भिंडी के फल से सब्जी तो बनाई जाती हैं। इसके अलावा फलों को दवाइयों के रूप में भी उपयोग किया जाता है तथा इसके बीजों को पीसकर मंजन के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं एवं फलों को काटकर सुखाकर रखले तो बाद में सब्जी के रूप में उपयोग कर सकते हैं। भिंडी के फलों में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जोकि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है। इसमें सबसे ज्यादा आयोडीन पाया जाता है जोकि घेंघा रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद है। (ग्रीष्मकालीन भिंडी)
जलवायु:-
भिंडी (Lady Finger Farming) गर्म मौसम की सब्जी है। इसके लिए इसे गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। जोकी जनवरी-मार्च इसके लिए उपयुक्त समय है। लगातार वर्षा भिंडी की फसल के लिए उपयुक्त नहीं है। इसलिए भरे हुए व्यर्थ पानी को निकालते रहना चाहिए।
ग्रीष्मकालीन भिंडी की फसल हेतु उन्नत किस्मों का चुनाव:-
भिंडी फसल की अधिक पैदावार लेने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए।
ए.- 4:-
इसका विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया था।पीला मोजेक रोग रोधी किस्म किस्म है एवं अच्छा उत्पादन देने वाली है
VRO- 4, 5, 6, 7, 10:-
ये किस्में सब्जी अनुसंधान केंद्र बनारस द्वारा विकसित की गई है एवं अच्छा उत्पादन भी देती है।
इंद्रनील- 893:-
यह किस्म पीला मोजेक रोगरोधी है, यानी पीला मोजेक रोग बीमारी नहीं लगती है।
तुलसी:-
ये भी अच्छा उत्पादन देने वाली किस्म हैं। बाजार में आपको आसानी से मिल जाएगी। ये किस्म पीला मोजेक रोग के प्रति सहनशील हैं।
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खेत की तैयारी:-
भिंडी को सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। लेकिन इसकी खेती के लिए उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। 1 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर चलित प्लाऊ या कल्टीवेटर से करके पाटा चलाकर भूमि को समतल कर दे। पाटा लगाने से भूमि में उपस्थित संरक्षित बनी रहती है। जिससे बीजों का जवाब अच्छी तरह से होता है।
बीज दर:-
ग्रीष्मकालीन भिंडी की फसल हेतु प्रति एकड़ के हिसाब 5 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है।
बीज उपचार:-
बीज को बोने से पहले फफूंदनाशक दवा कार्बेंडाजिम 3 ग्राम प्रति किग्रा के हिसाब से उपचारित करना चाहिए। जिससे पौधों को फफूंद से फैलने वाली बीमारियों से बचाया जा सके। क्योंकि पौधों में जो बीमारियां लगती है 50% बीमारी बीज से ही फैलती है।
दूरी:-
लाइन से लाइन 1.5 फिट तथा एक पौधे से पौधे की दूरी 0.5 फिट रखें।
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खाद एवं उर्वरक की मात्रा:-
भिंडी की फसल में उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक डालने के लिए मृदा की जांच होना अनिवार्य है। अतः मृदा जांच के बाद खाद एवं उर्वरक डालना चाहिए। यदि किसी कारण वश मृदा की जांच ना हो सके तो प्रति एकड़ खेत में गोबर खाद 10 टन, यूरिया 100 किग्रा, सिंगल सुपर फास्फेट 100 किग्रा, म्यूरेट आफ पोटाश 30 किलोग्राम।
पकी गोबर की खाद भिंडी लगाने के लगभग 1 माह पहले खेत में समान रूप से बिखेर दें। यूरिया की आधी मात्रा 50 किलोग्राम एवं सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय डाल दें। तथा यूरिया की शेष मात्रा को दो भागों में प्रथम बार फसल लगाने के 35 दिन बाद तथा दूसरा भाग फसल लगाने के 60 दिन बाद डालें।
सिंचाई:-
ग्रीष्मकालीन भिंडी के लिए निरंतर सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए।
निराई-गुड़ाई:-
खेतों को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए समय- समय पर निराई- गुड़ाई करते रहना चाहिए। ग्रीष्मऋतु में 2-8 निराई गुड़ाई करना पर्याप्त होती है।
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किट नियंत्रण:-
तना छेदक:-
यह कीट भिंडी के तनो एवं फलों में छेद करके अंदर घुस जाता है। जिससे भिण्डी खोखली हो जाती है, जिससे भिंडी खाने योग्य नहीं रहती। इसके नियंत्रण के लिए क्विनालफॉस 25 ई.सी.अथवा ट्राइजोफॉस 300 मि.ली.प्रति एकड़ के हिसाब से गोल बनाकर छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर दोबार करें। एक एकड़ में कम से कम 8-10 टंकी छिड़काव करें।
जेसिड (फुदका):-
यह हरे रंग का होता है जो पत्तियों का रस चुसता है। जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती है और पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ जाती है। इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरप्रिड 17.8% के हिसाब से छिड़का वकरें।
रोग नियंत्रण
पीला मोजेक:-
यह भिंडी की सबसे खतरनाक बीमारी है। जोकि सफेद मक्खी (वायरस) के द्वारा फैलती है। यह कीट पत्तियों का रस चुसता हैं। जिससे पत्तिया पिली पड़ जाती हैं तथा कठोर हो जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए-
- रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें या गाड़ दें।
- फसल को खरपतवारो से मुक्त रखें ताकि बीमारी फैलाने वाला कीट अपना आश्रय ना बना पाए।
- रोगरोधी किस्में लगाए व्ही.आर.औ.- 4, 5, 6, 7, 10, इंद्रनील- 893, ए.-4 इमिडाक्लोप्रिड8% एस.एल.का 40-50 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
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चूर्णी फफूंदी:-
पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाउडर जैसा चूर्ण जम जाता है। जिससे पत्तियां पीली होकर गिरने लगती हैं।
नियंत्रण:-
कार्बेंडाजिम 300 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से गोल बनाकर छिड़काव करें।
तुड़ाई:-
भिंडी की फसल बुवाई के लगभग 40 से 50 दिन बाद फल देना शुरु कर देती है।पहली तुड़ाई के दो-तीन दिन बाद तुड़ाई करते रहे। देरी से तुड़ाई करने पर फल कठोर हो जाते हैं। जिससे फलोंकी गुणवत्ता खराब हो जाती है। इस लिए समय-समय पर तुड़ाई करते हैं।
ग्रीष्मकालीन भिंडी की उपज:-
ग्रीष्मकालीन भिंडी की फसल से 1 एकड़ में 25 से 30 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकते हैं।
बीज उत्पादन:-
बीज उत्पादन के लिए स्वस्थ फलों को पौधों पर लगा रहने दे। बाद में फल पक कर चटक जाए तब इसी अवस्था में कलियों को तोड़ लेना चाहिए। 1 एकड़ से लगभग 5 क्विंटल बीज मिल जाता है। बीज वाली फसल का कम से कम 3 बार निरीक्षण करना पड़ता है।
- फूल आने से पहले।
- फूल आने और फल लगने के समय।
- फल पकने के समय।
निरीक्षण के समय एवं कीटों से ग्रसित पौधों को हटा दें भिंडी के प्रमाणित उत्पादन के लिए फसल के आसपास 200 मीटर तक भिंडी की फसल नहीं आनी चाहिए। आधार बीज उत्पादन के लिए 400 मीटर तक भिंडी की कोई भी नहीं होनी चाहिए।
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प्रस्तुति:-
कमलेश अहिरवार (वरिष्ठ शोध सहायक)
डॉ.प्रशांत श्री वास्तव,
कृषि विज्ञान केंद्र, छतरपुर (म.प्र.)