kheti kisani खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण सोयाबीन की फसल में

खरपतवार नियंत्रण
Written by Bheru Lal Gaderi

नमस्ते किसान भाइयों जब भी हम खरीफ की सीजन विभिन्न तरह की फसल लगाते है जेसे सोयाबीन, मूंगफली, मूंग, उड़द, तुअर आदि। इन फसलों में होने वाले विभिन्न प्रकार की खरपतवार होती है। समय पर इन खरपतवार की नियंत्रण आवश्यक होता है जिससे पोधो की बढ़वार अच्छी हो और विभिन प्रकार की बिमारियों से बचाव किया जा सके एवं साथ ही अच्छी पैदावार ली जा सके ।

खरपतवार नियंत्रण

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चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार :–

इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियाँ प्राय: चौड़ी होती हैं तथा यह मुख्यत: दो बीजपत्रीय पौधे होते हैं।

जैसे महकुंआ (अजेरेटम कोनीजाइडस), जंगली चौलाई (अमरेन्थस बिरिडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अजरेन्सिया), जंगली जूट (कोरकोरस एकुटैंन्गुलस), बन मकोय (फाइ जेलिस मिनिगा), ह्जारदाना (फाइलेन्थस निरुरी) तथा कालादाना (आइपोमिया स्पीसीज), इत्यादि।

सकरी पत्ती वाले खरपतवार :–

घास कुल के खरपतवारों की पत्तियाँ पतली एवं लम्बी होती हैं तथा इन पत्तियों के अंदर समांतर धारियां पाई जाती हैं। यह एक बीज पत्री पौधे होते हैं जैसे सांवक (इकाईनोक्लोआ कोलोना) तथा कोदों (इल्यूसिन इंडिका) इत्यादि।

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मोथा परिवार के खरपतवार:–

इस परिवार के खरपतवारों की पत्तियाँ लंबी तथा तना तीन किनारे वाला ठोस होता है। जड़ों में गांठे (ट्यूबर) पाए जाते हैं जो भोजन इकट्ठा करके नए पौधों को जन्म देने में सहायक होते हैं जैसे मोथा (साइपेरस रोटन्ड्स, साइपेरस) इत्यादि।

हरबीसाइड के फायदे :-

विभिन्न फसलों में रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए जिन रसायनों का प्रयोग किया जाता है उन्हें खरपतवारनाशी (हरबीसाइड) कहते हैं। रसायनिक विधि अपनाने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है।

लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इनका प्रयोग उचित मात्रा में उचित ढंग से तथा उपयुक्त समय पर हो अन्यथा लाभ की बजाय हानि की संभावना रहती है।

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