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जुनोसिस: पशुओं से मनुष्य में होने वाला संक्रामक रोग कारण एवं बचाव

जुनोसिस: पशुओं से मनुष्य में
Written by Vijay Gaderi

मनुष्य का पशुओं के साथ बहुआयामी संपर्क होने के कारण कई संक्रामक रोग विभिन्न माध्यमों के द्वारा मनुष्य में फेल कर हानि पहुंचा सकते हैं। संक्रामक रोग पशुओं से प्रदूषित वायु, कीट पतंगों के काटने से रोगी पशु के संपर्क से, लार या खून से मनुष्यों में फ़ैल सकते हैं। कई संक्रामक बीमारियां जानलेवा भी हो सकती है जैसे जुनोसिस (Zoonosis), रेबीज ,एन्थ्रेस, ग्लैंडर्स इत्यादि अतः पशुपालकों को इन संक्रामक रोगों से सावधान रहना चाहिए।

जुनोसिस: पशुओं से मनुष्य में

जुनोसिस के कारण:-

  1. पशुओं द्वारा खरोंचे अथवा काटे जाने पर।
  2. मनुष्य एवं पशुओं के एक छत के नीचे साथ-साथ या सोने से।
  3. संक्रमित पशुओं को सीधा संपर्क।
  4. अनुचित प्रबंधन।
  5. प्रदूषित जल या आहार से।
  6. व्यावसायिक संपर्क।
  7. मल या मूत्र से।
  8. कच्चे दूध या अधपके मांस एवं अंडे के सेवन से।
  9. मृत पशु के शव के अनुचित स्थानांतरण एवं विस्थापन द्वारा।
  10. कीट पतंगों के काटने से।
  11. संक्रमित उपकरणों के संपर्क में आने से।
  12. संक्रमित मिट्टी एवं वायु के संपर्क से।

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जुनोसिस से बचाव:-

  1. मनुष्य एवं पशुओं के संक्रामक रोगों की नियमित जांच।
  2. संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें।
  3. कीट पतंगों की रोकथाम करें एवं पशु आवास में समय-समय पर कीटनाशक दवा का प्रयोग करें।
  4. पशुओं एवं मनुष्यों का टीकाकरण।
  5. संक्रमण रोगों की जानकारी एवं उनका बचाव।
  6. बीमारी की सही समय जांच एवं इलाज।
  7. जैव सुरक्षा उपायों का सही पालन।
  8. पशुशाला क्षेत्र में पशुपालन कलापों के पश्चात अपने हाथ-पैर को साबुन से अच्छी तरह धोए।
  9. कच्चा दूध एवं अधपका मांस खाने से बचे।
  10. घर में पशुओं के रहने की अलग व्यवस्था करें।
  11. गर्भवती महिला एवं बुजुर्ग आवास में कम से कम जाए।
  12. पशु आवास में नंगे पैर कभी न जाए।
  13. अगर किसी पशु का गर्भपात हुआ हो तो गर्भकाल एवं भ्रूण का सही स्थानांतरण कर पशु आवास फिनाइल से साफ करें।
  14. रोग ग्रस्त पशु के दूध का सेवन ना करें एवं रोग ग्रस्त पशु का दूध पशुशाला में या उसके आसपास न फेके।
  15. बाहरी जंगली पशु पक्षियों का पालतू पशुओं से संपर्क ना होने दें।
  16. पशुपालन में स्वच्छता का ध्यान देना चाहिए।
  17. मरे हुए पशु का सही निष्पादन करें।
  18. समय-समय पर चिकित्सक द्वारा पशुओं का रोग परीक्षण करवाएं।
  19. पशुपालन एवं पशु पालकों के शरीर पर किसी भी प्रकार का जन्म होने पर तुरंत रोग नाशक दवा से साफ करें तथा जख्म को मिट्टी एवं मल मूत्र के संपर्क में आने से बचाएं।
  20. पशुशाला क्षेत्र में खाने-पीने की वस्तुओं को मुंह में डालने से बचें।

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प्रस्तुति:-

पीयूष तोमर, पंकज गुणवंत एवं सुनील कुमार,

पशु चिकित्सा स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग,

पशु मादा एवं प्रसूति रोग विभाग,

लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार

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Vijay Gaderi

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