खरबूजा गर्म जलवायु की फसल है। जिसके लिए दिन का अधिक तापमान, अच्छी धुप तथा कम नमी फल की मिठास के लिए आवश्यक है।कद्दूवर्गीय सब्जियों में खरबूज का प्रमुख स्थान है। खरबूजे का 47% भाग खाने योग्य है। जिसमे विटामिन ए, बी, सी, प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। खरबूजा (कुकुमिसमेलों) हर उम्र के लोगों द्वारा पसंद किया जाता है। क्योंकि यह गर्मी शांत करता है और एक संपूर्ण आहार प्रदान करता है।
खरबूजे की खेती संपूर्ण भारत विशेष रूप से उतरी पश्चिमी भारत में की जाती है। खरबूजे के पके फलों को सभी वर्ग के लोग बड़े चाव से खाते हैं। यह डाइट के प्रति सचेत लोगों के लिए भी बहुत अच्छा होता है।क्योंकि इसमें प्रचुर मात्रा में रेशे और विटामिन आदि तत्व होते हैं तथा इसमें कार्बोहाइड्रेट वसा की मात्रा कम होती है। इस फल में कैल्शियम, फास्फोरस और लौह तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।इसके बीज का उपयोग ग्रीष्मकालीन पेय बनाने तथा मिठाइयों में किया जाता है। इसके बीज खाने योग्य स्वादिष्ट और पोषक होते हैं, क्योंकि उनमें बहुत तेल और ऊर्जा होती है।कब्ज के रोगियों के लिए यह अत्यंत लाभदायक फल है और पौष्टिक आहार है।
जलवायु:-
खरबूजे की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी फसल को पीला से अधिक हानि होती है। बीजों के रोपण के लिए अनुकूल वातावरण 27 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस होता है। वातावरण में गर्मी बढ़ने के साथ पौधे वनस्पति विकास पूरा कर लेते हैं। फुल आने के दौरान धूल भरा वातावरण खासतौर से आंधियां फल की क्षमता कम कर देती है। फसल पकने के दौरान धुपवाला शुष्क मौसम होने पर फल मीठा स्वाद होता है तथा व्यापार के लिए भारी मात्रा में फल उत्पादन होता है। उमस ज्यादा होने से बीमारियां बढ़ती है। खासतौर से बीमारियां पत्तियों पर असर डालती है। फल पकने के समय भूमि में अधिक नमी होने पर फलों की मिठास कम हो जाती है।
Read Also:- आलू की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
भूमि एवं भूमि की तैयारी:-
खरबूजे की खेती नदियों के किनारे वाली रेतीली भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। आमतौर पर रेतीली मिट्टी या दोमट मिट्टी में उगाया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में जल निकासी व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन मध्यम मौसम की फसलों के लिए अच्छी होती है। भरी मिटटी में बेल का विकास अच्छा होता है और फल देर से आता है। नदी के कछारों में, इसकी लम्बी जड़ों की विकास व्यवस्था काम आती है। मिट्टी का जैविक तत्वों से मुक्त और उपजाऊ होना जरूरी शर्त है। नदी के रेतीले कछारों का जलोढ़ स्तर और नदियों की भूमिगत नमी इसकी बढ़त में सहायक होती है।
खरबूजा, अम्लीय मिट्टी के प्रति संवेदनशील होता है। उच्च लवण सघनता वाली क्षारीय मिट्टी इस फसल के लिए उचित नहीं होती है। भूमि का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। भूमि की तैयारी इस प्रकार करें की जमीन को दिसम्बर- जनवरी के महीने में अच्छी तरह जुताई करके गोबर की खाद 25 टन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से मिला देनी चाहिए। फिर खेत में दो बारहल एवं दो बार बखरया डिस्क हैरो चलाकर भूमि को अच्छी तरह भुरभुरी कर लेना चाहिए।
खरबूजा बोने का समय:-
खरबूजे की फसल को उत्तरी भारत तथा उत्तर पश्चिमी भारत में इसको फरवरी के शुरू में बोया जाता है। खरबूजे को दिसंबर से मार्च तक बोया जा सकता है। किंतु मध्य फरवरी का समय सर्वोत्तम रहता है। उत्तरी पश्चिमी राजस्थान में वर्षा ऋतु में मंटीरा/मतीरा किस्म की फसल ली जा सकती है। जबकि पाला पड़ने की संभावना नहीं होती।बुवाई के समय कम तापमान के कारण बीज के उगने में देरी हो सकती है तथा पौधों की बढ़वार कम होगी।
बीज दर:-
खरबूजे की खेती के लिए आमतौर पर सीधी बुवाई के लिए 3 से 4 किलो बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर काफी होती है।लेकिन प्लास्टिक की थैलियों में बुवाई के लिए दोबीज प्रति थैली (लगभग 15 से 20 सेमी लंबा तथा 8 सेमि. चौड़ी थैली) के हिसाब से 500 से 550 ग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर के लिए काफी है।यह थैलिया नीचे से छेद की हुई होनी चाहिए। थैलियों में गोबर की खाद मिट्टी बराबर मात्रा में होनी चाहिए।
Read Also:- एरोपोनिक तकनीक से आलू की खेती
उन्नत बीज:-
खरबुज एवं सब्जी उत्पादकों को अच्छे बीजों की पहचान होती है।क्योंकि वही उच्च और श्रेष्ठ सब्जी खेती के सबसे बेहतर संसाधन होते हैं। खरबूजे की अच्छी और मुनाफा फसल उगाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों के प्रयोग का महत्व समझना जरूरी है, जिसकी बीज के लिए आधुनिक बीज उत्पादन क्षेत्र पूर्णरूप से मशीनीकृत बीज शोधन इकाइयों से युक्त अपनी उत्पादन व्यवस्था है। इससे बीज स्त्रोत से लेकर उत्पादन तक गुणवत्ता पर पूरा नियंत्रण रहता है। इसका उत्पादन और फ़ाइनल परिशोधन प्रशिक्षित वैज्ञानिक श्रम के निरीक्षण में होता है।
फसल चक्र:-
भिंडी- मटर- तरबूज
बैंगन- मटर- तरबूज
मिर्च- तरबूज
टमाटर- फ्रैंकलीन- तरबूज
भिंडी- आलू- खरबूज
सोयाबीन- प्याजकरी- तरबूज
Read Also:- भिंडी की अगेती खेती करें, अधिक लाभ कमाएं
उन्नत प्रजातियां:-
विभिन्न स्थानों पर भिन्न- भिन्न प्रजातियां पाई जाती है। अधिक पैदावार लेने के लिए उन्नत जातियों को ही लगाना चाहिए। जैसे:- अर्काजीत, अर्लीराजहंस, दुर्गापुरमधु, हिसार सारस, एम.एच.-10, पूसा मधुरस, पूसा रसराज, पंजाब रसीली, पूसा शरबती, पंजाब सुनहरी, हरामधु, काशी मधु आदि।
बीजउपचार:-
बीजों को बोने से पहले थाइरम व कार्बेन्डाजिम, थायोफिनेटमिथाइल 2- 3 ग्राम प्रति किलो बीज उपचारित करना चाहिए। बीज को 24- 36 घंटे तक पानी में भिगोकर रखने के बाद बुवाई करने से अच्छा अंकुरण होता है एवं फसल 7-10 दिन पहले आ जाती है।
बोने की विधि:-
उथला गड्ढा विधि:-
इस विधि में 60 सेमी व्यास के 45 सेमी गहरे एवं एक दूसरे से 1.5 से 2.5 मीटर की दूरी पर गड्ढा खोदते हैं। उन्हें 1 सप्ताह तक खुला रखने के बाद खाद एवं उर्वरक मिलाकर भर देते हैं। इसके बाद वृत्ताकार थाला बनाकर उसमें दो से 2.4 सेमी गहरे तीन से चार बीज प्रति थाला बिखेर महीन मृदा या गोबर की खाद से ढक देते हैं। अंकुरण के बाद प्रति थाल दो पौधे छोड़कर शेष उखाड़ देते हैं।
गहरा गड्ढा विधि:-
यह विधि नदी के किनारों पर अपनाई जाती है। इसमें 60 से 50 के 1 से 1.5 मीटर गहरे व एक दूसरे से 1.5 से 2.5 मीटर की दूरी पर बनाए जाते हैं। इसमें सतह से 30- 40 से.मी.की गहराई तक मृदा खाद उर्वरक का मिश्रण भर दिया जाता है। शेष क्रिया उथला विधि अनुसार ही करते हैं। इस विधि में लगभग 2 मीटर चौड़ी एवं जमीन से उठी हुई पट्टियां बनाकर उनके पर 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीज बोते है।
Read Also:- लहसुन व मिर्च की मिश्रित खेती यानि कि डबल मुनाफा
खाद एवं उर्वरक:-
खाद एवं उर्वरकों का उपयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें सामान्यतः गोबर की खाद कंपोस्ट 250 से 400 क्विंटल नत्रजन 125 किलो तथा पोटाश 62 किलो प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है गोबर की खाद पोटाश की पूरी मात्रा को खेत में डाल देना चाहिए।
नत्रजन को बुवाई के 15, 30 और 45 दिन बाद देना चाहिए।नाइट्रोजन उर्वरक सब्जियों मादा विकास और परिपूर्ण पुष्पों के लिए विकास में सहायक होते हैं। नाइट्रोजन का आधिक्य लिंगअनुपात को कम कर देता है।
खेत में बुवाई से पहले 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बोफ्यूरोन मिलाना चाहिए। पहली सिंचाई के बाद केप्टान या कार्बेंडाजिम 2 ग्राम प्रतिलीटर पानी कि दर से जमीन पर छिड़काव करना चाहिए। जिससे फ्यूजेरियम, उखटा रोग की बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
सिंचाई:-
खरबूजा ग्रीष्मऋतु की फसल होने के कारण एवं बलुई दोमट एवं मृदा में उगाई जाने के कारण सिंचाई की कम अंतराल एवं आवश्यकता होती है। नदी के किनारे लगाए गई फसल को पौधों के स्थापित होने तक ही सिंचाई की आवश्यकता होती है।
बाद में सिंचाई की विशेष आवश्यकता नहीं होती हैं। नदियों के किनारे उगी फसल में शुरू में दो-तीन सिंचाईयां घड़े, बाल्टी या ढेकुली, मोटर पंप के माध्यम द्वारा कर देनी चाहिए। नमी को बनाए रखना आवश्यक है। हालांकि फसल पकने के दौरान सिंचाई की निरंतरता को कम किया जाना चाहिए, ताकि मीठे फल आएं।यथा संभव हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। हल्की रेतीली मिट्टी को भरी मिट्टी के मुकाबले जल्दी-जल्दी सिंचाई की जरूरत होती हैं।
खेत में पानी के भराव से बचना चाहिए। खासतौर से फल पकने वाली हो।सुखी गर्मियों में फसल को 5 से 7 दिन के अंतराल में अवश्य करनी चाहिए।
Read Also:- करेले की मचान विधि से उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
खरपतवार एवं निराई-गुड़ाई:-
खरबूजे की लताएं भली-भांति फैलने से पूर्व 2-3 सप्ताह बाद निराई गुड़ाई कर खेत से पूरे खरपतवार निकाल देनी चाहिए। बेले बढ़ने पर खरपतवार की वृद्धि रुक जाती है।निंदानाशक नियंत्रण के लिए एलाक्लोर 50 ई.सी. 2 लीटर सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर या ब्युटाक्लोर 50 ई.सी. 2 लीटर सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बोनी के बाद एवं अंकुरण पूर्व छिड़काव कर मृदा में मिला दे। छिड़काव हेतु 500 लीटर पानी एवं फ्लेट नोजल का उपयोग करें।कीट नियंत्रण
- खरबूजे की फसल में कई प्रकार के कीट आक्रमण करते हैं। जैसेकि:-
- कद्दू का लाल कीड़ा के लिए कार्बोरील 5% डस्ट व डायमेथोएट 30% ई.सी.,
- फलमक्खी के लिए मेलाथियान 50% ई.सी. व प्रोफेनोफोस 40%+ सायपरमेथिन 4%ई.सी.,
- माहु के लिए डायमेथोएट 30% ई.सी.व एसीटामिप्रिड 20% एस.पी.,
- पत्ती सुरंगक के लिए ट्राईफॉस 40% ई.सी. व प्रोफेनोफॉस 50% ई.सी.,
- स्टिक मत्कुण केलिए 10% डब्ल्यूजी व क्लोरोपायरीफोस 20% ई.सी.,
- मकड़ी के लिए इथियान व डायमेथोएट 30% ई.सी., हेक्सीथाएजोल्स 5.44ई.सी. तथा मिल्वेमेक्टिन 1% ई.सी. का खरबूजे की फसल पर छिड़काव करने से सभी प्रकार के किट नियंत्रण किए जा सकते हैं।
रोग नियंत्रण:-
चूर्णिल आसिता, मृदुरोमिल फफूंदी, एंथ्रेक्नोज, बुकनी रोग, पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू, फ्यूजेरियमविल्ट इन सभी रोगों की रोकथाम के लिए कार्बेंडाजिम 500 जी/एस.पी.+ एजॉक्सीस्ट्राबिन 11% + टुबेकोनोजोल + 18.30% डब्ल्यू/ पीडब्ल्यूएससी का छिड़काव करें।
मोजेक रोग के लिए फ्लॉनिकामीड 50% डब्ल्यूजीव 50% डब्ल्यूपी का छिड़काव कर फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से नियंत्रित कर सकते हैं। मृदा में केप्टान 0.3% दवा को मिलाकर छिड़ कदें।
फल तोड़ना और उपज:-
फलों की सही अवस्था में कटाई बहुत महत्वपूर्ण है। आमतौर पर फल बुवाई के 90 से 100 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।यह फल उस समय तोडा जाता है जब वह बेल को थोड़ासा छोड़ देता है तथा फल को थोड़ासा छेड़ने पर ही बेल से अलग हो जाता है।
फल ऊपर से हल्का पीला हो जाता है, अगर फल को दूर दराज की मंडियों में ले जाना होतो फल को उपरोक्त अवस्था के आने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए। अनुशंसित कृषि कार्यमाला के अनुपालन से खरबूज की 200 से 250 क्विंटल हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।
Read Also:- ब्रोकली की उन्नत खेती एवं उन्नत तकनीक