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गन्ने की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

गन्ने की उन्नत खेती
Written by Vijay Gaderi

उन्नत किस्में एवं विशेषतायें:-

सी ओ 419:-

देर से पकने वाली व अधिक उपज देने वाली गन्ने की यह किस्म चिकनी मिट्टी के लिए अधिक उपयुक्त है। इसका गन्ना हल्का बैगनी रंग का होता है। बैंगनी रंग गठान के पास गहरा होता है। इसकी पत्तियां सूखने पर त से आसानी से अलग हो जाती है। इसकी पेड़ी फसल अच्छी नहीं होती। परिपक्वता पर इसके रस में 18 से 19 प्रतिशत तक शर्करा होती है। इसकी उपज 120 टन प्रति हैक्टर होती है। (Sugarcane Farming)

गन्ने की उन्नत खेती

सी ओ 449:-

गन्ने की शीघ्र पकने वाली गुड़ व शक्कर दोनों के लिये उपयुक्त तथा 70-80 टन प्रति टैक्टेयर तक उपज देती है। सूखे की स्थितियां एवं क्षारीय लवणीय भूमि भी यह अच्छी पैदावार देती है। इसका गन्ना हल्का ह होता है। इस किरम की अंकुरण एवं कल्लो की फुटान क्षमता सामान्य होती है। परिपक्वता पर इसके रस में 18 से 17 प्रतिशत शर्करा होती है।

सी ओ 997:-

शीघ्र पकने वाली, गुड़ व शक्कर दोनों के लिए उपयुक्त इस किस्म में लाल सड़न रोग की आशंका रहती है किन्तु कम खाद पानी में भी यह उगाई जा सकती है। इस किस्म से 70-80 टन प्रति हैक्टर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। ज्यादा खाद व पानी देने से इस किस्म के गन्ने खेत में गिर जाते है। इसका गन्ना हल्का बैगनी से हरा रंग लिये होता है। यह किल पेड़ी के लिये उपयुक्त है। परिपक्वता पर इसके रस में 17 से 18 प्रतिशत तक शर्करा होती है।

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सी ओ 527:-

सामान्य मध्यम समय में पकने वाली इस किस्म की उपज 120 टन प्रति हेक्टर होती है। इसकी पेड़ी की अच्छी फसल ली जा सकती है। इस किस्म का गन्ना मोटा सीधा एवं हल्के हरे रंग का होता है। परिपक्वता पर इसके रस में 18 प्रतिशत तक शर्करा होती है।

सी ओ 1007:-

जल भराव एवं भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मध्यम समय में पकने वाली यह किस्म आड़ी नहीं गिरती और इसकी पेड़ी भी अच्छी होती है। सभी परिस्थितियों में उगाये जाने वाली इस किस्म पर कीड़ों का प्रकोप भी कम होता है एवं इसकी उपज 80-100 टन प्रति हेक्टर तक होती है। इस किस्म का गन्ना पतला, हरे रंग का तथा सख्त होता है। गन्ने पर मोम की तह होती है। परिपक्वता पर इसके रस में 17 प्रतिशत तक शर्करा होती है।

सी ओ 77-17:-

अगेती कम पैदावार देने वाली इस किस्म के गन्ने लगभग 2.5 मीटर लम्बे व 2.5 सेन्टीमीटर मोटे, हरे रंग के ठोस व सीधे, अपेक्षाकृत कम चौड़ी पत्तियों वाले होते है। नवम्बर में पकने वाली यह किस्म आडी नहीं गिरती है। इसमें शर्करा की अधिक मात्रा होती हैं जिससे यह किस्म मील के लिए सर्वोत्तम है। सूखा व पाला सहन कर सकने वाली इस किस्म की पेड़ी बहुत अच्छी होती है तथा गुड़ अच्छा बनता है। यह ऐसे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहां लाल सड़न रोग का प्रकोप नहीं पाया जाता है। इसमें पायरिला का प्रकोप भी कम पाया जाता है। इसकी उपज 70 75 टन प्रति हैक्टर एवं इसकी पेड़ी की फसल की उपज 65 टन प्रति हैक्टर होती है इसका गन्ना लोहित हरे रंग का पतला व सीधा होता है। परिपक्वता पर इसके रस में 17 से 18 प्रतिशत तक शर्करा होती है।

सी ओ 8145:-

मध्यम समय में पकने वाली यह किस्म शरद कालीन बुवाई एवं भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसमें कीड़ों का प्रकोप कम होता है व फसल आड़ी नहीं गिरती है। इसकी उपज 85-100 टन प्रति हैक्टर होती है। इसका गन्ना हल्का बैंगनी रंग का होता है इसकी पेडी भी अच्छी होती है। परिपक्वता पर इसके रस में 18 प्रतिशत तक शर्करा होती है।

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सी ओ 86032:-

मध्यम समय में पकने वाली इस किस्म की उपज 80-100 टन प्रति हैक्टर है। यह शरदकालीन बुवाई व भारी मिट्टी के लिये उपयुक्त है।

प्रताप गन्ना- 1 (सीओपीके 05191) (2012):-

यह किस्म 81 टन प्रति हैक्टर गन्ना उपज एवं 9.5 टन व्यावसायिक चीनी उपज देती है तथा इसमें 17.12 प्रतिशत सुक्रोज पाया जाता है। यह किस्म आड़ी गिरने, सूखा सहने, तना गलन, स्मट व उखटा रोग के प्रति सहनशील है। यह किस्म बंसतकालीन में 125 प्रतिशत अनुशंसित उर्वरक (250 75 50 कि.ग्रा. नत्रजन फॉस्फेट : पोटाश प्रति हैक्टर) तथा ग्रीष्मकालीन में (200 6050 कि.ग्रा. नत्रजन : फॉस्फेट : पोटाश प्रति हैक्टर) पर अधिक उपज देती है। इसके अतिरिक्त सीओ पन्त 84136 एवं सीओएल के 8001 किस्मों की भी सिफारिश है।

भूमि की तैयारी:-

गन्ने के लिए दोमट या मध्यम चिकनी मिट्टी, जो क्षारीय न हो तथा जिसमें जल निकास का समुचित प्रबन्ध हो अच्छी रहती है। बुवाई के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना चाहिये। प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा इसके बाद 2-3 जुताई देशी हल से करें। अच्छी तरह जुताई करने के बाद खेत को समतल करने हेतु पाटा अवश्य फेरना चाहिए। विल्ट लगने वाले रोग ग्रस्त खेतों में गन्ना न बोयें ।

बीज व बीज की मात्रा:-

प्रति हैक्टर क्षेत्र में बुवाई के लिये तीन-तीन आंखों वाले लगभग 40 से 45 हजार टुकड़ों की आवश्यकता होती है। इतने टुकड़े गन्ने की मोटाई के अनुसार 60-80 क्विंटल गन्ने से प्राप्त किये जा सकते है।

उपयुक्त किस्मों के रोग व कीट से मुक्त बीज का प्रयोग करें। टुकड़े काटते समय कोई गन्ना अन्दर से लाल दिखाई दे तो बीज के लिए उसका प्रयोग न करें। गन्ने की आंख पूर्ण स्वस्थ होनी चाहिये। जहां तक सम्भव हो गन्ना नर्सरी से ही लें। बीज हेतु गन्ने का ऊपर का आधा हिस्सा काम में लेवें।

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बीजोपचार:-

एक हैक्टर क्षेत्र के बीज के उपचार हेतु बुवाई से पूर्व बीज के टुकड़ों को 250 ग्राम कार्बेन्डाजिम का 250 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें 5 से 10 मिनट तक डुबोयें और उसके बाद ही उन्हें बोने के काम में लें।

बुवाई:-

बसंतकालीन बुवाई:-

बुवाई के लिये मध्य फरवरी से मध्य मार्च तक का समय सर्वोत्तम रहता है। इसके बाद बुवाई करनी हो तो बीज की मात्रा कुछ बढ़ा देनी चाहिये ।

शरदकालीन बुवाई:-

गन्ने की बुवाई अक्टूबर में भी की जा सकती है। इस समय बुवाई के दो लाभ है। गन्ने व शक्कर की उपज बढ़ती है तथा साथ ही गेहूं सरसों एवं प्याज की मिश्रित फसल भी ली जा सकती है। इसके लिये गन्ने की बुवाई 15-20 अक्टूबर तक अवश्य कर देनी चाहिये ।

बुवाई विधि:-

गन्ने की बुवाई सपाट विधि से करनी चाहिये। इसके लिए पलेवा देकर खेत तैयार करने के बाद 75-75 सेन्टीमीटर के फासले पर गहरे कूड निकालें। इन कूड़ों में दीमक आदि कीडों की रोकथाम हेतु कीटनाशी डालकर ऊपर से गन्ने के टुकड़ों को ड्योढ़ा, मिलाकर रख दें और फिर पाटा फेर दें ताकि टुकड़े अच्छी प्रकार मिट्टी से ढक जायें। बुवाई के तीसरे सप्ताह में एक सिंचाई देकर सावधानी से अच्छी गुड़ाई करें, ऐसा करने से मिट्टी की पपड़ी उखड़ जायेगी और अंकुरण अच्छा होगा।

चिकनी मिट्टी वाले क्षेत्रों में जमीन भुरभुरी तैयार नही हो पाती है इसलिये इन क्षेत्रों में सूखी मिट्टी में बुवाई करनी चाहिये। इसके लिये सूखी मिट्टी में 75–90 सेन्टीमीटर की दूरी पर गहरे कूंड निकाल कर उसमें उर्वरक तथा भूमि उपचार हेतु औषधि डालें। इसके बाद गन्ने के टुकड़ों को ड्योढ़ा रख दें, और पाटा लगाकर तुरन्त सिंचाई कर दें

ध्यान रहे कि पहली सिंचाई हल्की और समान होनी चाहिये। जब खेत बाह पर आ जाये तो अच्छी तरह अन्धी गुड़ाई करें। इसके 15-20 दिन बाद दुबारा सिंचाई कर बाह आने पर गुड़ाई करें। इससे अंकुरण अच्छा होगा।

रोपाई हेतु गन्ने की 3-4 अतिरिक्त पंक्तियां बोयें। बुवाई हेतु एक आंख वाले टुकड़े पर्याप्त है। जहां अंकुरण कम हुआ हो, वहां बुवाई के 25-30 दिन बाद रोपाई करें।

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जैविक खाद एवं उर्वरक:-

भूमि की तैयारी के साथ 25-30 टन प्रति हैक्टर कम्पोस्ट अथवा गोबर की खाद बिखेर कर भूमि में मिला देना चाहिये। मृदा परीक्षण की सिफारिश अनुसार उर्वरक देवें। इसके अभाव में सी ओ 419 किस्म में 170 कि.ग्रा. नत्रजन एवं शेष अन्य किस्मों 150 कि.ग्रा. नत्रजन देवें । इसके अतिरिक्त 60 कि.ग्रा. फास्फोरस व 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर देंवे।

नत्रजन की आधी तथा फॉस्फेट एवं पोटाश उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूड़ों में कर कर देवें। शेष आधी नत्रजन 30 जून तक खड़ी फसल में डाल देना चाहिये या नत्रजन की पूरी मात्रा को तीन बराबर भागों में बांटकर बुवाई के समय, फुटान के समय मई में एवं शेष एक तिहाई मात्रा 15 जुलाई तक दे देवें।

सल्फर की कमी से पत्तियां पीली पड़ती हो तो तीन वर्ष में एक बार बुवाई के एक माह पूर्व प्रति हैक्टर 250 कि.ग्रा. जिप्सम या 40 कि.ग्रा. गंधक चूर्ण दें।

शरदकालीन गन्ना + प्याज अन्तःशस्यावर्तन में उर्वरक प्रबन्ध गन्ना प्याज अन्तः शस्यावर्तन में गन्ने की दो कतारों (75 सेन्टीमीटर की दूरी) के मध्य प्याज की 20 सेन्टीमीटर की दूरी पर तीन कतार लगायें। इस अन्तः शस्यावर्तन में दोनों फसलों के लिये उर्वरकों (गन्ना 150 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फासफोरस, 30 कि.ग्रा. पोटाश तथा प्याज के लिये 90 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि. ग्रा. फासफोरस, 90 कि.ग्रा. पोटाश) का साथ साथ प्रयोग करने से अधिक उपज प्राप्त होती है।

सिंचाई:-

10-15 दिन के अन्तर पर वर्षा से पूर्व मिट्टी की किस्म के अनुसार गर्मियों में सिंचाई करें। वर्षा काल में यदि वर्षा न हो तो सिंचाई करनी चाहिये। वर्षा समाप्त होने के बाद फसल की कटाई तक 25-30 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहना चाहिये। इस प्रकार 12-15 सिंचाई गन्ने के लिये पर्याप्त रहती है।

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निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण:-

बुवाई के बाद पहली और दूसरी सिंचाई के पश्चात, गुड़ाई करना बहुत जरूरी है, जिससे गन्ने का अंकुरण भली भांति हो सके। खेत में खरपतवार न रहे इसका ध्यान रखना चाहिये।

खरपतवारों को खरपतवारनाशक रसायनों का छिड़काव करके भी नष्ट किया जा सकता हैं इसके लिये 1.25 कि.ग्रा. एट्राजीन प्रति हैक्टर की दर से 1000 लिटर पानी में घोल कर बुवाई के 3-4 दिन बाद, जब खेत में अच्छी नमी हो छिड़काव करना चाहिये। जहां मिश्रित खेती की गई हो वहां खरपतवारनाशक रसायनों का प्रयोग नहीं करें।

गन्ने के अंकुरण के बाद गन्ने की कटाई से प्राप्त सूखी पत्तियों को खेत में बिछाकर भी खरपतवार – नियन्त्रण किया जा सकता है। इससे खेत में नमी भी अधिक समय तक बनी रहती है और अंकर छेदक का प्रकोप भी कम हो जाता है।

जिन क्षेत्रों में निराई गुड़ाई हेतु मजदूरों की समस्या हो वहां गन्ना और सरसों की अन्तराशस्य पद्धति से की गई खेती में खरपतवार नियन्त्रण हेतु आक्सीफ्लूरफेन 130 ग्राम प्रति हैक्टर की दर से फसल के अंकुरण से पूर्व जब खेत में अच्छी नमी हो तब छिड़काव करें।

गन्ना + प्याज अन्तःशस्थावर्तन में 30 व 60 दिन बाद दो बार हाथ से निराई करने से खरपतवार नियन्त्रित कर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। निराई गुड़ाई हेतु जहां मजदूरों की समस्या हो वहां खरपतवार नियन्त्रण हेतु आक्सीफ्लूरेफेन 150 ग्राम प्रति हैक्टर की दर से 750 लीटर पानी में घोल कर गन्ने के अंकुरण से पूर्व छिड़कने से खरपतवारों का नियन्त्रण किया जा सकता है।

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फसल संरक्षण:-

दीमक नियंत्रण:-

दीमक का प्रकोप दोमट भूमि में शुष्क अवस्थाओं में अधिक होता है। ये नई बोई गई पोरियों के कटे हुये सिरों एवं आंखों को खाती है। तीव्र प्रकोप में 40-60 प्रतिशत अंकुर नष्ट हो जाते है। रोकथाम हेतु निम्न में से कोई एक उपचार करें। पेरियों को नालियों में डालने से पूर्व क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण का 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से भूमि उपचार करें। खड़ी फसल में दीमक नियंत्रण हेतु 4 लीटर क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति हैक्टर सिंचाई के पानी के साथ देवें।

जड़ छेदक, तना छेदक एवं शीर्ष छेदक:-

इनकी रोकथाम के लिये 1 लीटर क्यूनालफॉस 25 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस. एल. प्रति हैक्टर छिड़कें। जल्दी बुवाई करने से जड़ छेदक का प्रकोप कम होता है। कटाई के बाद खेत में डंठल व कचरे को इकट्ठा करके, जला दें। खेत में प्रकाश पाश की सहायता से वयस्क कीड़ों को नष्ट कर इनकी संख्या को कम करना लाभदायक रहता है।

पाइरिला एवं सफेद मक्खी:-

कीटों का प्रकोप मार्च-अप्रैल से -अक्टूबर-नवम्बर तक होता है। रोकथाम हेतु मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से भुरके अथवा कार्बेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.50 किलो ग्राम, या क्यूनालफॉस 25 ई.सी. या डाईमिथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. 1 लीटर, या मैलाथियान 50 ई.सी. 1.87. लीटर (गन्ने की बड़ी फसल के लिये) या मैलाथियान 50 ई.सी. 1.25 लीटर (छोटी फसल के लिये ) प्रति हैक्टर में से किसी एक रसायन का छिड़काव करें।

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टिप्पणी:-

घोल बनाने के लिये पानी की मात्रा छिड़काव करने वाले उपकरण की किस्म एवं फसल की अवस्था पर निर्भर करेगी।

लाल सड़न रोग:-

रोग नियन्त्रण हेतु रोग रहित बीज बोयें। जिस खेत में रोग लगा हो उसमें से स्वस्थ गन्ना काट कर शेष गन्ने में आग लगा दें एवं उस खेत में फिर एक वर्ष तक गन्ना न बोयें। रोग रोधक किस्में जैसे सी. ओ. 419, सी. ओ. 1007 या सी ओ. 449 ही बोयें। रोग ग्रसित खेत से स्वस्थ गन्ने के खेत में पानी न आने दें।

कण्डवा रोग:-

रोग नियन्त्रण हेतु स्वस्थ गन्ने के टुकड़े ही बोयें। रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें। रोनरोधक किस्में जैसे सी ओ 1007 सी ओ 767 एवं सी ओ 448 ही बोयें। पैड़ी फसल न लें। गर्म वायु एवं गर्म जल की उपचार विधि काम में लें।

गन्ने के पत्ते का सफेद पड़ना:-

पत्तों के थोड़ा सा सफेद दिखाई देते ही 1.5 लीटर गंधक के तेजाब का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 15-15 दिन के अन्तर पर छिड़काव दोहरायें। अथवा रोग दिखाई देते ही फेरस सल्फेट 100 ग्राम, टाईट्रिक अम्ल या साईट्रिक अम्ल 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार हर बीसवें दिन छिड़काव करें। यह छिड़काव होने पर बन्द कर दें। इससे पत्तियों का रंग फिर हरा हो जाता है क्योंकि यह रोग पौधों में लौह तत्व की कमी के कारण होता है अथवा जहाँ पर गन्ने का सफेद पड़ा हर वर्ष उग्र रूप से दिखाई पड़ता हो वहां 250 किलो गन्धक या 500 किलो फेरस सल्फेट या जिप्सम ऊमरों में ऊरें। यदि गन्धक का प्रयोग किया जाता है तो उसे बुवाई के 21 दिन पूर्व भूमि में मिलायें।

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मिट्टी चढ़ाना तथा फसल बांधना:-

हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में फसल को गिरने से बचाने तथा देर से फूटने वाले कल्लों को निकलने से रोकने के लिये वर्षा प्रारम्भ होते ही पौधों की जड़ों पर अच्छी तरह मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये। अगस्त-सितम्बर में फसल की बधाई कर देनी चाहिये ताकि फसल ” जिने न पायें। क्योकि फसल गिरने से उपज तथा गन्ने में शक्कर की मात्रा, दोनों कम हो जाती है।

गन्ने की बंधाई अर्ध सूखी पत्तियों की रस्सी बनाकर करनी चाहिये। बंधाई सीधी न करें आमने सामने की कतारों के 3-4 गन्ने के | झुण्ड को पत्तों से तिपाई के रूप में बांधना चाहिये। इससे खड़ी फसल में पायरिला की रोकथाम के लिये दवाई का छिड़काव आसानी से किया जा सकेगा।

गन्ने के साथ मिश्रित फसल:-

अक्टूबर में की गई बुवाई में गेहूं, सरसों एवं प्याज की फसल सफलता से ली जा सकती है। गन्ना 90-100 सेन्टीमीटर के फासले पर बोना चाहिये और गन्ने की 2 पंक्तियों के बीच में गेहूं की 4 पंक्तियां या सरसों की 3 पंक्तियां नवम्बर के दूसरे सप्ताह में, जब गन्ने का अंकुरण हो जाये ।

गेहूं, सरसों व प्याज के लिये, उसी फसल की आवश्यकतानुसार पानी उर्वरक पौध संरक्षण रसायनों की अतिरिक्त मात्रा देवें फरवरी मार्च में बोये गये गन्ने में गर्मी की सब्जियां, जैसे भिण्डी, प्याज, लौकी आदि भी लगाई जा सकती है। गेहूं, सरसों या प्याज की फसल काटने के तुरन्त बाद गन्ने में सिंचाई एवं उर्वरक की अतिरिक्त मात्रा दें और पौध संरक्षण उपचार कर गुड़ाई करें।

कटाई:-

गन्ना पूर्णतया पक जाये तब कटाई करें। इस समय पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। परिपक्वता की जांच हेन्ड रेफ्रेक्टोमीटर से भी की जाती है। इस यंत्र का माप अंक 20 तक पहुंच जाए तब फसल को परिपक्व समझा जायें। पेड़ी रखने के लिये गन्ना जमीन की सतह से काटना चाहिये। दो पेड़ी से चिकन लेये पेड़ी में खाद, पानी तथा अन्य कृषि क्रियाय मुख्य फसल की मति ही करें। फसल काटने के बाद बची हुई पत्तियां जला दे एवं पेड़ी के लिये आवश्यक शस्य क्रियायें अपनायें इसकी 600 से 800 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है।

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Vijay Gaderi

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