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जीरे की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

जीरे की उन्नत खेती
Written by Vijay Gaderi

जीरा कम समय में पकने वाली मसाले की एक प्रमुख फसल है। इससे अधिक आमदनी होती है। जीरे की खेती (Cumin Cultivation) के लिये हल्की एवं दोमट उपजाऊ भूमि अच्छी होती है तथा इसमें जीरे की खेती आसानी से की जा सकती है।

जीरे की उन्नत खेती

उन्नत किस्में:-

आर एस 1:-

यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है। इसका बीज कुछ बड़ा रोयेंदार होता है। यह देशी किस्म की अपेक्षा अधिक रोग रोधी तथा 20 से 25 प्रतिशत अधिक उपज देती है। यह किस्म 80 से 90 दिनों में पककर 6 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।

आर जेड 19 (1988):-

इस किस्म के दाने सुडौल, आकर्षक तथा गहरे भूरे रंग के होते है। यह 125 दिन में पक जाती है एवं स्थानीय किस्मों तथा आर एस 1 की तुलना में उखटा छाछ्या व झुलसा रोग से कम प्रभावित होती है। उन्नत कृषि विधियां अपना कर इस किस्म से 10.5 क्विंटल प्रति हैक्टर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

आर.जेड. – 209:-

राजस्थान के लिये सभी क्षेत्रो के लिये उपयुक्त इस किस्म के दानें सुडोल, बड़े व गहरे भूरे रंग के होते हैं। यह फसल 120-125 दिन में पककर 6-7 क्वि. प्रति हैक्टर उपज देती हैं। इस किस्म में छाछ्या रोग का प्रकोप आर.जेड. – 19 की तुलना में कम होता हैं।

गुजरात जीरा-2 (जी. सी. 2):-

यह किस्म गुजरात कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई हैं। यह 100 दिन में पककर 7 क्वि. प्रति हैक्टर उपज देती हैं।

आर जेड 223 (2007):-

यह किस्म सामान्यतः 120-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत उपज 6.0 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर होती है। यह किस्म यू. सी. 216 से निकाली गई है। इस किस्म में अधिक शाखाएं एवं अधिक अम्बल होते है। इस किस्म के बीज सुडौल एवं लम्बे होते है। यह किस्म उखटा तथा झुलसा रोग के प्रति अधिक प्रतिरोधी है तथा वाष्पशील तेलों का प्रतिशत भी अधिक होता है।

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जी.सी. 4 (2006):-

राजस्थान के सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त इस किस्म के बीज़ सुडौल, आकर्षक तथा गहरे भूरे रंग के होते है। यह किस्म 120 दिन में एक जाती है एवं स्थानीय किस्मों की तुलना में उखटा छाघ्या व झुलसा के कम प्रभावित होती है। इस किस्म से औसत उपज 6 से 7 क्विटल प्रति हैक्टर तक प्राप्त की जा सकती है।

भूमि की तैयारी:-

बुवाई से पूर्व यह आवश्यक है कि खेत की तैयारी ठीक तरह से की जाये इसके लिये खेत को अच्छी तरह से जोत कर उसकी मिट्टी को भुरभुरी बना लिया जाये तथा खेत से खरपतवारों को निकाल कर साफ कर देना चाहिये।

खाद एवं उर्वरक:-

यदि पिछली खरीफ की फसल में 10-15 टन प्रति हैक्टर गोबर की खाद डाली गई हो तो जीरे की फसल के लिये अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं हैं यदि ऐसा नहीं किया गया हो तो 10 से 15 टन प्रति हैक्टर के हिसाब से जुताई से पहले गोबर की खाद खेत में बिखेर कर भूमि में मिला देना चाहिये।”

इसके अतिरिक्त जीरे की फसल को 30 कि.ग्रा. नत्रजन एवं 20 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टर की दर से उर्वरक भी देवें। फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिये एवं नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद एवं शेष आधी 15 कि.ग्रा. नत्रजन बुवाई के 60 दिन बाद सिंचाई के साथ देवे।

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बीज एवं बीजोपचार:-

एक हैक्टर क्षेत्र के लिये 12 से 15 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। बुवाई से पूर्व जीरे के बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित कर बोना चाहिये।

जीरे के फसल में उखटा एवं जड़ सड़न के प्रबन्धन हेतु कार्बोक्सिन व थायरम की बराबर मात्रा मिलाकर 3 ग्राम मिश्रण प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें।

बुवाई:-

जीरे की बुवाई 15 से 30 नवम्बर के बीच कर देनी चाहिये। बुवाई आमतौर पर छिटकवां विधि से की जाती है। तैयार खेत में पहले क्यारियां बनाते है। उनमें बीजों को एक साथ छिटक कर क्यारियों में लोहे की दराती इस प्रकार फिरा देनी चाहिये कि बीज के ऊपर मिट्टी की एक हल्की सी परत चढ़ जाये। ध्यान रखें कि बीज जमीन में अधिक गहरा नहीं जाये।

निराई गुड़ाई व अन्य शस्य क्रियाओं की सुविधा की दृष्टि से छिटकाव विधि की अपेक्षा कतारों में बुवाई करना अधिक उपयुक्त पाया गया हैं कतारों में बुवाई के लिये क्यारियों में 22.5 से 25 सेन्टीमीटर की दूरी पर लोहे या लकड़ी के टुक से लाइनें बना लेते हैं। बीजों को इन्हीं लाइनों में डालकर दराती चला दी जाती है। बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज मिट्टी से एक समान ढक जाये तथा मिट्टी की परत एक सेन्टीमीटर से ज्यादा मोटी न हो।

सिंचाई:-

बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई करनी चाहिये। सिंचाई के समय ध्यान रहे कि पानी का बहाव तेज न हो अन्यथा तेज बहाव से बीज अस्त व्यस्त हो जायेंगें। दूसरी सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह पूरा होने पर जब बीज फूलने लगें तब करें। इसके बाद भूमि की बनावट तथा मौसम के अनुसार 2 से 3 सिंचाई होगी। बनते समय अन्तिम सिवाई गहरी चाहिये परन्तु पकती हुई फसल में सिंचाई नही करें।

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छंटाई व निराई गुडाई:-

जीरे की अच्छी फसल के लिये दो लाई गुड़ाई आवश्यक हैं। प्रथम निराई गुड़ाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद व दूसरी 55 से 60 बाद करनी चाहिये। पहली निराई गुड़ाई के समय अनावश्यक पौधों की छंटाई कर पौधे से पौधे की दूरी 5 सेन्टीमीटर रखें। जहां निराई गुड़ाई का प्रबन्ध न हो सके वहां पर जीरे की फसल में खरपतवार नियन्त्रण हेतु निम्न रसायनों में से किसी एक का प्रयोग करें।

फ्लूक्लोरिलिन:-

1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर लगभग 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर भूमि में मिला दे तत्पश्चात् जीरे की बुवाई करें।

पेण्डीमिथालिन:-

1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर (45 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में) बुवाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें।

टिब्टान :-

1 किलोग्राम सक्रिय तत्व (सवा किलो इग्रान) प्रति हैक्टर (1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में) प्रि इमरजेन्स छिडकाव करें।

ऑक्साडायर्जिल:-

6 ई सी 50 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के बाद 20 दिन के अन्दर अंकुरण के शीघ्र पश्चात् (अर्ली पोस्ट इमरजेन्स) 600 से 700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर छिडकाव करें।

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प्रमुख कीट एवं व्याधियां:-

मोयला:-

इसके आक्रमण से फसल को काफी नुकसान होता है। यह कीट पौधे के कोमल भाग से रस चूस कर हानि पहुंचाता है तथा इसका प्रकोप प्रायः फसल में फूल आने के समय प्रारम्भ होता है।

नियन्त्रण हेतु:-

डायमिथोएट 30 ई.सी. या मैलाथियॉन 50 ई.सी. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये । आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के बाद छिड़काव को दोहरायें।

रस चूसक कीटों के नियंत्रण हेतु कार्बोसल्फान 25 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 20 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करें। कीटनाशी के अवशेष जीरे के दानों में नहीं रहते हैं। मोयला के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.5 एस. एल. 100 मि.ली. प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव भी प्रभावी पाया गया है।

छाछ्या:-

इस रोग का प्रकोप होने पर पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देने लगता रोग की रोकथाम न की जाये तो पौधों पर पाउडर की मात्रा बढ़ जाती है। यदि रोग का प्रकोप जल्दी हो गया हो तो बीज नहीं बनते है।

नियन्त्रण हेतु गन्धक के चूर्ण का 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें या घुलनशील गन्धक चूर्ण 2.5 किलो प्रति हैक्टर की दर से छिड़के अथवा डाइनोकेप 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव करने से भी इसकी रोकथाम की जा सकती हैं आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव/भुरकाव दोहरायें।

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झुलसा (ब्लाइट):-

फसल में फूल आना शुरू होने के बाद अगर आकाश में बादल छाये रहें तो इस रोग का लगना निश्चित हो जाता है रोग के प्रकोप से पौधों के सिरे झुके हुए नजर आने लगते है रोग में पौधों की पत्तियों एवं तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है तथा पौधों के सिरे झुके हुए नजर आने लगते है यह रोग इतनी तेजी से फैलता है कि रोग के लक्षण दिखाई देते ही यदि नियन्त्रण नहीं किया जाये तो फसल को नुकसान से बचाना मुश्किल हो जाता है। नियन्त्रण हेतु बुवाई के 30-35 दिन बाद फसल पर 2 ग्राम थायोफेनेट मिथाईल या मैन्कोजेब को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। आवश्यकतानुसार यह छिड़काव 40 से 45 दिन बाद दोहरायें।

इस रोग के नियन्त्रण हेतु रोग के लक्षण दिखाई देने पर डाईफनोकोना जोल (25 ई.सी.) का 0.5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। दूसरा व तीसरा छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर दुहरावे।

झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु ट्राइकोडमा निरीही जैविक फूंदनाशक दवा की 4 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करके बुनाई करें और बुवाई के 35 दिन पश्चात् प्रोपेकोनेजोल 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करें।

उखटा (विल्ट):-

इस रोग का प्रकोप पौधों की किसी भी अवस्था में हो सकता है लेकिन पौधों की छोटी अवस्था में प्रकोप अधिक होता हैं रोग रो प्रभावित पौधे हरे के हरे ही मुरझा जाते है।

नियन्त्रण हेतु गर्मी में गहरी जुताई करें। बीजों को कार्बेन्डाजिम से 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें। रोग रहित फसल से प्राप्त बीज को ही बोयें रोग ग्रसित खेत में जीरा न बोयें कम से कम तीन वर्ष का फसल चक्र (ग्वार- जीरा – ग्वार-गेहूं- ग्वार- सरसों) अपनायें।

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उपरोक्त कीटों, मुख्यतः चेंपा तथा व्याधियों की रोकथाम के लिये निम्न पौध संरक्षण उपाय अपनायें:-

प्रथम छिड़काव:-

बुवाई के 30-35 दिन बाद फसल पर मैन्कोजेब का 2 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

द्वितीय छिड़काव:-

बुवाई के 45 से 50 दिन बाद उपर्युक्त फफूंदनाशक के साथ डाइनोकैप 1 ली. प्रति है. व डाईमिथेएट 30 ईसी 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

तृतीय छिड़काव:-

दूसरे छिड़काव के 10 से 15 दिन बाद उपर्युक्त अनुसार ही छिड़काव करें।

भुरकाव:-

यदि आवश्यक हो तो तीसरे छिड़काव के 10 से 15 दिन बाद 5 कि.ग्रा. गन्धक के चूर्ण का प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें।

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कटाई:-

जीरे की फसल 90 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। फसल को दांतली से काटकर अच्छी तरह सुखा लेवें। फसल के ढेर को जहां तक सम्भव हो पक्के फर्श पर धीरे-धीरे पीट कर दानों को अलग कर लेंवे। दानों से धूल, हल्का कचरा एवं अन्य पदार्थ प्रचलित विधि द्वारा ओसाई करके दूर कर देवें तथा अच्छी तरह सुखा कर बोरियों में भरें।

उपज:-

उपर्युक्त उन्नत कृषि विधियां अपनाने से 6 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टर जीरे की उपज प्राप्त की जा सकती है।

भण्डारण:-

भण्डारण करते समय दानों में नमी की मात्रा 8.5 से 9 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिये। बोरियां को दीवाल से 50-60 सेन्टीमीटर की दूरी पर लकड़ी की पट्टियों पर रखें व चूहों व अन्य कीटों के नुकसान से बचावें। संग्रहित जीरे को समय-समय पर धूप में रखें। उपज की गुणवत्ता के मापदण्डों के अनुसार यह आवश्यक है कि कटाई के बाद भी सभी क्रियाओं में गुणवत्ता बनाये रखने के लिये पूर्ण सावधानी रखी जावें।

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