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टिकाऊ खेती से उत्पादन में बढ़ोतरी

टिकाऊ खेती
Written by Vijay Gaderi

किसानों के मुनाफे और उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी होती रहे साथ ही हमारा पर्यावरण सुरक्षित बना रहे इसके लिए आवश्यक है की टिकाऊ खेती से सम्बन्धित तकनीक का ज्ञान किसानों की पहुँच में  हो। (Sustainable agriculture)

टिकाऊ खेती

भविष्य में मृदा स्वास्थ्य एवं उत्पादन को सरंक्षित रखने एवं उसे  टिकाऊ बनाने के लिए जैविक खेती की नितांत आवश्यकता है।

खेती की यह पद्धति कोई नई है वरन आधुनिक विज्ञान के समन्वय से उपयोग में लाई जाने वाली पारम्परिक विद्या है जो फसल चक्र, फसल अवशेष, हरी खाद, गोबर की खाद, जैविक खाद एवं जैविक दवाओं पर आधारित है।

इसका मुख्य उद्देश्य भूमि की उर्वरता व उत्पादकता में लम्बे समय तक टिकाऊपन बनाये रखना साथ ही खाद्य उत्पादन भी रासायनिक तत्व रहित, सुपाच्य, स्वादिष्ट और गुणवत्तायुक्त प्राप्त करनां है।

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कैसे रखें मृदा स्वास्थ्य?:- (टिकाऊ खेती)

मिट्टीस्वास्थ्य से आशय है की  भूमि की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशाएं फसल उत्पादन के लिए अनुकूल बानी रहें। मृदा को स्वस्थ रखने के लिए निम्न बिंदुओं का अनुसरण करना चाहिए।

मृदा परीक्षण:-

मृदा स्वास्थ्य जानने के लिए अपने खेत की मिट्टी के नमूनों का परिक्षण कराकर निम्न लिखित जानकारी ली जासकती है।

मिट्टी में पोषक तत्वों की जानकारी:-

मृदा परीक्षण से सामान्यतया मुख्य पोषक तत्व जैसे – नत्रजन, स्फुर, पोटाश, सल्फर, एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों के स्तर का पता चलता है।

मृदा का पी एच मान:-

मिट्टी की अम्लीयता या क्षारीयता या लवणीयता के बारे में जानकारी मिलती है और ये गुण फसलों के मृदा से जल पोषक तत्व अधिग्रहण को प्रमुख तौर पर प्रभावित करने वाले कारक है।

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कार्बनिक पदार्थ की मात्रा:- (टिकाऊ खेती)

कार्बनिक पदार्थ मृदा की जलधारण क्षमता, उर्वरता तापमान, लाभकारी जीवाणुओं की सक्रियता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है।

विद्युत चालकता:-

इसके द्वारा मृदा में घुलनशील लवणों की मात्रा का ज्ञान होता है और इसकी कमी या अधिकता फसल उत्पादन को प्रभावित करती है।

मृदा सुधारक:-

मिट्टी की अम्लीय या क्षारीयता की स्थिति में प्रयोग किये जाने वाले मृदा सुधारक जैसे – चुना, जिप्सम की मात्रा का निर्धारण किया जाता है।

मृदा परीक्षण के द्वारा उपरोक्त जानकारी के आधार पर ली जाने वाली फसल के अधिकतम उपज के लिए पोषक तत्वों की सिफारिश की जाती है। जिसे संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन कहते है। इसी प्रकार मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण बनाये रखने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए।

मृदा में कार्बनिक पदार्थ का स्तर:-

  • कार्बनिक पदार्थ मृदा की जलधारण क्षमता, उर्वरता तापमान, लाभकारी जीवाणुओं की सक्रियता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक है। अतः मृदा में कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता बनाये रखने के लिए कार्बनिक खाद जैसे:- गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करें।
  • हरी खाद वाली फसलें का फसल चक्र में हर सम्भव समावेश करें। जैसे सनई, ढेंचा, ज्वार, मुंग, आदि।
  • सेंद्रिय खाद जैसे – करंजवली, महुआ खली, नीम खली आदि प्रयोग अवश्य करें।
  • फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर उनके अपघटन के लिए प्रबंधन करें।
  • समन्वित एवं संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन करें।

फसलें मृदा से जितने पोषक तत्व ग्रहण करती है उनका पुर्नभरण मृदा उर्वरता बनाये रखने के लिए आवश्यक है। अतः मृदा परीक्षण परिणामों के अनुसार संतुलित पोषण करें। समन्वित पोषण तत्व प्रबंधन से आशय है की पोषक तत्वों के सभी स्रोतों जैसे :- उर्वरक, कार्बनिक खाद, जैविक खाद एवं फसल अवशेषों आदि का कुशल एवं श्रेष्ट समायोजन करना है।

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समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन के प्रमुख तत्व:-

  • प्रमुख पोषक तत्वों (नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाशrकी पूर्ति के लिए रासायनिक खादों के प्रयोग के साथ-साथ कार्बिनक खाद, जैविक खाद, हरी खाद का प्रयोग भी किया जाये।
  • द्वितीय पोषक तत्वों (सल्फर, केल्सियम, मैग्नीशियम की कमी होने पर जिप्सम, चुना एवं अन्य स्रोत भी काम में लिए जाय।
  • आवश्यकतानुसार सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने के लिए उर्वरकों को मृदा में डाले या पौधों पर छिड़काव करें। प्रमुख रूप से जिंक, लोहा, मेगनीज तत्वों की कमी होती जा रही है।
  • उर्वरकों को मात्रा फसल चक्र के अनुसार निर्धारित करें।
  • देशी खाद एवं हरी खाद का हर संभव प्रयोग बढ़ाने से सभी पोषक तत्व फसलों को धीरे-धीरे प्राप्त होते रहते है।
  • जैविक खाद जैसे दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर, अन्य सभी फसलों में पी एस बी कल्चर एजोटोबेक्टर आदि का प्रयोग करने से रासायनिक खादों के प्रयोग में कमी की जा सकती है।
  • फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश करें।
  • फसल अवशेषों को मृदा में मिलाकर उनके सीधे अपघटन की व्यवस्था देने हेतु नमी बनाये रखे।

मृदा सुधार के उपाय:-

  1. मृदा यदि लवणीय, क्षारीय या अम्लीय है तो सुधार करना सफल कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक है। लवणीय मृदाओं में घुलनशील लवणों की मात्रा अधिक होती है जबकि क्षारीय मृदाओं में सोडियम की मात्रा अधिक होती है। जिसके कारण पौधे भूमि में उपलब्ध जल एवं पोषक तत्वों का अधिग्रहण नहीं कर पाते है।
  2. लवणीय मृदा सुधरने के लिए भूमि समतलीकरण करें। मेड़बंदी करके या क्यारियां बनाकर वर्षा या सिंचाई जल भराव करके घुलनशील लवणों का निक्षालन करें। भूमि की सतह पर एकत्रित लवणों की परत खुरच कर हटाए।
  3. क्षारीय भूमि सुधारने के लिए मृदा परिक्षण परिणामों के अनुसार जिप्सम, केल्साइट, सल्फर इत्यादि का प्रयोग करें। हरी खाद फसल ढेंचा क्षारीय भूमि सुधारने में सहायक सिद्ध हुई है।
  4. अम्लीय भूमि सुधरने हेतु मृदा पी एच मान के अनुसार चुना की मात्रा डालें।
  5. कृषि रसायनों का प्रयोग करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं। कृषि रसायनों जैसे कीटनाशक, खरपतवारनाशी आदि का प्रयोग कम से कम करने के लिए

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समन्वित खरपतवार प्रबंधन:- (टिकाऊ खेती)

समन्वित खरपतवार प्रबंधन में शुद्ध खरपतवार रहित बीजो का प्रयोग, कृषि मशीनरी के उपयोग और सिंचाई नालियों को खरपतवार से मुक्त रखना, जैविक नियंत्रण, निराई-गुड़ाई आदि के प्रयोग से खरपतवार के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

कीट प्रबंधन:-

कीट प्रबंधन के सभी उपाय जैसे – फसल चक्र अपनाना, प्रकाश प्रपंच का उपयोग, फेrरोमोन ट्रेप, जैविक कीट नियंत्रण, कीटनिरोधक किस्मों की बुवाई आदि का प्रयोग कर रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम किया जा सकता है।

समन्वित रोग प्रबंधन:-

रोग प्रबन्धन के सभी उपाय जैसे रोग रहित उन्नत किस्म के बीज काम में लेना, रोगग्रस्त फसल अवशेषों को जलाना, ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई संतुलित पोषक, बुवाई के समय में परिवर्तन फसल चक्र अपनाना आदि के साथ रोगनाशक दवाओं का प्रयोग कम किया जा सकता है।

मृदा सरंक्षण के उपाय:- (टिकाऊ खेती)

  1. भूमि की ऊपरी सतह की मिट्टी सर्वाधिक उपजाऊ होती है। अतः जल एवं वायु से मृदा क्षरण रोकने के प्रयास करने चाहिए।
  2. ढलान के विपरीत जुताई एवं बुवाई करें।
  3. जल का कुशलता से प्रबंधन करें।
  4. मेड़बंदी करके खेत में वर्षा के पानी को रोकें। मृदा में कार्बिनक पदार्थों की मात्रा नियमित कर मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा नियमित कर मृदा में अन्तः जल स्रवण बढ़ाएं।
  5. आवश्यकता से अधिक भूपरिष्करण कार्य जैसे – जुताई आदि से मृदा की संरचना पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  6. कृषि वानिकी अपनाएं।
  7. मृदा की उर्वकता बढ़ाने फसलों जैसे – मुंग, चना आदि का समावेश कर पट्टीदार खेती करें।

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