कृत्रिम गर्भाधान द्वारा देशी पशु नस्ल सुधार - innovativefarmers.in
पशुपालन

कृत्रिम गर्भाधान द्वारा देशी पशु नस्ल सुधार

कृत्रिम गर्भाधान
Written by Vijay Gaderi

नर पशु का वीर्य प्राप्त कर के मादा के ऋतू काल में आने पर एक विशेष प्रकार की पिचकारी के द्वारा वीर्य को मादा की जननेद्रियों में पहुंचाना कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) कहलाता है।

कृत्रिम गर्भाधान

हमारे देश में पशुपालक आज भी गाय भैंस पाल रहे हैं, लेकिन सांड के चुनाव पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। आज हमारे पास अच्छी नस्ल के सांड और गाय नहीं। जिसके कारण प्रति पशु दूध उत्पादन बहुत ही कम है। फिर भी नस्ल सुधार पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया और जो भी इसके लिए प्रयास किए गए। जिसके कारण भारत में संकर नस्ल के पशुओं की संख्या और दूध उत्पादन तो बढ़ा लेकिन भारतीय देसी नस्लें आज भी खतरे में है।

देसी नस्लें अपनी पहचान खोती जा रही है। इस समस्या से निपटने के लिए कृत्रिम गर्भाधान की एक सर्वोत्तम उपाय हैं। मादा पशु को उसी नस्ल विशेष के नर पशु से ग्याभिन कराया जाए यह तभी संभव है जब कि उस क्षेत्र में कोई अन्य नस्ल का सांड या नाकारा सांड विध्यमान न हो एवं बधियाकरण कार्यक्रम 100 प्रतिशत लागू किया जाय।

Read Also:- बन्नी भैंस की शारीरिक विशेषताएं एवं पहचान

मादा पशुओं के ऋतू काल में आने के लक्षण:-

पशु बार बार बोलने लग जाता है पशुपालन इसको पशुओं के गर्मी में आने के मुख्य लक्षण मानते हैं पर कईबार पशु दूसरी वजह से ही ऐसा कर सकता है तो पहचानने में सावधानी रखनी चाहिए कि पशु गर्मी वजह से ही बोल रहे हैं या कोई दूसरी वजह है।

पशुओं के गर्मी में आने के कारण गर्भाशय का मुंह खुला हुआ मिलेगा मगर ध्यान रहे कि ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं जिसमें गर्भाशय का मुंह खुला होता है अतः हमें यह पहचान करनी अति आवश्यक है। मादा की योनि से सफेद रंग के द्रव्य का आना जिससे किसी प्रकार की बदबू नहीं आती हो। मादा पशु का बार-बार पेशाब करना और जमीन को बार बार सूंघना व पैरों से जमीन उखाड़ना।

गर्भाधान का उचित समय:-

गर्भाधान का उचित समय मालूम कर लेना बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। इसको मालूम करने के लिए निम्नांकित बातों का पूर्ण ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। मादा पक्षों में मद चक्र 21 दिन का होता है यानी एक बार मद में आने के बाद दुबारा 21 दिन बाद मद में आती है। पशुओं के गर्भाधान कराने का समय प्रायः सभी पशुओं में एक समान नहीं है। मादा पशु को गर्भित कराने का उचित समय मद में आने के कम से कम 10 से 12 घंटे के बाद ही पशु को गर्भित करवाना चाहिए, क्योंकि इस अवधि में पशुओं के गर्भ ठहरने की संभावना अधिक रहती हैं। इसलिए जो पशु मद काल के प्रथम लक्षण यदि साय काल दृष्टिगत करें तो मद में आए पशु को प्रातः काल गर्भाधान करवाना चाहिए।

सामान्यतया पशुओं को प्रातकाल या सायकाल के समय में ही गर्वित करवाना चाहिए। मद काल में एक बार गर्भाधान करने के बजाय 12 घंटे के अंदर से दो बार गर्भाधान करने से गर्भ ठहरने की संभावनाएं कहीं अधिक बढ़ जाती हैं। पशु में मद काल के लक्षण प्रकट होते ही उसे तुरंत निकटवर्ती कृत्रिम गर्भाधान केंद्र पर जाकर गर्भाधान कराना चाहिए। गाय भैंस को ब्याने के बाद 3 महीने में गर्भ धारण करा देना चाहिए।

Read Also:- पशु किसान क्रेडिट कार्ड क्या है?

कृत्रिम गर्भाधान अपनाने के मुख्य उद्देश्य:-

  • अच्छी नस्ल के सांड जो सीमित मात्रा में होते हैं उनसे कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा अधिक संख्या में उत्तम नस्ल के पशु प्राप्त कर सकते हैं।
  • प्राकृतिक रूप से गर्भाधान करवाने पर एक सांड से 1 वर्ष में अधिक से अधिक 70-100 बच्चे पैदा कर सकता है। जबकि कृत्रिम गर्भाधान द्वारा ही सांड एक वर्ष में 2000 तक बच्चे पैदा कर सकता है। अतः इससे क्षेत्र में अच्छी नस्ल के सांडों की कमी का समाधान भी हो सकता है।
  • अच्छी नस्ल के सांडों से एकत्रित किया हुआ वीर्य एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजने के कार्य में लाया जा सकता है।
  • मादा जो लूली-लंगड़ी होने के कारण प्राकृतिक गर्भाधान नहीं कर सकती हैं, वह भी कृत्रिम गर्भाधान से गर्भित की जा सकती है।
  • मादा पशु के हीट में होने पर पशुपालक को सांड की तलाश में गांव-गांव घूमना नहीं पड़ता है।
  • इच्छित गुणों के सांड से गर्भित कराके मनवांछित नस्ल प्राप्त की जा सकती है। कृत्रिम गर्भाधान से दूध उत्पादन बढ़ता है, लागत कम पड़ती है और कृषकों को इससे काफी लाभ होता है।

Read Also:- दूध उत्पादन में शानदार करियर- अनुदान एवं योजनाएं

About the author

Vijay Gaderi

Leave a Reply

%d bloggers like this: