जलवायु एवं मिट्टी:-
ग्लेडियोलस की खेती के लिए उपजाऊ एवं उत्तम जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती हैं। चिकनी मिट्टी की अवस्था में पर्याप्त देसी खाद डालने के बाद ही खेती करें। खरी अंग (पी.एच.) 0.7 के आसपास होना अनिवार्य हैं। इसके लिए 16 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्तम हैं व 7 डिग्री सेल्सियस नीचे और 32 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान पौध वृद्धि पर विशेष तौर पर पुष्प उत्पादन में बाधक हैं। मुलत यह शीत ऋतु की फसल है। इसे लंबे दिन व तीव्र रोशनी की जरूरत होती है।
ग्लेडियोस लगाने का समय एवं दूरी:-
घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग को देखते हुए आजकल अप्रैल से जून तक के समय को छोड़कर वर्ष पर बीजाई की जाती हैं और वर्ष पर ही इसके फूल उपलब्ध रहते हैं। जुलाई से दिसंबर मैदानी क्षेत्रों में व मार्च-अप्रैल पहाड़ी क्षेत्रों में लगाने के लिए उपयुक्त समय है। किस्मों का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि विभिन्न किस्मों के तापमान की आवश्यकतए भिन्न भिन्न है।
इसे 15 से 30 दिन के अंतर पर बार-बार लगाने से निरंतर फूल मिलते रहते हैं। पौधे से पौधे की दुरी 20 सेंटीमीटर व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर उचित है। उत्तम गुणवत्ता के फूल प्राप्त करने के लिए कम से कम 5 सेंटीमीटर व्यास कंद 0.2 प्रतिशत बाविस्टिन के टैंक में 15 से 30 मिनट डुबोने के बाद ही लगाना चाहिए। कंद 5-7 सेंटीमीटर गहराई पर लगाने चाहिए। प्रति एकड़ 7000 पौधों का समावेश किया जा सकता है।
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खेत की तैयारी तथा खाद एवं उर्वरक:-
दो तीन बार खेत की गहरी जुताई करें। अंतिम जुताई से पूर्व 10 से 20 टन देसी खाद, 250 किलो सिंगल सुपर फास्फेट व 65 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश डालना चाहिए। तत्पश्चात सुविधाजनक आकार की क्यारियां बनाकर उन्हें उचित दूरी पर कंदों की बिजाई करें। मिट्टी जनित फफूंदियों से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए हर बार उसी खेत में इसकी बागवानी न करें। रोपण के 30 दिन बाद 3 पत्ती व ६ पत्तियां आने पर हर बार 80-85 किलोग्राम किसान खाद का प्रयोग करें। 6 पत्तियां आने पर 65 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डालना चाहिए।
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सिंचाई:-
सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी एवं जलवायु पर निर्भर करती है। दोमट मिट्टी की अवस्था में 7 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
ग्लेडियोलस में निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण:-
अधिक उत्पादन एवं गुणवत्ता के लिए फसल अवधि के दौरान चार से पांच बार निराई गुड़ाई करना आवश्यक है। जिससे खरपतवार नियंत्रण भी होता है। निराई गुड़ाई के समय पौधों के चारों ओर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए 1 लीटर बेसालिन प्रति एकड़ खेत तैयार करने के बाद कंदों के रोपण से पहले छिड़कने चाहिए।
पुष्प उत्पादन:-
आमतौर पर अधिकतर व्यवसायिक किस्मों से एक पुष्प डण्डी प्रति कंद/ पौधा प्राप्त होती हैं। परंतु अनेक ऐसी किस्मे है जो दो से अधिक पुष्प डंडियों की संख्या पर निर्भर हैं।
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ग्लेडियोलस के फूलों की तुड़ाई:-
पुष्प डण्डी पर सबसे नीचे वाली काली के नीचे से इस प्रकार काटें की पौधे पर कम से कम चार पत्ते रह जाये। कटाई ठंडे मौसम में सुबह या सांय करें। काटने के लिए तेज धारदार चाकू अथवा ब्लेड का प्रयोग करें।
फूलों की पैकिंग:-
साधारण तो 100X 25X 10 सेंटीमीटर आकार के गत्ते के डिब्बे प्रयोग किए जाते हैं।
ग्लेडियोलस के कंदों की खुदाई:-
पौधों से फूल काटने के 5 सप्ताह बाद पौधे सूख जाए तो कंदों को नन्ही कंदों के साथ खोद कर निकाल ले व बड़ी को अलग करें। कंदों की खुदाई से 2 से 3 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।त्पश्चात 1 सप्ताह तक छाया में सुखाने के बाद बाविस्टिन 0.2 प्रतिशत के घोल में 15 से 30 मिनट डुबोने के बाद सुखाकर हवादार स्थान पर शीतग्रह में भंडारण करें।
कीट एवं बीमारियां:-
कीट – ग्लेडियोलस पर किसी भी किट का विशेष प्रकोप नहीं होता है।
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ग्लेडियोलस में बीमारियां:-
उलेखा:-
यह ग्लेडियोलस की विनाशकारी बीमारी है। इससे ग्रसित होने पर दराती के आकार के पत्ते निकलते हैं। जिन पर लाल लाल धब्बे निचले भाग पर नजर आते हैं व फलस्वरुप पत्ते पीले हो जाते हैं और पूरा पौधा मर जाता है। इसके नियंत्रण हेतु निम्न उपाय अपनाएं।
- खेत की मई-जून में गहरी जुताई करें।
- केवल स्वस्थ व फफूंदी मुक्त कंदों का प्रयोग करें। रोपण पूर्व कंदों को 2 प्रतिशत बाविस्टिन के घोल में 15 से 30 मिनट भिगोए।
- रोग के लक्षण नजर आते ही पूरे खेत अथवा हरित ग्रह में 2 प्रतिशत बाविस्टिन का जड़ को निशाना बनाकर छिड़काव करें।
- फलों का भंडारण पूर्ण 2 प्रतिशत बाविस्टिन से उपचारित करें।
- बच्चों से तैयार कंधों से रोपण को प्राथमिकता दें।
- रोपण पूर्व कंदों को 57 सेल्सियस तापमान पर 30 मिनट तक पानी से उपचारित करें।
- एक ही खेत में बार-बार रोपण ना करें।
- मिट्टी को फार्मेलिन का छिड़काव करके काली पॉलीथीन की शीट से एक सप्ताह तक ढककर रखें।
कंद गलन:-
इसके फलस्वरुप भंडारण के दौरान कंद गल-सड़ जाते हैं। उपाय हेतु निम्न कदम उठाएं।
- भंडारण से पूर्व रोग ग्रस्त कंदो की पूर्व ही छटनी कर दें।
- कंदों को 3% कैप्टान या बाविस्टिन से उपचारित करें।
- उचित तापमान पर हवादार स्थान पर वह पतली तहों में भंडारण करें।
- फसल के दौरान ही पौधों पर कैप्टान या बाविस्टिन का छिड़काव करें।
Author:-
वी.पी. सिंह, जयपुर
सभार:-
कृषि भारती