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खजूर की खेती से बदल रही किसानों की तकदीर

खजूर की खेती
Written by Bheru Lal Gaderi

देश में सर्वाधिक गेहूं उत्पादन करने के साथ ही हनुमानगढ़ जिला अब खजूर की खेती में भी हाथ आजमा रहा है। इसकी खेती से अच्छी आमदनी होने के चलते जिले में खजूर उत्पादक किसानों के वारे-न्यारे हो रहे हैं।

खजूर की खेती

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4-5 लाख प्रति हेक्टेयर हो रही आमदनी:-

हनुमानगढ़ जिले की बात करें तो कुल 135 हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है। करीब 50 किसान इसकी खेती कर रहे हैं। वर्तमान में खजूर के पेड़ों पर फूल खिल गए हैं। अगस्त तक फल बाजार में आएंगे। उद्यान विभाग के अधिकारी किसानों को खजूर की संभाल के बारे में लगातार ट्रेनिंग दे रहे हैं।

खारे पानी में खजूर की खेती:-

खजूर के बाग को खारे पानी से भी सिंचित किया जा सकता है। इस पर बरसात व तेज तापमान का ज्यादा असर नहीं होता है। रोग व कीड़े भी इसमें ज्यादा नहीं लगते। एक हैक्टेयर में कुल 156 पौधे लगते हैं। इसमें 148 मादा व आठ पौधे नर के लगते हैं। प्रति पौधा 80 किलो से 160 किलो तक उत्पादन हो रहा है।

दक्षिण में डिमांड:-

गत वर्ष यहां से खजूर बांग्लादेश भी एक्सपोर्ट किया था। दक्षिण के राज्यों में इसकी खूब मांग रहती है। थोक में करीब 70 रुपए प्रति किलो तक किसानों को इसकी कीमत मिल रही है। जिले में लाल व पीले रंग के खजूर की खेती हो रही है। बरही व खुलेजी किस्म के खजूर की खेती के लिए हनुमानगढ़ की आबोहवा को कृषि अधिकारी अनुकूल मान रहे हैं।

करीब एक दशक से खेती कर रहे किसान – विजय सिंह गोदारा बताते हैं कि परंपरागत खेती में गेहूं व कपास की फसल उगाने पर अधिकतम एक लाख रुपए प्रति हैक्टेयर तक आमदनी होती है। लेकिन खजूर से चार लाख रुपए तक आमदनी हो सकती है।

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कुदरती खेती:-

प्रगतिशील किसान विजय गोदारा सिर्फ अपने खेत को संवारने व मुनाफा बटोरने में नहीं लगे, उनका लक्ष्य है कि किसान कुदरती खेती की तरफ लौटकर न केवल उत्पादन लागत में कमी लाए बल्कि जहर मुक्त खेती करें।

गोदारा कहते हैं हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर जिला चूंकि पंजाब से सटा है, यहां के किसान रासायनिक खाद व पेस्टीसाइड का पंजाब के किसानों की तरह अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए उत्पादन तो बढ़ गया, लेकिन रासायनिक खाद व कीटनाशकों से बीमारियां बढ़ गई है।

जैविक खेती:-

अब जरूरत प्राकृतिक अथवा जैविक खेती करने की जरूरत है। दो वर्ष पूर्व जिले के 35 किसानों हमारा कुदरती खेती संस्थान बनाया और रासायनिक खाद व दवाओं का छिड़काव बंद कर दिया। अब वे अगले 5 वर्ष में कम से कम 10 प्रतिशत क्षेत्र को प्राकृतिक खेती की तरफ लाना चाहते हैं।

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8 बीघा से की शुरुआत :-

गोदारा ने इस कड़ी में शुरूआत अपने खेत से की है। अपने 11 एसपीडी के 8 बीघा खेत में की खेती कर रहे हैं। हालांकि उनके पास असिंचित 10 बीघा खेत में खजूर लगे हैं, लेकिन यहां उत्पादन कम मिल रहा है। सिंचित 8 बीघा में खजूर का इस बार रिकॉर्ड उत्पादन होने की उम्मीद है।

खजूर की खेती

लेमनग्रास की मिश्रित खेती:-

खजूर के बाग में लेमनग्रास के जरिए की डबल मुनाफे की खेती, गोदारा ने खजूर के बाग के नीचे लेमनग्रास की बुआई की है। वे स्वयं लेमनग्रास से ग्रीन टी तैयार कर बाजार में बेचते हैं। खेती में नवाचार कर लोगों को प्रेरित कर हैं। गोदारा कृषि विभाग के संपर्क में रहकर देश और राज्य का दौरा कर विभिन्न जानकारी जुटाने में लगे हैं।

कलेक्टर ने देखा फार्म :-

कलेक्टर ने गोदारा से पौधे, माल तैयार करने, बाजार तक बेचने, किसान की बचत के बारे में सारी जानकारी ली। विजय ने बताया कि 60 हजार रुपए प्रति बीघा आमदनी हर वर्ष होती है। जिला कलेक्टर ने मौके पर बरही, खनेजी किस्म की तैयार खजूर का स्वाद चखकर देशी खेती के लिए सराहना की।

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