जई (Oat Farming) रबी में उगाई जाने वाली चारे की प्रमुख फसल है। इसका हरा चारा स्वादिष्ट, पाचक एवं पौष्टिक होता है। इसकी हरे चारे साईलेज एवं है के रूप में खासतौर से दुधारू पशुओं को खिलाया जाता है। जई में कार्बोहाईड्रेट्स की मात्रा अधिक एवं प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है। अतः इसको रिजका, बरसीम, सेंजी, मैथी आदि दलहनी फसलों के चारे के साथ बराबर अनुपात में मिलाकर खिलाया जाता है।
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उन्नत किस्में:-
केन्ट (1978):-
यह किस्म सबसे ज्यादा लोकप्रिय एवं अधिक उपज देती है तथा यह बहुकटाई के लिये उपयुक्त है। इसके अलावा एच.एफ.ओ. 114 (हरियाणा जई) तथा ओ.एस. 6 (1982) किस्में भी हमारी परिस्थितियों में दो कटाईयां आसानी से दे सकती है।
जे.एच.ओ. – 99-2:-
इस किस्म से दो कटाईयों (बुवाई के 55 दिन उपरान्त एवं 50 प्रतिशत पुष्पन पर) से सर्वाधिक हरे चारे का उत्पादन (60.08 टन/है.) प्राप्त हुआ है। इसके उपरान्त किस्मों जे.एच.ओ. -822 (50.61 टन/है वज एच.ओ.- 2000-4 (50.51 टन/ है.) से सर्वाधिक हरे चारे का उत्पादन हुआ । इन सभी किस्मों में अधिकतम हरे चारे का उत्पादन के लिए बुवाई के समय 60 किलोग्राम नत्रजन व 40 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हैक्टर एवं 30-30 किलोग्राम नत्रजन क्रमशः प्रथम सिंचाई के समय व प्रथम कटाई के उपरान्त पर्याप्त है।
खेत की तैयारी एवं उपचार:-
जई के लिये उपजाऊ एवं उचित जल निकास वाली दोमट से चिकनी भूमि सर्वोत्तम होती है। यह हल्की अम्लीय व लवणीय भूमि (पी.एच. 8.5) में भी उगाई जा सकती है किन्तु सोडियम की क्षारीयता को सहन नहीं कर सकती है। एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद 3-4 बार हैरो या कल्टीवेटर या देशी हल चलाकर खेती को तैयार करना चाहिए। दीमक एवं अन्य भूमिगत कीड़ों की रोकथाम के लिए अन्तिम जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से खेत में बिखेर कर जुताई करनी चाहिए।
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बीज:-
अकेली फसल के लिये 80-100 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर की दर से बायें।
बीजोपचार:-
बीजोड रोगों से फसल को बचाने के लिए बुवाई से पूर्व प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम पार फफूंदनाशी या 25 ग्राम मैन्कोजेब या 3 ग्राम थाइरम से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई:-
जई की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर है किन्तु इसकी बुवाई दिसम्बर तक की जा सकती है। बुवाई 20-25 सेन्टीमीटर रखें बुवाई 5-7 सेमी की गहराई पर करे तथा बुवाई के समय भूमि में अंकुरण के लिए उचित नमी होनी चाहिए।
जैविक खाद एवं उर्वरक प्रयोग:-
जई की फसल के लिए तकरीबन 15-20 टन प्रति हैक्टर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद खेत तैयार करते समय बुवाई के तीन चार सप्ताह पूर्व खेत में डालनी चाहिए। जई की फसल के लिए जैविक खाद के अलावा 90 किलोग्राम नत्रजन व 30 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती हैं।
बुवाई के समय 30 किलोग्राम नत्रजन एवं 30 किलोग्राम फॉस्फोरस बुवाई के समय ऊर कर देना चाहिए। इसके अलावा खड़ी फसल में बुवाई के लगभग एक माह बाद 30 किलोग्राम नत्रजन एवं पहली कटाई के बाद 30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टर छिड़क कर तुरन्त सिंचाई करनी चाहिए।
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सिंचाई:-
बुवाई के 5-7 दिन पहले पलेवा करके खेत तैयार करें पहली सिंचाई बुवाई के लगभग तीन सप्ताह बाद करें। बाद की सिंचाईयां लगभग 20-25 दिन के अन्तर पर मिट्टी की किरण व मौसम के अनुसार की जानी चाहिए।
कटाई:-
पशुओं को हरा चारा खिलाने के लिए बहु-कटाई वाली किस्मों की पहली कटाई बुवाई के 60-65 दिन बाद 10 से.मी. ऊँचाई से करें ताकि पुनः वृद्धि अच्छी हो सके। इसलिए बहु कटाई वाली किस्मों को अक्टूबर में अवश्य बो देना चाहिए जिससे पहली कटाई दिसम्बर के अन्त तक ली जा सके।
दूसरी कटाई फूल आने की शुरूआत से 50 प्रतिशत फूल आने तक की अवस्था पर करनी चाहिए। हे बनाने के लिए फसल की कटाई 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था से दानों में दूध बनने की अवस्था पर तथा साइलेज के लिए दानों में दूध बनने की अवस्था से दानों की मुलायम अवस्था पर करें।
उपज:-
जई की एक ही कटाई 50 प्रतिशत पौधों में फूल आने की अवस्था पर करें तो चारे की उपज दो कटाईयां लेने से अधिक मिलती है किन्तु दो कटाइयां हरे चारे की कमी के दिनों में लम्बे समय तक हरा चारा देती है। औसतन उपज 350-400 क्विंटल प्रति हैक्टर तथा बहुत अच्छा प्रबन्ध एवं देखभाल के साथ 450-600 क्विंटल प्रति हैक्टर तक हो जाती है।
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