जड़ वाली सब्जियों में गाजर का प्रमुख स्थान हैं यह पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। खाने योग्य भाग पौधे की जड़ें होती हैं जबकि ऊपरी भाग (पत्तियां) जानवरों के खाने के काम आती हैं। गाजर का उपयोग सब्जी, हलुवा, अचार, सुप, सलाद आदि में किया जाता हैं।
गाजर हमारे शरीर के लिए अनेक प्रकार से लाभकारी हैं। इसमें बीटा केरोटीन पाया जाता हैं जो ‘विटामिन ए’ में बदल जाता हैं। इसमें कैंसर दूर करने के गुण पाए जाते हैं। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता हैं और यह कोशिकओं को नष्ट होने से रोकता हैं, उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता हैं। यह शरीर की रोगो से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता हैं और टॉनिक की तरह कार्य करता हैं।
गाजर यूरोप तथा दक्षिणी पश्चिम एशिया का निवासी हैं। गाजर को कच्चा खाने से केवल 3% बीटा केरोटीन ही शरीर को पाचन क्रिया द्वारा मिल पाता हैं। जबकि जूस निकालकर पिने से लगभग 39% तक मिल जाता हैं। गाजर अनेक रंगों की होती हैं यह पिली, नारंगी, लाला बैंगनी और काली होती हैं। उत्तर भारत में लाल गाजर पाई जाती हैं। अमेरिका में सब्जी को सुधारने का कार्य करने वाले केंद्र ने टेक्सास ए एन्ड एम विश्वविद्यालय में ऊपर से बैंगनी रंग की और अंदर गुद्दे से नारंगी रंग की गाजर बनाई हैं। इसे ‘बिट स्वीट’ या ‘मैरून कैरेट’ नाम दिया गया हैं इसमें कैंसर को रोकने के तत्व पाए जाते हैं। बीटा केरोटीन की अधिक मात्रा के कारण इसका रंग मेहरून होता हैं।
वर्ष 2005 में चीन गाजर और शलजम का सबसे बड़ा उत्पादक था। एफ.ए.ओ. के अनुसार विश्व की कुल एक तिहाई इन फसलों को चीन उत्पन्न करता है इसके बाद रूस और अमेरिका का स्थान हैं।
अमेरिका में स्कूली छात्रों को सोडा और दूसरे पेय पदार्थों के स्थान पर गुणकारी गाजर का जूस उपलब्ध करने के लिए ओहियो हाईस्कूल में जूस निकालने की मशीन लगाई गई हैं और बच्चे अन्य पेय के स्थान पर गाजर का जूस पि रहे हैं। केलिफोर्निया के ‘हाल्ट विली’ शहर ने अपने को ‘कैरेट केपिटल ऑफ़ वर्ल्ड’ घोषित किया हैं और वह प्रतिवर्ष एक त्यौहार मनाया जाता हैं जो पूर्ण रूप से गाजर के ऊपर केंद्रित होता हैं। यु.एस. फ़ूड एन्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन नव गाजर के निम्न पोषक तत्व बताए हैं-
वसा मुक्त, संतृप्त वसा मुक्त, कम सोडियम, कॉलस्ट्रॉल मुक्त, रेशा से भरपूर, विटामिन ए ज्यादा होता हैं। अन्य किसी सब्जी या फल में इतना केरोटीन नहीं पाया जाता हैं जितना गाजर में, जिसे शरीर ‘विटामिन ए’ में बदल देता हैं। यह विटामिन ए, बी, सी, डी, ई के साथ ही साथ कैल्शियम पेक्टेट का भी अच्छा स्त्रोत हैं। (यह पेक्टिन रेशा होता हैं जिसमे केलस्ट्रॉल को कम करने का अदभुत गुण होता हैं) गाजर में 87% पानी होता हैं कच्ची गाजर में विटामिन ए, के, सी, बी-6, फोलिक अम्ल, थाईमिन और मेग्नेशियम पाया जाता हैं। पकी गाजर में विटामिन ए, के, बी-6. कॉपर, फोलिक अम्ल और मेग्नीशियम होता हैं। बीटा केरोटीन के कारण गाजर का रंग नारंगी होता हैं। कच्ची गाजर की तुलना में पकी ज्यादा पौष्टिक होती हैं। 100 ग्राम गाजर में 11,000 मि.ग्रा. विटामिन ए पाया जाता हैं।
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नवीन शोध:-
डॉ. क्रिस्टेन ब्रेन्डट, कृषि वैज्ञानिक, न्यूकैसल विश्वविद्यालय ने पाया की गाजर को बिना काटे उबालने से यह कम हो जाता हैं। इन्होने इससे डेन्मार्क में खोज की थी की जिन मनुष्यों के भोजन में फॉल्कनीकॉल अधिक होता हैं उनमे कैंसर होने की आशंका दूसरों से कम होती हैं। यह सिद्ध हुआ हैं की गाजर को उबालना या भाप से पकाना तलने की तुलना में बेहतर हैं विशेष कर के केरिटिनोइट के लिए। गाजर को पकाने पर बीटा केरोटीन का स्तर बढ़ जाता हैं। यह कैरोटिनोइट एंटीऑक्सीडेंट ग्रुप का पदार्थ हैं जो सब्जी और फलों को रंग देता हैं। यह विटामिन ए में बदल जाता हैं जो दृष्टि, प्रजनन, हड्डियों की बढ़वार और शरीर के प्रति रक्षा तंत्र को बनाए रखने के लिए आवश्यक होता हैं।
गाजर का जूस शरीर को तुरंत ऊर्जा देता हैं और इसमें सभी पौष्टिक तत्व भी नष्ट होने से बचे रहते हैं। कच्चा खाने से गाजर की कोशिकाओं की कड़ी भीति टूटती नहीं हैं और शरीर केवल 25% बीटा केरोटीन को ही विटामिन ए में बदल पाता हैं जबकि पकाने से कोशिका भीति घुल जाती हैं और पोषक तत्व भी बाहर निकल आते हैं। गाजर में क्लोरीन, सल्फर, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम पाया जाता हैं। क्लोरीन लिवर के सही कार्य के लिए और शेष तत्व हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक हैं।
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गाजर के लाभ:-
- प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना (विशेष रूप से बुजुर्गों में)
- त्वचा की सुरक्षा, दृष्टि बढ़ाना, एच.आई.वि.के. लक्ष्णों में सुधार।
- अनुभूति प्यास, छोटे घास व चोट को भरना।
- ह्रदय के रोग में लाभकारी, ब्लडप्रेशर कम करना।
- यकृत या लिवर के कार्य को सुचारु रूप से चलाना।
- अस्थमा म लाभकारी, खून की अल्पता को दूर करना, मुहासे कम करना।
जलवायु:-
गाजर शीत्तोष्ण जलवायु का पौधा हैं परन्तु गर्म जलवायु में भी यह आसानी से पनपता हैं। वृद्धि अवस्था में तापमान अधिक रहने से इसके रंग व स्वाद में कमी आ जाती हैं। इसके बीजों का अंकुरण 7-28° सेल्सियस तापमान पर सफलतापूर्वक हो जाता हैं। 15-18° सेल्सियस तापमान गाजर की वृद्धि और रंग के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं। अगेती बुवाई के लिए हमेशा एशियाई किस्में ही उगानी चाहिए क्योंकि इसमें अधिक तापमान सहन करने की क्षमता होती हैं।
भूमि का चयन एवं भूमि की तैयारी:-
गाजर के लिए उचित जलनिकास वाली, गहरी ढीली, दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती हैं। अगर भूमि में कंकड़ पत्थर व बिना सड़ा गला खाद उपलब्ध होता हैं तो जड़े खराब होती हैं तथा शाखीय जड़ तंत्र बन जाता हैं। गाजर की बुवाई से पूर्व 3-4 जुताइयाँ करके अच्छी प्रकार से मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। गाजर की अच्छी खेती के लिए 30 से.मी. गहराई तक भुरभुरी मृदा उत्तम रहती हैं।
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उन्नत किस्में:-
गाजर की किस्मों को दो भागों में बाटा जा सकता हैं। शीतोष्ण तथा गर्म प्रदेश की किस्में। शीत प्रदेश में गाजर की दो फसलें एक वर्ष में होती हैं जब्कि गम प्रदेश में एक ही फसल होती हैं। इसमें रस अधिक होता हैं तथा जड़ का मध्य भाग (कोर) अधिक बड़ा होता हैं। एशियाई किस्मों में एंथोसाइनिन पिग्मेंट अधिक होता हैं और केरोटीन की मात्रा कम होती हैं। अतः यह पौष्टिक कम होती हैं। यह हलुआ, अचार, मुरब्बा, सब्ज सलाद आदि बनाने के लिए उपयुक्त हैं।
पूसा केसर:-
यह अधिक तापमान सहन करने वाली, लाल रंग की, पतली जड़ों वाली उपयुक्त क़िस्म हैं।
पूसा मेघाली:-
यह भी अधिक तापमान सहन करने वाली किस्म हैं।
शीत स्थान पर उगने वाली गाजर अधिकतर नारंगी रंग की होती हैं। इसमें से प्रमुख हैं- नेनटिस, पूसा यमदग्नि एवं कोरल्स। इन किस्मों की जड़े बेलनाकार, नारंगी रंग की, मीठी और स्वादिष्ट होती हैं तथा इनका उपयोग सलाद में ज्यादा किया जाता हैं। इन जड़ों के मध्य कोर एवं ऊपरी रंग समान होते हैं।
पूसा यमदाग्नी:-
यह शीघ्र पकने वाली, लम्बी जड़ों एवं केरोटीन से भरपूर किस्म हैं। प्रमुख रोग एवं कीट के प्रति सम प्रतिरोधी हैं।
चेन्टेनी:-
लाल नारंगी रंग की, जड़ ऊपर से चौड़ी निचे पतली होती हैं पर अंत में नुकीली नहीं होती हैं।
नेनटिस:-
जड़े अच्छी गंध वाली, नारंगी रंग की, मीठी एवं मुलायम किस्म हैं।
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बोने का समय:-
गाजर की बुआई अगस्त के अंतिम सप्ताह से लेकर नवम्बर के अंत तक करते हैं। नेनटिस को नवम्बर-दिसम्बर तक बो सकते हैं। पहाड़ो में गाजर मार्च से जुलाई तक बोई जाती हैं।
खाद और उर्वरक:-
गाजर की फसल कम अवधि में अधिक पैदावार देने वाली फसल होती हैं। अतः इसमें अधिक मात्रा में खाद एवं उर्वरकों की आवश्यकता रहती हैं। खेत की तैयारी के समय 250-300 क्विंटल/हैक. की दर से पूर्ण रूप से सड़ी गोबर की खाद खेत में मिला देना चाहिए। गाजर के खेत में बिना सड़ी गोबर की खाद कभी में नहीं लेनी चाहिए क्योंकि ऐसी खाद देने से जड़ों से शाखाएं उत्पन्न हो जाती हैं। गाजर की फसल को पोटाश की अधिक आवश्यकता होती हैं। 275 क्वी./हैक. उपज लेने पर मिट्टी से 125 की.ग्रा. पोटाश, 40 की.ग्रा. नत्रजन और 22.5 की.ग्रा. फॉस्फेट निकल जाता हैं।
अतः पोटाश धारी उर्वरक की अधिक मात्रा भूमि में डालना नितांत आवश्यक हैं। गाजर की सामान्य उर्वरकता वाली मृदाओं में पैदावार लेने के लिए एन.पि.के. 50:50:100 प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय भूमि में भली भांति मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा बुआई के 20 दिन और 30-40 दिन बाद, फसल विरलीकरण व निराई गुड़ाई के बाद छिटक कर सिंचाई कर देनी चाहिए। यूरिया के साथ प्रति हेक्टेयर 100 की.ग्रा. केंचुए की खाद मिलाकर देना अधिक लाभदायक रहता हैं।
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बीज की मात्रा:-
गाजर की प्रति हेक्टेयर बुवाई के लिए 5-6 की.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती हैं। यह जमने में एक सप्ताह का समय लेता हैं।
बोने की विधि:-
गाजर को समतल क्यारियों तथा मेड़ों पर बोया जा सकता हैं। बीजों की बुवाई छिटकवा विधि द्वारा की जा सकती हैं। जिसमे 20-25 दिन बाद अतिरिक्त पौधों को निकाल देना चाहिए। लाइनों में बुवाई करने के लिए लाइन से लाइन की दुरी 30-45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दुरी 7.5 से.मी. रखनी चाहिए। मेड पर बुवाई करने के लिए सम्पूर्ण क्षेत्र में 10 से.मी. चौड़ाई की मेड बनाकर मेड पर 7.5 से.मी. की दुरी पर पोहे रखने चाहिए। बीज को 1.5 से.मी. से अधिक गहरा नहीं बोना चाहिए।
सिंचाई:-
बीजों के अंकुरण तक खेत में बार-बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। प्रथम सिंचाई के समय क्यारियों को घास से ढक कर रखना चाहिए ताकि बीज क्यारी के पिछले भाग में एकत्रित नहीं हो। सिंचाई की संख्या जलवायु एवं भूमि पर निर्भर करती हैं। गाजर में अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए, चूँकि अधिक सिंचाई करने से पौधों की वनस्पतिक बढ़वार अधिक हो जाती हैं तथा जड़ों की पैदावार घाट जाती हैं।
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निराई-गुड़ाई:-
गाजर की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं की खेत खरपतवार रहित होना चाहिए। साथ ही साथ मृदा में भुरभुरापन होना आवश्यक हैं। प्रथम निराई के समय अतिरिक्त पौधों को निकल करके दुरी ठीक कर देनी चाहिए। वृद्धि करती हुई जड़ों के समीप हल्की निराई-गुड़ाई करते रहन चाहिए जिससे जड़ों के ऊपरी भाग में रंग परिवर्तन न हो सकें।
कीट एवं रोग:-
सफेद लट:-
बाजरे की फसल के बाद गाजर बोन से खेत में उपस्थित सफेद लट जड़ो को खाकर समाप्त कर देती है। रोकथाम हेतु 15-20 किग्रा. फोरेट प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई पूर्व मृदा में मिला देना चाहिए।
आद्र विगलन:-
इस रोग के कारण बीज अंकुरित होते ही पौधे संक्रमित हो जाते है। रोकथाम हेतु बीजों को केप्टान 3 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
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जीवाणु मृदु सड़न:-
इस रोग से ग्रसित पौधे की जड़े सड़ने लगाती है। अधिक आर्द्रता वाले क्षेत्रों में यह बीमारी अधिक तीव्रता से फैलती है। सड़ी हुई जड़ों में से गंध आती है। इसकी रोकथाम हेतु उचित जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिए।
कैरेट यलोस:-
एक विषाणु जनित रोग है जो लीफ हॉपर के द्वारा फैलता है। नई चितकबरी एवं पुरानी पत्तियां पीली पड़कर मुड़ जाती है। जड़े आकार में छोटी व स्वाद कड़वा हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगवाहक कीटों को नष्ट करने के लिए मैलाथियान का 0.2% घोल छिड़कना चाहिए। नीम का तेल भी लाभकारी है।
खुदाई:-
गाजर की खुदाई समय पर करनी चाहिए जब गाजर की जड़ों के ऊपरी सिरे 2.5-3.5 से.मी. व्यास के हों तब उनकी खुदाई करनी चाहिए। देर से खुदाई करने पर गाजर की स्वादिष्टता पर प्रभाव पड़ता है और रंग हल्का पड़ जाता है। गाजर की उपज 200-250 क्विंटल पर हेक्टेयर तक होती है।
बीज उत्पादन:-
यह क्रॉस परागण वाली फसल है। मधुमक्खी और गृह मक्खी मुख्य परागण कर्ता है। जड़ों की खुदाई न करने पर बीज उत्पादन अधिक होता है। अच्छी गुणवत्ता वाला बीज उत्पादन करने के लिए जड़ों को खोद कर निकलते है और फिर उसमें से छांट कर अच्छी जड़ों को दुबारा लगा देते है। बीज उत्पादन 500-600 किग्रा./हेक्टेयर होता है।
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