उन्नत किस्में एवं उनकी विशेषताएँ
सी. एस. वी.15 (1996):-
यह ज्वार की किस्म द्विउद्देशीय होने से अधिक उपयोगी है। इसकी औसत ऊँचाई 211 सें.मी. व पैदावार 28 क्विंटल दाना व 117 क्विंटल चारा प्रति हैक्टर है।
सी.एस. वी. 17 (2003):-
यह किस्म कम समय (85-90 दिन) में पक जाने के कारण सूखे से प्रभावित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। पौधों की ऊँचाई 140-150 सें.मी. उपज 25-30 क्विंटल दाना व 55-60 क्विंटल चारा प्रति हैक्टर है। यह किस्म तन मक्खी, तना छेदक व शीर्ष मक्खी कीटों के प्रति सहनशील तथा एन्थ्रेकनोज, पत झुलसा, भूरा पत्ती धब्बा, अंगमारी रोगों के लिए प्रतिरोधी व जोनेट पत्ती धब्बा के लिए आंशिक प्रतिरोधी है।
प्रताप ज्वार 1430 (2004):-
यह द्विउद्देशीय किस्म सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जो 90-95 दिनों में पककर तैयार होती है। पौधे की ऊँचाई 180-200 सें. मी. व उपज 30-35 क्विंटल दाना व 110 – 115 क्विंटल चारा प्रति हैक्टर है। तना छेदक, शीर्ष मक्खी व मिज कीटों के प्रति सहनशील है।
सी.एस.वी. 23 (2007):-
यह बहुउद्देश्य संकर किस्म 110 से 115 दिन में पक के तैयार हो जाती है। इसके पौधों की ऊंचाई 215 से 225 सेमी. होती है। दाने की पैदावार 25 से 30 क्विण्टल एवं चारे की पैदावार 160 से 170 क्विण्टल प्रति हैक्टर है। चारे में प्रोटीन 7.15 प्रतिशत एवं पाचनशील शुष्क पदार्थ 45.7 प्रतिशत होता है।
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हरे चारे के लिए ज्वार की उन्नत किस्में:-
बहु कटाई किस्में:-
एम.पी. चरी (1978):-
यह भी चारे की कटाई लेने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी भी पहली कटाई बुवाई के 55 से 60 दिन बाद और बाद की प्रत्येक कटाई 35 से 40 दिन के बाद ली जा सकती है। इस किस्म से लगभग 350 से 400 क्विंटल चारा प्रति हैक्टर प्राप्त किया जा सकता है।
एस. एस. जी. 59-3 (1978):-
इस किस्म के चारें की 2-3 कटाई आसानी से ली जा सकती है। पहली कटाई बुवाई से लगभग 55 से 60 दिन के बाद ली जा सकती है। दूसरी कटाई प्रथम कटाई के 35-40 दिन बाद ली जा सकती है। इससे औसतन 400-500 क्विण्टल चारा प्रति हैक्टर प्राप्त किया जा सकता है।
नोट :- हरे चारे के लिये ज्वार की किसी भी किस्म की प्रथम कटाई 45 दिन से पहले न करे, अन्यथा पशुओं को नुकसान हो सकता है।
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एकल कटाई किस्में –
राजस्थान चरी – 1 (1983):-
इसके पौधों की ऊँचाई 190 से 220 सें.मी. होती है। इसकी कटाई 85 से 90 दिन में की जा सकती है। अधिक एवं सुनिश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त इस किस्म से प्रति हैक्टर 400 से 500 क्विंटल चारा प्राप्त होता है।
राजस्थान चरी – 2 (1984):-
इसके पौधों की ऊँचाई 190 से 220 सें.मी. होती है। यह किस्म लगभग 70 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। सामान्य एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त इस किस्म से प्रति हैक्टर 300 से 350 क्विंटल चारा प्राप्त होता है।
प्रताप चरी 1080 (एस.यू. 1080):-
यह किस्म राज्य में 60 से 65 दिनों में तैयार होकर 350 से 400 क्विंटल प्रति हैक्टर हरे चारे उपज देती है। 125 से 135 क्विंटल प्रति हैक्टर तक सूखे चारे का उत्पादन देने वाली यह किस्म 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टर बीज का उत्पादन देती है। ज्वार के चारे की उच्च गुणवत्ता वाली यह किस्म प्रमुख रोगो एवं कीटो से सामान्य प्रतिरोधी है ।
खेत एवं उसकी तैयारी:-
संकर एवं उन्नत ज्वार के लिए ऐसे खेत का चुनाव कीजिए, जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो । पानी के भराव वाले क्षेत्रों में ज्वार नहीं बोनी चाहिये। जहाँ 40 से
50 सें.मी. के लगभग वर्षा होती है, वहाँ संकर ज्वार असिंचित फसल के रूप में बोई जा सकती है। मानसून की वर्षा से पूर्व देशी हल या त्रिफाली या बक्खर से अच्छी तरह जुताई करके खेत तैयार कर लें। ज्वार फसल के लिए अधिक जुताई की आवश्यकता नहीं होती है। एक गहरी जुताई के बाद बुवाई पूर्व एक जुताई पर्याप्त है। बीज अंकुरण के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। जुताई के 20 दिन पहले प्रति हैक्टर 20 से 25 गाड़ी गोबर की खाद डालकर अच्छी तरह से मिला लीजिये।
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बीजोपचार:-
संकर ज्वार के प्रमाणित बीज वैसे तो उपचारित करके ही वितरित किये जाते हैं परन्तु यदि वे उपचारित न हो तो एक किलो बीज को 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर काम में लीजिये।
ऐजोटोबेक्टर कल्चर से बीजोपचार किया जाना भी लाभप्रद रहता है। इससे 20 किलो नत्रजन की प्रति हैक्टर बचत की जा सकती है। ज्वार के बीज को थायोयूरिया के 0.1 प्रतिशत घोल में 8-12 घंटे तक भिगोकर बुवाई करने से शुष्क बीज की तुलना में आशातीत लाभ होता है।
बीज की दर एवं बुवाई:-
दाने के लिए प्रति हैक्टर 9-10 किलोग्राम ज्वार का प्रमाणित बीज बोइये। वर्षा शुरू होते ही 45 सें.मी, कतारों में बीज ऊर दीजिये। भारी मिट्टी में बुवाई के बाद कतारों के ऊपर बक्खर चलायें। ध्यान रखिये कि बीज 4-5 सें.मी. से गहरा न जाये पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सें.मी. रखिये। पौधों की संख्या प्रति हैक्टर डेढ़ से पौने दो लाख होना चाहिये। चारे वाली किस्मों की बुवाई के लिए 25-30 किलो ज्वार का प्रमाणित बीज प्रति हैक्टर 25 से 30 सें.मी. की दूरी पर कतारों में बोयें। वर्षा के तुरन्त बाद बुवाई करने की अपेक्षा वर्षा से पूर्व वर्षा की भविष्यवाणी के बाद सूखी बुवाई करने से अधिक पैदावार प्राप्त होती है।
अंकुरण के बाद जहाँ कहीं भी घने पौधे दिखाई दें वहाँ बीच-बीच से पौधे उखाड़ दें। उखाड़े गये पौधों को जानवरों को न खिलायें क्योंकि ये जहरीले होते हैं। यदि वर्षा कम हो तो कतारों में पौधों की छंटाई कर दें। ज्वार की जल्दी पकने वाली व बौनी किस्मों (जैसे सी. एस. वी. 17 ऊँचाई 150 – 160 सें.मी.) की बुवाई 30 सें.मी. दूरी पर कतारों में व 15 सें.मी. पौधों की दूरी (2.2 लाख पौधे प्रति हैक्टर) रखें।
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अंतःआश्य:-
ज्वार के साथ अरहर, उड़द, मूंग आदि दलहनी फसलों की अन्तराशस्य जहाँ भी संभव हो लेनी चाहिये। इसके लिए ज्वार की दो कतारें 30-30 सें.मी. की दूरी पर तथा ऐसे दी जोड़ों के बीच 60 सें.मी. में एक कतार दलहनी फसलों की बोइये। ज्वार के साथ अरहर की मिलवां खेती करते हुए भी ज्वार के पौधों की आपसी दूरी 12-15 सें.मी. ही रखिये। अन्तराशस्य के लिए अरहर की लम्बी अवधि वाली किस्म बोयें।
चंवला व ज्वार (हरा चारा) की दो-दो कतारें अन्तराशस्य क्रिया करके लगाने पर 80:40:40 किलो एन.पी. के प्रति हैक्टर देने से, सिफारिश के अनुसार उर्वरक देने की अपेक्षा अधिक आर्थिक लाभ मिलता है।
ज्वार-मूंगफली की द्विवर्षीय फसल चक्र अपनाकर अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उक्त फसल चक्र में फसल के लिए निर्धारित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करें। ज्वार में सोयाबीन अन्तराशस्य हेतु कतार से कतार की दूरी 30 सें.मी. रखते हुए तीन कतारें ज्वार की एवं छः कतारें सोयाबीन की लेने से सर्वाधिक ज्वार तुल्य पैदावार, शुद्ध आय एवं लाभ प्राप्त होता है। ज्वार के साथ तिल या ग्वार चार दो के अनुपात में अन्तराशस्य की सिफारिश की जाती है।
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उर्वरक:-
(वर्षा, सिचिंत, असिचिंत, किस्म उपयोगिता) | नाइट्रोजन किग्रा / हेक्टर | फास्फोरस किग्रा. / हैक्टर | पोटाश किग्रा / हैक्टर | अन्य |
सिंचित | 80 | 40 | 40 | – |
या 40 | 20 | 20 | 2.5 टन FYM. 500 ग्रा. एजेक्टोबेक्टर, 500 ग्रा. PSB | |
असिंचित | 40 | 20 | – | – |
दाने के लिए | 80 | 40 | 40 | 25 किलो ZnSO4 बुवाई के साथ |
चारे के लिए | 80 | 40 | 40 | 15 किलो ZnSO4 बुवाई के साथ व 02 % ZnSO4 का छिडकाव बुवाई के 15 व 30 दिन बाद करें। |
फास्फेट की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पूर्व कतारों में 10 सें.मी. गहरा ऊर कर दीजिये। नत्रजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में बुवाई के एक माह में बाद वर्षा होने पर अथवा सिंचाई के साथ देनी चाहिये। यदि पूर्व रबी की फसल में फॉस्फेट दिया गया हो तो फॉस्फेट देने की आवश्यकता नहीं है। ज्वार की फसल में सिफारिश से नत्रजन की आधी मात्रा देने पर ज्वार की पैदावार औसतन तीन क्विंटल प्रति हैक्टर कम हो जाती है।
एजोस्पाइरीलम एवं फास्फोरस जीवाणु खाद (500+500 ग्राम / हैक्टर) के उपयोग से ज्वार में उपयोग की जाने वाली रासायनिक उर्वरकों में 20 प्रतिशत नाइट्रोजन तथा 25 प्रतिशत फास्फोरस की बचत की जा सकती है।
ज्वार एवं चना फसल प्रणाली में समन्वित पोषक तत्व प्रबन्धन के लिये ज्वार की फसल में नत्रजन की 75 प्रतिशत अनुमोदित मात्रा रासायनिक खाद से एंव 25 प्रतिशत अनुमोदित मात्रा वर्मीकम्पोस्टर + एजोस्पाइरीलम एंव पीएसबी से बीज उपचारित करने पर दाने एवं सूखे चारे की अधिक उपज प्राप्त होती है। ज्वार की फसल में नत्रजन उपयोग दक्षता को बढ़ाने के लिए नत्रजन की प्रतिशत मात्रा बुवाई के समय + 25 प्रतिशत 30 दिन पश्चात एंव 25 प्रतिशत मात्रा पुष्पावस्था पूर्व देने से दाने एंव चारे का अधिकतम उत्पादन होता है।
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ज्वार में सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई:-
खड़ी फसल में उर्वरक देने के बाद और सिट्टे आते समय पौधों को पानी की अधिक आवश्यकता रहती है। अतः उस समय यदि वर्षा न हो और सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो तो सिंचाई अवश्य करनी चाहिये। बुवाई के 15-20 दिन बाद निराई करके खरपतवार निकाल दीजिये। शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु आधा किलोग्राम एट्राजीन सक्रिय तत्व का बुवाई के तुरन्त बाद या एलाक्लोर 0.75 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर बुवाई के तुरन्त बाद तथा ज्वार के साथ तिल के अंतराशस्य के लिये एलाक्लोर 0.75 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर बुवाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें।
ज्वार में नमी संरक्षण करने के लिए ज्वार को समतल खेत में कूंडों में 45 से की की दूरी पर बुआई करे। बुआई के 25 दिन बाद कुदाली की सहायता से पौधों के पास मेंढ़ बना दें तथा दो कतारों के बीच में नाली बना दें। इस कूंड व नाली विधिय से अन्य विधियों की अपेक्षा अधिक नमी संरक्षित की जा सकती है।
फसल संरक्षण
सिट्टा फफूंद:-
बीज के लिए फसल लेने की स्थिति में दाना बनते समय यदि वर्षा हो जाये कार्बोन्डिजम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल सिट्टा फफूंद की रोकथाम हेतु छिड़किये। दूसरा छिड़काव वर्षा के 15 दिन बाद कर दीजिये।
तना मक्खी:-
यह अंकुरण के चार सप्ताह तक आक्रमण करती है। वैसे वर्षा आरम्भ होते ही तुरन्त एक सप्ताह के अन्दर बुवाई कर देने पर इसका आक्रमण बहुत कम होता है। देर से बुवाई करते समय इसकी रोकथाम हेतु बुवाई के समय कतारों में बीज से 3 से.मी. नीचे 15 किलो प्रति हैक्टर की दर से फोरेट 10 प्रतिशत कण कड में ऊरकर देवें। इस हेतु बीज को भी उपचारित कर बोयें। जहां सफेद लट की रोकथाम हेतु उपचार किया गया हो उन क्षेत्रों में अतिरिक्त उपचार की आवश्यकता नहीं है।
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सैन्य कीट:-
आक्रमण होने पर पौधों को इस कीट से बचाने हेतु मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भुरकें।
तना छेदक:-
इसके लिये प्रकाश पाश का प्रयोग कीजिये। रात के समय परात में पानी भर कर मिट्टी का तेल डाल दीजिये और उसमें लालटेन जलाकर रखिये ताकि तना छेदक के पतंगे उसमें गिरकर मर जायें। फसल की कटाई के बाद डंठलों को उखाड़ कर जला दें जिससे तना मक्खी व तना छेदक की लटें आदि नष्ट हो जायें। तना छेदक का प्रकोप कम करने के लिए क्यूनॉलफॉस 5 प्रतिशत 8 से 10 किलोग्राम कण प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के 25 दिन बाद पौधों के पोटों में (5 से 7 कण प्रति पौधा) डालें। बाद में आवश्यकता हो तो उपरोक्त दवाओं में से किसी एक दवा के कण दस किलो प्रति हैक्टर की दर से पौधों के पोटो में डालें।
तना छेदक का प्रकोप कम करने के लिए नीम की पत्तियों के घोल का छिड़काव भी किया जा सकता है। घोल तैयार करने के लिए एक किलो ताजा पत्तियों को बारीक पीसकर दस लीटर पानी में मिलाकर महीन कपड़े से छान लें। अच्छे छिड़काव के लिए इसमें 10 ग्राम साबुन का घोल मिलायें एवं फसल पर 10, 20 एवं 30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें।
फड़का:-
फड़का नियन्त्रण के लिए खेतों के आस-पास की पड़त भूमि पर ग्रीष्मकालीन जुताई करें। फड़का का प्रकोप होने पर फसल पर मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें।
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फड़के के नियंत्रण हेतु:-
क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. 1.25 ली. या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. 1.25 ली. या डाईक्लोरोवॉस 76 ई.सी. 1.0 ली. प्रति हैक्टर की दर से सावधानीपूर्वक गैर-फसल क्षेत्रों मेडो पर सीटे / भुट्टे आने से पूर्व प्रारम्भिक अवस्था में छिड़के।
उदमिद्भक्षी (माईट्स):-
यदि इनका प्रकोप हो तो ढाई किलो घुलनशील गंधक या मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. एक लीटर प्रति हैक्टर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
अन्य कीट:-
जाला बनाने वाली लट, सिट्टा बग, ब्लिस्टर भृंग, चैफर भृंग, फली छेदक, माहु आदि के लिए 2 किलो कारबेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का पानी में घोल बनाकर छिड़काव कीजिये अथवा कारबेरिल 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव कीजिये।
कण्डवा रोग:-
इसकी रोकथाम के लिए ज्वार का प्रमाणित व उपचारित बीज ही बोयें। पत्ती धब्बा रोग पत्ती चक्कता, अंगमारी, एथेंकनोज एवं जोनेट पत्ती धब्बा रोग से बचाव हेतु सी. एस. एच. 5 एवं सी. एस. एच. 6 प्रतिरोधी किस्में बोईये। जहाँ रोग के प्रकोप की संभावना हो वहाँ प्रति हैक्टर 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50WP का छिड़काव करें एवं आवश्यकता हो तो 15 दिन बाद इस छिड़काव को दोहरावें।
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