चीकू उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र का फल है। चीकू का पका फल स्वादिष्ट तथा कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्त्रोत है व इसका प्रयोग खाने में, जैम और जैली बनाने में भी किया जाता है।
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रसायन विज्ञान:-
चीकू की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं परन्तु गहरी, उपजाऊ तथा बलुई दोमट मिट्टी इसके लिये उपयुक्त है। इसकी सफल खेती के लिए गर्म और नम मौसम की आवश्यकता होती है। गर्मी में इसके लिये उचित पानी देने का प्रबन्ध करना आवश्यक है।
चीकू की उन्नत किस्मे:-
काली पत्तीः-
फल अण्डाकार, रसीले, सुगन्धित, मीठे एक से चार बीज वाले होते हैं। फल शीत ऋतु में पकते हैं। यह अधिक पैदा देने वाली गुजरात की किस्म है। क्रिकेट बॉल बहुत बड़े आकार के गोलाकर फल, गूदा सख्त व दानेदार परन्तु बहुत मीठा होता है। यह अपेक्षाकृत कम उपज देने वाली किस्म है।
प्रवर्धन:-
इसका पौधा वानस्पतिक प्रवर्धन भेंट कलम, वीनियर ग्राफटिंग तथा सोफ्टवड ग्राफटिंग द्वारा तैयार किया जाता है। मूल वृन्त के लिये खिरनी के बीज वाले पौधे प्रयोग में लाये जाते है। ये कार्य अगस्त-सितम्बर में किया जाता है।
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पौध लगाने की विधि:-
चीकू के पौधे जुलाई-अगस्त में लगभग 9X9 मीटर की दूरी पर लगाये जाते है। इसके लिये 1x1x1 मीटर आकार के गड्डे खोद कर उसमें 20 किलो गोबर की खाद, 1 किलो सुपर फॉस्फेट और 50 से 100 ग्राम क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण मिलाकर भर देना चाहिये। शुरू के दिनों में तेज धूप एवं ठण्ड से पौधों की रक्षा करना आवश्यक है।
खाद व उर्वरक:-
फसल की अच्छी बढ़वार एवं पैदावार के लिये खाद एवं उर्वरक निम्न अनुसार देवें-
खाद व उर्वरक
| मात्रा प्रति पौधा किलोग्राम में | ||||
एक वर्ष | दो वर्ष | तीन वर्ष | चार वर्ष | पांच वर्ष के बाद | |
गोबर की खाद | 15 | 30 | 45 | 60 | 75 |
यूरिया | 0.50 | 0.75 | 1.00 | 1.50 | 1.50 |
सुपर फॉस्फेट | – | – | – | 0.25 | 0.50 |
म्यूरेट ऑफ पोटाश | 0.25 | 0.50 | 0.75 | 1.00 | 1.25 |
खाद व उर्वरक देने का समय बरसात से पूर्व जून माह में यूरिया की आधी मात्रा को छोड़कर सभी नाली बनाकर देवें तथा शेष यूरिया सितम्बर-अक्टूबर माह में देवें।
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सिंचाई एवं अन्तराशस्य:-
छोटे पौधों को विशेष रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है लेकिन पौधों के पास पानी नहीं ठहरना चाहिये। गर्मियों में 7 से 10 दिन पर तथा सर्दियों में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। प्रारम्भ के तीन वर्ष तक बाग में सब्जियां जैसे मटर, चौला, ग्वार, मिर्च, बैंगन, हल्दी, रतालु आदि ली जा सकती है।
कीट प्रबंध
चीकू का पतंगा:-
इस पतंगे की पहली जोड़ी के पंखों का रंग काला होता है तथा आधे भाग पर पीले रंग के धब्बे होते है। इसकी लटों का रंग गहरा गुलाबी होता है तथा पूरे शरीर पर लम्बी काले रंग की धारियां होती है। यह कीट पत्तों का गुच्छा बनाकर उसमें रहता है। पत्तियाँ, कलियों एवं नये पौधों में छेद करके नुकसान पहुंचाता है।
नियंत्रण हेतु:-
क्यूनालफॉस (25 ई.सी.) 2. 0 मिलीलीटर या मोनोक्रोटोफॉस (36 एस एल) 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार यह छिड़काव 15 दिन बाद दोहरावें।
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थ्रिप्स:-
यह कीट बहुत छोटे आकार के काले रंग के होते है। यह कोमल तथा नई पत्तियों का हरा पदार्थ खुरचकर खाते है जिससे पत्तियों पर सफेद धब्बे दिखाई देने लगते है। पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है।
नियंत्रण हेतु:-
पौधों पर फॉस्फोमिडॉन (85 एस एल) 0.5 मिलीलीटर या डाईमिथोएट (30 इ.सी.) 1.5 मिलीलीटर या इमिडाक्लोरोपिड 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर या मोनोक्रोटोफॉस (36 एस एल) एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
व्याधि प्रबंध
पत्ती धब्बा रोग:-
इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर छोटे छोटे धब्बे बन जाते है। उनकी वजह से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नियन्त्रण हेतु मैन्कोजेब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये। यदि आवश्यक हो तो यह छिड़काव 15 दिन बाद दोहरावें ।
शाखाओं का चपटा होना:-
यह समस्या कवक से होती है तथा रोग से प्रभावीत वृक्षों की शाखाएँ चपटी हो जाती हैं ऐसी शाखाओं को काटकर जला देना चाहिये।
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तुड़ाई एवं उपज:-
चीकू का पेड़ तीन चार साल बाद फल देने लग जाता है। जो फल गर्मी में तैयार होते है वे अधिक मीठे होते है। विकसित पेड़ से 150 से 200 किलोग्राम तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। चीकू के फलों का छिलका जब भूरे रंग का हो जाये और जब उसमें पपड़ियां पड़ने लग जाये तो समझना चाहिये कि फल तोड़ने लायक हो गया है। कच्चे फलों को यदि नाखून लगाया जाये तो हरे निशान की जगह पीला निशान दिखाई दे तो ही फल पका माना जाये।
फलों को पकाना:-
चीकू के फलों को पकाने के लिये एक मिली. इथरल प्रति लीटर पानी (1000 पी.पी. एम.) की दर से घोल बनाकर एक मिनट तक डुबो कर बन्द कमरे में रखने से 24 घण्टे में फल पक जाता है।
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