जायद ऋतु में मूंग (Green Beans) नकदी फसल है, जहां सिंचाई की सुविधा है, वहां पर इस फसल को लिया जा सकता है। इसकी खेती किसानों को अतिरिक्त आय देने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने में सहायक है। क्योंकि उसकी जड़ों में ग्रंथियां पाई जाती है। इन ग्रंथों में एक सूक्ष्म जीवाणु रइजोबियम पाया जाता है।
खेत की तैयारी:-
मूंग की खेती काली मिट्टी, दोमट, मटियार भूमि आदि सभी प्रकार की मृदा में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। भारी भूमि की अपेक्षा हल्की मृदा अधिक उत्तम होती है। भरी भूमियों में जल निकास का होना आवश्यक है। मूंग कि सबसे उत्तम उपज दोमट भूमि में प्राप्त होती है। जायद में गेहूं की कटाई करके, पलेवा करके साथ के साथ मुंग की फसल बो सकते हैं। इसके लिए रबी कटाई के तुरंत बाद भूमि की आवश्यकतानुसार एक जुताई करके खेत को तैयार करें।
Read Also:- पाले से फसलों का बचाव कैसे करें?
जायद मूंग बुवाई का समय:-
जायद मूंग की अधिकतम पैदावार के लिए इसकी बुवाई सरसों, गेहूं, जौकी कटाई के तुरंत बाद 15 फरवरी से 15 मार्च तक की जा सकती है।
दुरी:-
बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 से 25 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखनी चाहिए।
जायद मूंग बीज का उपचार:-
बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारि तकरना: -दलहनी फसलों के बीजों को राइजोबियम से उपचारित करने से अधिक पैदावार होती है। एक पैकेट 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर 10 किग्रा. बीजों के लिए पर्याप्त होता है। बुवाई के 8-10 घंटे पहले 100 ग्राम गुड़/शक़्कर को आधा लीटर पानी में घोलकर उबाल लेना चाहिए। ठंडा होने पर इसके बाद घोल में आप राइजोबियम कल्चर मिलाकर डंडे से हिला देवें। इसके बाद बाल्टी में 10 किलोग्राम बीज डालकर अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए। ताकि राइजोबियम कल्चर बीज की सतह पर अच्छी तरह चिपक जाए, फिर उपचारित बीजों को छाया में सुखाकर दूसरे दिन बुवाई के लिए काम में ले सकते हैं।
Read Also:- एग्रीकल्चर में बनाएं शानदार करियर
उन्नत किस्में:-
आई.पी.एम. 02-14 (2010):-
जायद मौसम के लिए उपयुक्त मूंग की यह किस्म 60-65 दिन में पककर तैयारहो जाती है। इसकी औसत पैदावार 11 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक हो जाती है। यह किस्म पितशिरा विषाणु रोग के लिए प्रतिरोधी है तथा यह किस्म दक्षिणी राजस्थान हेतु विकसित की गई है।
आई.पी.एम. 02-03 (2009):-
खरीफ एवं जायद मौसम के लिए उपयुक्त मूंग की यह किस्म 62-68 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 10- 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है। यह किस्म पीतशिरा विषाणु रोग के लिए प्रतिरोधी किस्म हैं।
पूसा विसाल (2001):-
यह किस्म 58-61 दिन में पककर 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। तथा इसका दाना मोटा होता है तथा यह किस्म विषाणु रोग के लिए प्रतिरोधी है।
समर मुंग लुधियाना (एस.एम.एल.):-
2003 में विमोचन की गई यह किस्म 60-65 दिन में पकती है तथा 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। यह पीला मोजेक रोग के प्रति प्रतिरोधक पाई गई है।
के. 851:-
यह किस्म 1982 में कानपूर से निकाली गई। 60-70 दिन में पककर तैयार होने वाली यह किस्म 10-12 दिन में तैयार होती है।
Read Also:- The सात्विक diet शुद्धता एवं स्वाद का संगम
उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग विधि:-
मूंग की अच्छी पैदावार के लिए 20 किलोग्राम नत्रजन 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। उर्वरक की पूरी मात्रा बीज बुवाई के समय कुंडो में दे।
सिंचाई:-
जायद में मूंग की बुवाई प्लेवा करके खेत तैयार होने पर करते हैं। जिसे पहली सिंचाई की आवश्यकता बुवाई के 30- 35 दिनों के बाद होती है। इसके बाद भूमि के अनुसार दो से तीन सींचियों की आवश्यकता होती है। वैसे किसान भाई याद रखिए कि एक सिंचाई फूल आने से पूर्व तथा दूसरी सिंचाई फली में दाना बनते समय करें ध्यान रहे इस समय भूमि में उचित नमी बनी रहे।
निराई गुड़ाई:-
आवश्यकतानुसार खरपतवार निकालते रहे। 30 दिन की फसल होने तक निराई- गुड़ाई कर देनी चाहिए। बुआई के पूर्व खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरोलीन 0.75 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाने के बाद बुआई करने से खरपतवार पर प्रभावी नियंत्रण रहता है और अधिक पैदावार मिलती है।
Read Also:- जीवामृत एवं नीमास्त्र बनाने की विधि एवं उपयोग
फसल संरक्षण:-
मोयला:-
मोयला कीट का प्रकोप होते ही मैलाथियान 50 ई.सी. या डायमिथोएट 30 ई.सी. 1 लीटर, मैलाथियान चूर्ण का 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
फली छेदक:-
क्यूनॉलफोस 25 ई.सी.1 लीटर का पहला व दूसरा छिड़काव एसीफेट 75 एस.जी. 600- 700 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छीड़के।
चित्ती जीवाणु रोग:-
इस रोग के कारण छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे पत्तों पर तथा प्रकोप बढ़ने पर फलियों व तने पर दिखाई देते हैं। रोग दिखाई देते ही एग्रो माइसीन 200 ग्राम या 2 किलो ताम्र युक्त कवकनाशी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
पीलिया रोग:-
रोग दिखने पर 0.1% गंधक के तेजाब या 0.5% फेरस सल्फेट का छिड़काव करें।
छाछ्या रोग:-
रोग की रोकथाम हेतु प्रति हैक्टेयर ढाई किलो घुलनशील गंधक का छिड़का व रोग के लक्षण दिखाई देते ही एवं दूसरा छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें अथवा 25 किलो गंधक चूर्ण का भुरकाव करें।
Read Also:- मधुमक्खी पालन (Bee keeping) – एक उपयोगी व्यवसाय
प्रस्तुति:-
मदनलाल मेघवाल, व्याधिकी विज्ञान विभाग,
राजस्थान कृषि महाविद्यालय,
महाराणा प्रताप एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
उदयपुर (राज.)