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करौंदा की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

करौंदा-
Written by Bheru Lal Gaderi

करौंदा का पौधा काँटेदार झाड़ीनुमा होने के कारण इसे प्रायः खेतों के चारों और बाड़ के रूप में लगाया जाता है। इस के फल खट्टे एवं स्वादिष्ट होते हैं। जिससे जैली, मुरब्बा, चटनी तथा कैन्डी आदि तैयार की जाती है।

करौंदा-

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जलवायु एवं भूमि:-

करौंदा बहुत ही सहिष्णु पौधा है एवं इसमें सूखे को सहन करने की अत्यधिक क्षमता होती है। इसको सूखी, बंजर, रेतीली, पथरीली भूमि में भी लगाया जा सकता है। पड़ती भूमि में पौधारोपण के लिए यह एक उपयोगी पौधा है।

करौंदा की उन्नत प्रजातियाँ:-

भारतीय प्रजाति (कैरिसा केरेन्डस):-

इसे देशी करौंदा भी कहा जाता है। इसके फल देखने में आकर्षक, छोटे एवं गुलाबी रंग के होते है। औसत उपज 6-7 किलो प्रति झाड़ी होती है। इसके फलों में विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है।

गोविन्द बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर (उत्तराखंड) द्वारा इस फल की पंत सुदर्शन व पंत मनोहर किस्में विकसित की गई हैं।

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अफ्रीकन प्रजाति (कैरिसा ग्रेडिफ्लोरा):-

इस प्रजाति के फल आकार में बड़े व गहरे लाल रंग के होते है। फल स्वाद में मीठे होते है व इनमें विटामिन सी की मात्रा कम होती है। औसत उपज प्रति झाड़ी 3-4 किलोग्राम तक प्राप्त हो जाती है। गृह वाटिका के लिए यह उपयुक्त प्रजाति है।

प्रवर्धन:-

करौंदे के बीजों की जीवन क्षमता बहुत कम होती है। एक वर्ष बाद ये पौधे खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं।

पौध लगाने की विधि:-

पौध रोपण का उपयुक्त समय जुलाई माह है। सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हो तो रोपण फरवरी-मार्च में भी किया जा सकता है। इसकी व्यावसायिक खेती के लिए 3×3 मीटर की दूरी पर 60x60x60 सेमी. आकार के गढ्ढे खोदकर उनमें 15 किलो गोबर की खाद व 50 ग्राम मिथाइल पैराथियॉन (2 प्रतिशत) चूर्ण प्रति गड्ढे की दर से मिलावे एवं 15 दिन बाद पौधारोपण करें। बाड़ के लिए पौधे 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर लगायें।

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खाद एवं उर्वरक:-

अच्छी गुणवत्ता वाली उपज के लिए निम्न तालिकानुसार खाद एवं उर्वरक का उपयोग करें-

खाद व उर्वरक

 

मात्रा प्रति पौधा किलोग्राम में

एक वर्ष

दो वर्षतीन वर्षचार वर्ष

पांच वर्ष के बाद

गोबर की खाद

10

101520

20.00

यूरिया

00.100

0.1000.1000.200

0.200

सुपर फॉस्फेट

0.3000.3000.400

0.400

म्यूरेट ऑफ पोटाश

0.0500.075

0.100

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उपरोक्त खाद एवं उर्वरक फरवरी-मार्च माह में पौधों में देवें।

सिंचाई:-

करौंदे के पौधो को प्रारम्भिक वर्षों में सिंचाई की आवश्यकता होती है व पौधो के स्थापित हो जाने पर उनके पुष्पन एवं फलन के समय ही भूमि में नमी की आवश्यकता रहती हैं।

कीट एवं व्याधि प्रबंध:-

करौदे में किसी प्रकार के विशेष कीट एंव बीमारी का प्रकोप नहीं देखा गया हैं।

तुड़ाई एवं उपज:-

पूर्ण परिपक्व झाड़ी से प्रति वर्ष 4-5 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो जाते है।

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Bheru Lal Gaderi

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