जिनसेंग की औषधीय गुणकारी खेती - innovativefarmers.in
औषधीय फसलों की खेती

जिनसेंग की औषधीय गुणकारी खेती

जिनसेंग की औषधीय गुणकारी खेती
Written by Bheru Lal Gaderi

अमेलेएसी परिवार की पिनाक्सी प्रजातियों को आमतौर पर जिनसेंग के नाम से जाना जाता है। निनाक्स ग्रीक शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ “रामबाण” है। जिनसेंग को “दुनिया का आश्चर्य” भी कहा जाता है। जिनसेंग शब्द चीनी शब्द जैन और शेन से बना है, जिसका मतलब है “आदमी की जड़” क्योंकि यह दिखने में मानव रूप सा होता है। जिनसेंग उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया (ज्यादातर कोरिया, उत्तर पूर्वी चीन, भूटान, पूर्वी साइबेरिया) के ठंडे मौसम में पाया जाता है। इसके अलावा जिनसेंग बहुत सी मूल्यवान जंगली प्रजातियां विशेषतया भारत, नेपाल और म्यांमार में पाई जाती है। विभिन्न देशों में पिनाक्स की अलग-अलग प्रजातियां पाई जाती हैं।जैसे की चीन (पी कोई कूफोलिउस) और वियतनाम (पी वैयतनामेंसिस) पिनाक्स जिनसेंग एशियाई जिनसेंग के रूप में जाना जाता है और कई सदियों से दवा की विभिन्न प्रणालियों में इस्तेमाल किया गया है।

जिनसेंग की औषधीय गुणकारी खेती

यह एक धीमी गति से बढ़ने वाली बहुवर्षीय जड़ी बूटी है, जो कि 5 वर्ष तक 30-60 सेमी. की ऊंचाई तक पहुंच जाती है। इसकी जड़ें घनी व मोटी होती है,

जो कि 2 से 4 इंच लंबी व एक से डेढ़ इंच मोटी होती है, पौधे में प्रायः 3 से 5 जुड़े हुए करतलाकर पत्ते होते हैं व प्रत्येक पत्ते में पांच छोटी पत्तियां होती हैं। इसके पत्ते सरल, बहुत छोटे व आकार में अंडाकार होते हैं, जो कि शीर्ष पर तीखे तथा मूल पर गोलाकार होते हैं। ऊपरी 3 पत्ते नीचे के 2 पत्तों की तुलना में बड़े होते हैं। तीसरे वर्ष गर्मी (जून और जुलाई) के दौरान पौधे के पुष्पछत्र में 6 से 20 सफेद या हरे रंग के फूल एक गुच्छे में लगते हैं। इनमे बाद में 1 से.मी. अंडाकार आकार के फल लगते हैं, जो पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। फल में छोटे मटर के आकार के दो से तीन भूरे सफेद-झुर्रियों वाले बीज होते हैं।

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जिनसेंग का बीज अंकुरण:-

ताजा बीज 12 से 18 महीने तक अंकुरित होते हैं। बीजों को बाहर खुले में सूखने नहीं देना चाहिए। इन्हें स्तरीकृत करने के लिए कुछ महीने नम रेत, पुराने लकड़ी के बुरादे या जंगल की मिट्टी में रखना चाहिए, ताकि यह बीज भ्रूण को विकसित करने में मदद करें। जब तक यह अंकुरण से फटते नहीं, इन्हें एक नम, शांत जगह में संग्रहित किया जाता है।

जिनसेंग के नाम से जानी जाने वाली इस मूल्यवान जड़ी बूटी का उत्पादन हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहौल एवं स्फीति इलाके में संभव हो गया है। सी.एस.आई.आर. हिमाचल एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर द्वारा किए गए परीक्षणों में इस पौधे को सफलतापूर्वक इस जिले में उगाया गया है। किन्नौर जिले की जलवायु भी इस जड़ी बूटी की खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है।

जिनसेंग का रसायनिक विज्ञान तथा उपयोग:-

पारंपरिक हर्बल चिकित्सा में एशियाई जिनसेंग का एक लंबा इतिहास रहा है। यह जीवन को स्वस्थ एवं लंबा बनाने कई बीमारियों के इलाज के लिए तथा सामान्य शरीर की ताकत को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी है। इसमें विटामिन ए, बी-6 और जिनक होता है, जो थाइमिक हार्मोन के उत्पादन में सहायक है तथा रक्षा प्रणाली के कामकाज के लिए आवश्यक है। यह उत्तेजक के रूप में जीवन प्रत्याशा की वृद्धि, धीरज को बढ़ावा देने, तंत्रिका तंत्र को आराम, मानसिक जागरूकता में सुधार, हार्मोन संबंधी कार्यों को प्रोत्साहित करने, लिपिड स्तर कम करने, कोलेस्ट्रॉल में सुधार तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उपयोगी है।

यह भूख और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाने पेरिओड़ोंतल रोग के इलाज, महिलाओं को प्रजनन क्षमता में वृद्धि और बच्चे के जन्म में सहायता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जिनसेंग एक अडेपजोन के रूप में कार्य करता है, जो शरीर की ब्राहा एवं आंतरिक स्थिति को संतुलित करता है तथा वायरल संक्रमण और सूडोमोनास एरुगीनोसा का मुकाबला कर के जीवन के समय को बढ़ाने में उपयोगी है।

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जिनसेंग का सक्रिय घटक:-

एशियाई जिनसेंग के मुख्य सक्रिय तत्व जिंसेंनोसाइड्स या पिनाक्सोसाइड्स ट्राइटनोइड ग्लाइकोसाइड है, जिन्हें इस जड़ी बूटी के औषधीय गुणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जिनसेंग के जड़, तना, पत्ते और फूलों में लगभग 28 जिंसेंनसाइडड्स की पहचान की गई हैं। हालाँकि कुल जिंसेंनसाइडड्स की मात्रा जड़ की उम्र के साथ बदलती हैं। जिंसेंनोसाइड्स की मात्रा पौधे के अन्य भागों की तुलना में अधिकतम पाई जाती है व पौधे की उम्र के साथ बढ़ती रहती हैं। जड़ों को सुखाकर उन्हें गोलियां या कैप्सूल, अर्क, क्रीम या बाहरी उपयोग के लिए प्रयोग किया जाता है।

व्यायाम और मांसपेशियों की ताकत:-

सामान्य तौर पर जिनसेंग दृढ़, टॉनिक और रिवाइटलाइज करने के गुण प्रदर्शित करता है। यह कमजोरी, थकावट और एकाग्रता में कमी के मामलों में तथा मानसिक और शारीरिक क्षमता को बढ़ाने के एक रोगनिरोधी और दृढ़ कारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्रारंभिक अध्ययन में पाया गया है कि एशियाई जिनसेंग एथलेटिक प्रदर्शन में सुधार करने से गैर कसरती पुरुषों और महिलाओं की मांसपेशियों की ताकत में वृद्धि होती है। आठ से बारह सप्ताह के लिए प्रतिदिन 2 ग्राम जड़ पाउडर या 200 से 400 मिलीग्राम अर्क धीरज प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए बहुत प्रभावी है।

तनाव और शारीरिक थकान से राहत:-

जिनसेंग मानसिक तनाव, शारीरिक तनाव और जैविक तनाव से छुटकारा पाने के लिए माना जाता है। यह मस्तिष्क में कोशिका परिसंचरण को बढ़ाता है, जिससे तनाव का प्रभाव कम हो जाता है।यह तंत्रिका तंत्र पर शांत प्रभाव के लिए जाना जाता है और एक उत्कृष्ट ट्रैंक्विलाइजर है।

यह शरीर की थकान और मांसपेशियों में तनाव से राहत में मदद करता है। यह क्लांत ऊतकों और मांसपेशियों को पुनः प्रात्त करने में भी मदद करता है। यह पूरे शरीर के रक्त परिसंचरण को बढ़ाता है, ताकि शरीर को पर्याप्त मात्रा में आवश्यक ऑक्सीजन प्राप्त हो और शरीर के विभिन्न अंग इष्टतम कार्य करें।

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स्मृतिवर्धक:-

जिनसेंग और जिंको( जिंकोगो बाइलोबा) का संयोजन स्मृति और सोच प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है। इसके रसायन रक्त वाहिकाओं के विकास को बढ़ावा देते हैं, जो कि व्यापक चोटों के इलाज में महत्वपूर्ण हो सकता है।

प्रतिरक्षा कार्य:-

जिनसेंग प्रतिरक्षा प्रणाली में कामकाज में सुधार की क्षमता के लिए भी जाना जाता है, जिससे शरीर मजबूत और अधिक सक्रिय बनता है। यह बदले में सहनशक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। यह चयापचय और अंतस्रोवी गतिविधि में भी सुधार लाता है। यह पाया गया है कि प्रतिदिन 2 बार 100 मिलीग्राम एशियाई जिनसेंग अर्क लेने से प्रतिरक्षा कार्य में सुधार आता है व ये जुकाम और गले में खराश को रोकने में भी मदद करता है।

जिनसेंग में प्रतिरक्षा को बढ़ाने के गुण पाए जाते है। यह इन्फ्लूएंजा वायरस और फटिंग सिंड्रोम के संक्रमण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिनसेंग कैंसर के उपचार में उपयोगी दवाओं व कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों के खिलाफ रक्षात्मक भूमिका निभाता है।

लीवर रोग:-

जिनसेंग अर्क हिपेटोसाइट्स पर रक्षात्मक प्रभाव दिखाता है व जिगर की बीमारियां जैसे की जिगर हेपेटाइटिस, सिरोसिस/फाइब्रोसिस और हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) के जोखिम को कम करने के लिए उपयोगी है। यह एंटीऑक्सीडेंट रक्षा तंत्र को बढ़ाता है और जिगर में एंटीआक्सीडेंट एंजाइम सुपर ऑक्साइड डिस्तुटेस, कैटालेस, ग्लूटाथाएओन पर ऑक्सीडेज, ग्लूटाथाएओन-1 गतिविधियों को बढ़ावा देता है।

मधुमेह:-

पारंपरिक चिकित्सा में जिनसेंग को मधुमेह के इलाज के लिए प्रयोग किया गया है क्योंकि यह सीधा रक्त शर्करा के प्रभाव को कम करता है। यह अग्नाशय से इंसुलिन को स्त्रावित करने और इंसुलिन रिसेप्टर्स की संख्या को बढ़ाने में सहायक पाया गया है। यह पाया गया कि प्रतिदिन 200 मिली जिनसेंग अर्क मधुमेह रोगियों के रक्त शर्करा को नियंत्रण कर उर्जा के स्तर में सुधार लाता है।

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इरेक्टाइल डिसफंक्शन:-

पारंपरिक रुप से एशियाई जिनसेंग पुरुष शक्ति के लिए एक सहायक जड़ी बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 3 महीने के लिए प्रतिदिन 1800 मिलीग्राम जिनसेंग अर्क लेने से पुरुषों में कामेच्छा और निर्माण को बनाए रखने की क्षमता में सुधार पाया गया था।

पुरुष बांझपन:-

एशियाई जिनसेंग पुरुष बांझपन के लिए उपयोगी साबित हो सकता है एक अध्ययन में पाया गया कि कि 3 महीने प्रतिदिन 4 ग्राम जिनसेंग लेने से शुक्राणुओं की संख्या और शुक्राणु की गतिशीलता में सुधार होता है।

रजोनिवृत्ति:-

प्रतिदिन 200 मिलीग्राम जिनसेंग रजोनिवृत्ति के मनोवैज्ञानिक लक्षणों को कम करने में मदद करता है जैसे कि अवसाद और चिंता लेकिन पोस्ट मीनोपोजल महिलाओं में शारीरिक लक्षण जैसे कि गर्भ चक्र या यौन रोगों को कम करने में मददगार नहीं है।

जिनसेंग के उत्पादन के लिए कृषि प्रौद्योगिकी तकनीक:-

मिट्टी और जलवायु:-

जिनसेंग के उत्पादन के लिए सूखी, गहरी अम्लीय (पि.एच. 5.5 से 6.5), मध्यम हल्की रेतीली दोमट मिट्टी आवश्यक है, जो कार्बनिक पदार्थ और पोटाश में समृद्ध हो। भारी या बहुत हल्की मिट्टी जिनसेंग के लिए उपयुक्त नहीं है। हालांकि एक छायादार पौध हैं फिर भी रोपण की जगह उत्तर पूर्व दिशा में होनी चाहिए, जिससे यह सूर्य के संपर्क में रहें। यह एक शीतोष्ण पौधा है। वृक्षारोपण के लिए चुने हुए क्षेत्र के तापमान में वार्षिक भिन्नता होनी चाहिए, सर्दियों में लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस व गर्मियों के दिनों में 9 से 14 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। यह उन इलाकों में अच्छी तरह से बढ़ता है, जहां कम से कम 3-4 महीने के लिए 80-110 से.मी. बारिश और बर्फबारी होती हो। शून्य डिग्री सेलियस से नीचे का द्रुतशीतन बीज के अंकुरण के लिए आवश्यक है।

भूमि की तैयारी:-

वन भूमि या ऐसी भूमि जिसकी 1 वर्ष से जुताई नहीं की गई हो, जिनसेंग की खेती के लिए चुनी जाती हैं। भूमि को 6 से 8 बार हाथ से जोता जाता है व शुष्क मौसम में सूर्य के संपर्क में लाया जाता है। जमीन तैयार करते समय मिट्टी में अच्छी प्रकार से सड़ी गली खाद/ हरी खाद 50 से 80 टन प्रति हेक्टेयर की मात्रा में मिलाई जाती है। बीज की क्यारियों में भी इसी तरह खाद दी जाती है व उत्तर-पूर्व सूर्य की तरह ढाल दिया जाता है। बीज क्यारियों में ऊपरी परत रेत और धरण की बराबर मात्रा से बनाई जाती है। जिनसेंग का प्रवर्धन बीज व जड़ द्वारा किया जाता है।

बीज द्वारा प्रवर्धन:-

आमतौर पर जिनसेंग का प्रवर्धन बीज द्वारा किया जाता है। अंकुरित होने के लिए पहले बीजों को लंबे समय तक गर्म/ठंडी मध्य नम जगह पर रखना अनिवार्य है और इस प्रक्रिया को स्तरीकरण के रूप में जाना जाता है। स्तरीकृत बीजों को अक्टूबर-नवंबर के महीने में 10 से 12 सेमी की दूरी पर क्यारियों में बोया जाता है। अंकुरण बहुत धीरे होता है और इसमें 2 से 4 महीने लग जाते हैं। नर्सरी क्यारियों को नम रखा जाता है और मध्य अप्रैल से इन्हें छाया प्रदान की जाती है। जिए 3 का उपयोग करने से बीज अंकुरण में सुधार होता है। आमतौर पर 1 वर्ष पुरानी स्वस्थ जड़ों वाले पौधे प्रतिरोपित किए जाते हैं।

पौधों को ध्यान से खोदकर बाहर निकाला जाता है व एक स्थाई स्थल पर उन्हें 7 से.मी. चौड़ी और 15 से 20 से.मी. ऊंची मेढे बनाकर पंक्तियों में 10 से.मी. की दूरी पर लगाया जाता है। रोपाई मार्च-अप्रैल और अक्टूबर-नवम्बर के बीच किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन शरद ऋतु रोपण के लिए उपयुक्त पाई गई है। 1 वर्ष के बाद इन पौधों को 15 से 20 सेमी की दूरी पर लगाया जाता है।

जिनसेंग की जड़ों द्वारा प्रवर्धन:-

जिनसेंग की छोटी बड़ी जड़े आसानी से रोपित। की जा सकती है बीज रोपाई की तुलना में यह प्रचार का एक अधिक सुनिश्चित माध्यम है और यह फसल के रोपण के समय को कम कर देता है। बीज की तुलना में जड़ों की कीमत काफी अधिक होती है। जड़ों को जितनी जल्दी हो सके लगा देना चाहिए। जड़ों को जमा करके रखने के लिए इन्हें 4 से 6 इंच नम पिट या मिट्टी से ढककर एक शांत व ठंडी जगह पर रखना चाहिए। जाड़ों के समय जड़ों को नम फ्रिज में रखा जाता है।

बसंत में कली प्रसुप्ति तोड़ने के लिए इन्हें 3 महीने या अधिक से लिए 45 डिग्री फारेनहाइट में द्रुतशीतन प्रक्रिया में रखना चाहिए। द्रुतशीतन प्रक्रिया पूरी होने पर इन्हें जल्द ही मिट्टी में लगा देना चाहिए नहीं तो यह जड़ें फ्रिज में ही विकसित होने लग जाती है। अंकुरित कलम को अच्छी तरह से तैयार मिट्टी में 1 इंच नीचे (30 से 45 डिग्री के कोण में) बोया जाता है, तो पौधे की जड़ों का फैलाव अच्छे से होता हैं। जड़ों को 6-12 इंच दूर पंक्तियों में 3-12 इंच दुरी पर लगाना चाहिए।

प्रकाश:-

पौधों को पेड़ों से या फिर ईख की छत से छाया प्रदान की जाती है, ताकि गर्मियों के दौरान 75% प्रकाश में कटौती की जा सके लेकिन हवा का संचालन अच्छी तरह से होना चाहिए। सर्दियों में क्यारियों को सूखी पत्तियों की 4 से 6 से.मी. परत से ढक देना चाहिए, ताकि भूमिगत जड़ों को ठंडे तापमान और पाले की क्षति से बचाया जा सके। बसंत के मौसम के दौरान सूखी पत्तियों की चादर को हटा दिया जाता है।

खरपतवार नियंत्रण:-

क्यारियों को नियमित निराई और गुड़ाई से खरपतवार मुक्त रखा जाना चाहिए। झाडिया अक्सर क्यारियों के बीच में विकसित हो जाती है, इस तरह की झाड़ियों को हटा दिया जाना चाहिए।

खाद और उर्वरक:-

इसकी फसल में किसी भी प्रकार के अकार्बनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्यारियों में मई से जुलाई तक गोबर और बॉन-मिल डाला जाता है व खेती के लिए हर साल मई से जुलाई के बीच खाद/हरी घास तीन बार दी जाती है। हालांकि, 5 से कम पीएच होने पर मिट्टी में फास्फोरस या चुना मिलाया जाता है।

सिंचाई:-

जहां वर्षा अच्छी तरह से हो, वहां सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। गर्मियों के दौरान बारिश न होने पर तीन-चार सिंचाई आवश्यक होती है। अनेक प्रयोगों से पता चला है कि जड़ के विकास के लिए 60% नमी उपलब्ध होनी चाहिए।

जिनसेंग की कटाई:-

रोपण के 4 से 5 साल के बाद जड़ों को बिना नुकसान पहुंचाए बाहर निकाला जाता है। इसकी खुदाई जुलाई से अक्टूबर तक शुष्क मौसम में की जाती है। परिपक्व जड़े 10 सेमी लंबी और 2.5 सेमी मोटी होती है। औसतन 2.2- 5 टन जड़े प्राप्त की जाती है। इसकी जड़ों का बाजार भाव 15 हजार से 20 हजार रूपये प्रति किलो है।

जिनसेंग को सुखाना एवं प्रसंस्करण:-

जड़ों को कटाई के बाद धोया जाता है और गुणवत्ता व लंबाई के आधार पर 3 भागों में विभाजित किया जाता है (20 से.मी. से ज्यादा, 20-10 से.मी. के बीच और 10 से.मी. से कम)। जड़ों को कुछ दिनों के लिए हवादार कमरे में 40-45 डिग्री सेल्सियस पर जाल में फैलाकर रखना चाहिए और फिर अगले कई दिनों के लिए 35 डिग्री सेल्सियस में रखना चाहिए। इस प्रकार जड़ों को पूरी तरह से सुखाने के लिए 10 से 15 दिन लगते हैं। सुखी जड़ों में नमी की मात्रा 8 से 10% होती है।

जड़ों को गत्ते से बने डिब्बे में पैककर ठंडी शुष्क वातावरण में संग्रहित किया जाना चाहिए। जड़ों के रंग, रूप और बनावट को बनाए रखने के लिए इन्हें फफूंद व अधिक गर्मी से संरक्षित किया जाना चाहिए। जिनसेंग का पाउडर गोलिया और कैप्सूल के रूप में भी बेचा जा सकता हैं। जिनसेंग से कई मूल्य वर्धित उत्पाद प्राप्त किए जाते हैं। जैसे कि जिनसेंग शराब, चाय, गम, कैंडी, शहद, सिगरेट आदि।

निष्कर्ष:-

सबसे मूल्यवान चीनी जड़ी बूटी के रूप में जाना जाने वाला पौधा जिनसेंग का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में भी संभव है। लाहौल स्फीति, किन्नौर व चंबा जिले की जलवायु इस जड़ी बूटी की खेती के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह बीज और जड़ से प्रवर्धित किया जाता है व मार्च-अप्रैल और अक्टूबर- नवंबर के महीने में इसे रोपित किया जाता है। यह एक छाया पसंद पौधा है और इसे जैविक खाद/हरी घास के साथ उपचारित किया जाता है।

कटाई रोपण के 4 से 5 साल बाद जुलाई से अक्टूबर तक शुष्क मौसम में की जाती है। जड़ों को अच्छी तरह से सुखाया जाता है व गोलियों या कैप्सूल, अर्क, चाय साथ ही क्रीम या बाहरी उपयोग के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। किसान इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए सी.एस.आई.आर. हिमाचल जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर (हि.प्र.) से संपर्क कर सकते हैं।

साभार:-

विज्ञान प्रगति

प्रस्तुति:-

सुश्री स्वाति वालिया एवं राकेश कुमार,

सी.एस.आई.आर.- हिमाचल जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर (हि.प्र.)

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