गाजर घास (Parthenium) अकृषि क्षेत्रों, रेल पटरियों के किनारे नदी नालों के किनारे बेकार व पद्धत भूमि इत्यादि स्थानों पर उगता है आजकल इसका फैलाव कृषि भूमि/ खेतों में भी देखा जा रहा है। भारत में लगभग 50 लाख हैक्टर खेत इससे प्रभावित है। इसमें वर्ष भर फूल आते हैं व प्रति पौधा लगभग 7000 बीज उत्पादित करता है जो भूमि पर गिरकर वर्षाकाल में उगकर अत्यधिक पौध तैयार करते हैं।
यह नम व छायादार ठण्डे स्थान पर अत्यधिक पनपते हैं। इसके कारण रबीच खरीफ फसलों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके स्पर्श के कारण मानव में अस्थमा, त्वचा रोग, जलन इत्यादि होती है। इसके कारण परागनासार्ति रोग भी उत्पन्न होता है।
गाजर घास से होने वाले दुष्प्रभाव:-
गाजरघास से मनुष्यों में एक्जिमा, बुखार, त्वचा संबंधी रोग (डरमेटाइटिस), दमा, एलर्जी जैसी बीमारियाँ होती हैं। गाजरघास का अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है। पशुओं के लिए भी यह खरपतवार अत्याधिक विषाक्त होता है।
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रोकथाम:-
- फूल आने से पूर्व इस खरपतवार को हाथो से (दस्ताने या प्लास्टिक की थैली पहनकर) निरंतर जड़ सहित उखाड़ते रहना चाहिये।
- फूल आने से पूर्व साधारण नमक के 20 प्रतिशत घोल का छिड़काव उपयोगी है। अकृषि क्षेत्र में फूल आने से पूर्व 2-5 किलोग्राम, 2, 4-डी एस्टर प्रति हैक्टर की दर से छिड़कें।
- पैराक्वेट1 प्रतिशत व ग्लायफोस्ट 15 किलोग्राम प्रति हैक्टर को छिड़काव से नियंत्रण कर सकते है।
- कृषि क्षेत्रों में बुवाई से पूर्व फसल के अनुसार सिमेजिन: एट्राजिन, एलाक्लोर ब्यूटाक्लोर के उपयोग से संबंधित फसल में इसका नियंत्रण किया जा सकता है।
- जिन क्षेत्रों में केसिया यूनिपलोरा अथवा केसिया सेरेसिया के पौधे होते हैं वहीं गाजर घास कम देखी गई है। अब समस्याग्रस्त क्षेत्रों में कैसिया जाति के बीजों को डालने से उक्त खरपतवार कम पनपते हैं।
- मेक्सिकन बीटल (जाइग्रोग्रामा बाइकोलोराटा) नामक कीट को वर्षा ऋतु में गाजरघास पर छोड़ना चाहिए।
- हर्बीसाइड जैसे शाकनाशी रसायनों में ग्लाईफोसेट, 2, 4-डी, मेट्रीब्युजिन, एट्राजीन, सिमेजिन, एलाक्लोर और डाइयूरान आदि प्रमुख हैं।
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