।किंतु उचित जलधारण क्षमता वाली जीवांश युक्त हल्की दोमट भूमि इस की सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है।

वैसे उदासीन पी.एच. मान वाली भूमि की खेती के लिए अच्छी रहती है।नदियों के किनारे वाली भूमि करेले की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

कुछ अम्लीय भूमि में इसकी खेती की जासकती है।

Read also – खरपतवार नियंत्रण सोयाबीन की फसल में

खेत की तैयारी:-

पहले खेत को पलेवा करे जब जुताई योग्य हो जाए तब उस की जुताई करें।इसके बाद दो बार कल्टीवेटर अवश्य लगाएं। और प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं।

करेले की प्रजातियां:-

पूसा-2, मौसमी, पूसाविशेष, प्रीति, प्रियंका, कोनकनतारा, कोयंबटूरलॉन्ग, अर्काहरित, कल्याणपुर, बारहमासी, हिसार, सिलेक्शन, सी-16, फैजाबादी बारहमासी, आर.एच.बी.जी.-16, पूसासंकर-1, औरपी.आई.जी.-1

बीज बुवाई व बीज की मात्रा

5 से 7 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। एक स्थान पर से 2 – 3 बीज  2.5 5.0 से.मी. की गहराई पर बोने चाहिए। बीज को बोने से पूर्व 24 घंटे तक पानी में भिगो लेना चाहिए इससे अंकुरण जल्दी, अच्छा होता है।

Read also – ड्रैगन फ्रूट की खेती की पूरी जानकारी

करेले की बुवाई का समय:-

बुवाई का समय 15 फरवरी से 30 फरवरी (ग्रीष्मऋतु) तथा 15 जुलाईसे 30 जुलाई (वर्षाऋतु)

बुवाई की विधि:-

बिजाई दो प्रकार से की जाती है:-

  1. सीधे बीज द्वारा
  2. पौधारोपण द्वारा

Read also – खेती प्लस मिनी अपनाएं, फसलों की जबरदस्त पैदावार बढ़ाएं

खाद एवं उर्वरक:-

करेले की फसल में अच्छी पैदावार लेने के लिए उसमें ऑर्गेनिक खाद, कंपोस्ट खाद का होना अनिवार्य है। इसके लिए हेक्टेयर भूमि में लगभग 40 से 50 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई व 50 किलोग्राम नीम की खली इन को अच्छी तरह से मिलाकर मिश्रण तैयार कर खेत में बोने से पूर्व इस मिश्रण को खेत में समान मात्रा में बिकेर दें इस के बाद इसके बाद खेत की अच्छे तरीके से जुताई करें, खेत तैयार कर बुवाई करें।

जब फसल 25- 30 दिन की हो जाए तब नीम का काढ़ा को गोमूत्र के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर छिड़काव करें। हर 15 दिन के अंतर से छिड़काव करें। या 25 से 30 तक हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद खेतमें बुवाई से 25- 30 दिन पहले तथा बुवाई से पूर्व नालियों में 50 किग्राडी.ए.पी. 50 किग्रा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति हैक्टेयर के हिसाब से जमीन में मिलाएं। बाकि नत्रजन 30 किग्रा यूरिया बुवाई के 20- 25 दिन बाद पुष्पन व फलन की अवस्था में डालें।

सिंचाई:-

करेला की सिंचाई वातावरण, भूमि किस्म आदि पर निर्भर करती है। ग्रीष्मकालीन फसल की सिंचाई 5 दिन के अंतर पर करते रहे, जबकि वर्षाकालीन फसल की सिंचाई वर्षा के ऊपर निर्भर करती है।

Read also – खजूर की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

कटाई- छंटाई एवं सहारा देना मचान बनाना:-

अधिक उपज प्राप्त करने और फलों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए करेला की कटाई- छटाई अति आवश्यक होती है। जैसेकरेला में 3 से 7 घाठ तक सभी शाखाओं को काट देने से गुणवत्ता में वृद्धि हो जाती है।

करेला की सब्जियों में सहारा देना अति आवश्यक है। सहारा देने के लिए लोहे की एंगल या बांस के खम्भे से मचान बनाते हैं। खम्भों के ऊपरी सिरे पर तारबांधकर पौधों को मचान द्वारा चढ़ाया जाता है। सहारा दे नेके लिए दो खम्भों या एंगल के बीच की दूरी 2 मीटर रखते हैं लेकिन फसल केअनुसार अलग-अलग होती हैं। करेला के लिए 4.50 फीट रखते हैं।

Read also – ब्रोकली की उन्नत खेती एवं उन्नत तकनीक

खरपतवार नियंत्रण:-

पौधों के बीच खरपतवार उग आते हैं। उन्हें उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए तथा निराई करके खरपतवार साफ कर देना चाहिए तथा समय- समय पर निराई- गुड़ाई करते रहना चाहिए। पहली जड़ों के आस- पास हल्की मिट्टी चढ़ानी चाहिए।

कीट नियंत्रण:-

लाल कीड़ा:-

पौधों पर दो पत्ती निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है। यह कीट, पत्तियों और फूलों को खाता है।  इस कीट की सुंडी भूमि के अंदर पौधों की जड़ों को काटती है।

रोकथाम:-

कम से कम 40- 50 दि नपुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथउबालें। 7.5 लीटर गोमूत्र शेषरहने पर इसे आग से उतारकर ठंडा करें एवं छान लें। मिश्रण तैयार कर 3 लीटर प्रति पम्प के द्वारा फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

फल की मक्खी:-

यह ,मक्खी फलों में प्रवेश कर जाती है और वहीं पर अंडे देती है।अंडों के बाद में सुंडी निकलती है वे फल को बेकार कर देती है। यह मक्खी विशेष रूप से खरीफ फसल को अधिक हानि पहुंचाती है।

Read also – मिर्च की उन्नत खेती किसानों एवं उत्पादन तकनीक

रोकथाम:-

फल मक्खी की रोकथाम के लिए कम से कम 40- 50 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें। 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 लीटर प्रति पंप के द्वारा फसल में छिड़काव करना चाहिए।

सफेद  ग्रब:-

करेले के पौधों को काफी हानि पहुंचाती हैं। यह भूमि के अंदर रहती हैं और पौधों की जड़ों को खा जाती है। जिसके कारण पौधे सूख जातेहैं।

रोकथाम:-

इसकी रोकथाम के लिए भूमि में नीम की खाद का प्रयोग करें।

चूर्णी फफूंदी:-

यह रोग एरीसाइफीसिकोरेसिएरम नामक फफूंदी के कारण होता है एवं तनु पर सफे ददरदरा और गोलाकार जाला दिखाई देता है जो बाद में आकार में बढ़ जाता है और कत्थई रंग का हो जाता है।पूरी पत्तियां पीली पढ़कर सूख जाती है पौधों की बढ़वार रुक जाती है।

रोकथाम:-

कम से कम 40 से 50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम की धतूरे की पत्तियों को डंठल के साथ उबले। 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान ले।मिश्रण तैयार कर 3 लिटर को प्रति पंप के द्वारा फसल में छिड़काव करना चाहिए।

Read also – ग्वारपाठा की उन्नत खेती एवं फसल सुरक्षा उपाय

एन्थ्रेक्नोज:-

यह रोग कोलेस्टट्रॉइ कम स्पीसीज के कारण होता है।इस रोग के कारण पत्तियों और फलों पर लाल काले धब्बे बन जाते हैं। यह धब्बे बाद में आपस  में मिल जाते हैं।यह रोग बीज द्वारा फैलता है।

रोकथाम:-

बीज को बोने से पूर्व गोमूत्र या नीम के तेल से उपचारित करना चाहिए।

तुड़ाई:-

फलो की तुड़ाई छोटी व कोमल अवस्था में करनी चाहिए। आमतौर पर फल बौ लेने के 60 से 90 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। फल तोड़ने का कार्य 3 दिन के अंतराल पर करते रहें।

उपज:-

करेले की उपज 100 से 120 क्विंटल तक प्रति हेक्टर मिल जाती है।

Read also – जिनसेंग की औषधीय गुणकारी खेती

प्रस्तुति:-

डॉ. बालाजी विक्रम, अध्यापन सहायक,

डॉ.एम.प्रसाद प्रजापत

नरेंद्र कुमार परास्नातक छात्र

उद्यान विभाग, शियाट्स,

इलाहाबा

About the author

Bheru Lal Gaderi

Leave a Reply

%d bloggers like this: