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तारामीरा की उन्नत खेती एवं तकनीक

तारामीरा
Written by Vijay Gaderi

तारामीरा (Taramira Farming) सभी क्षेत्रों में पैदा होने वाली इस फसल को अनुपजाऊ एवं अनुपयोगी भूमि पर भी बोया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 35 प्रतिशत पायी जाती है।

तारामीरा की उन्नत खेती

उन्नत किस्में:-

टी 27 (1974):-

सूखे की प्रति सहनशील, बारानी क्षेत्रों में बुवाई के लिये उपयुक्त इस किस्म की औसत उपज 6-8 क्विंटल प्रति हैक्टर तथा पकाव अवधि 150 दिन है इसमें तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।

आर.टी.एस.ए. (1978):-

बारानी क्षेत्रो के लिये उपयुक्त यह किस्म 150 दिन में पकती हैं। इस किस्म की औसत उपज 6.5 क्वि. प्रति हेक्टर तथा इसमें तेल की मात्रा 35-36 प्रतिशत होती हैं। यह सूखा सहनशील किस्म हैं।

आर.टी.एम. (नरेन्द्रतारा) (2002):-

यह किस्म सामान्य एंव देरी से बुवाई के लिये उपयुक्त हैं। इसकी औसत उपज 12-14 वि. प्रति हैक्टर हैं। क्वि. इस किस्म में तेल की मात्रा अधिक पायी जाती हैं तथा यह सफेद रोली, छाछ्या व तुलासिता के प्रति रोगरोधक हैं।

आर. टी. एम. 314:-

बारानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त, 90-100 सेन्टीमीटर ऊँची इस किस्म की शाखाएं फैली हुई होती है। इसके 1000 दानों का वजन 3.5 ग्राम एवं तेल की मात्रा 36.9 प्रतिशत होती है। 130-140 दिन में पककर यह 12-15 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है।

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भूमि की तैयारी एवं उपचार:-

तारामीरा के लिये हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है अम्लीय एवं ज्यादा क्षारीय भूमि इसके लिये उपयोगी नहीं है तारामीरा की खेती सामान्यतः बारानी परिस्थिति में होती है। वर्षा ऋतु में चारे के लिए ज्वार, चंवला या चारे के लिए बोई गई फसल को 60 दिन में काटकर पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद देशी हल या बक्खर से खेत को तैयार करें।

दीमक व जमीन के अन्य कीड़ों की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से खेत में बिखेर कर जुताई करनी चाहिये।

बीज बीजोपचार एवं बुवाई:-

तारामीरा की बुवाई के लिये 5 किलो बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। बुवाई से पहले प्रति किग्रा बीज को 2.5 ग्राम मैंकोजेब या 2 ग्राम कार्बेण्डेजिम द्वारा उपचारित करें।

बारानी क्षेत्रों में, बुवाई का समय भूमि की नमी व तापमान पर निर्भर करता है। नमी की उपलब्धता के आधार पर इसकी बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर रखते हुए कर देनी चाहिए।

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उर्वरक प्रयोग:-

फसल में 30 कि.ग्रा. नत्रजन एवं 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टर बुवाई के समय ऊर कर देना चाहिए।

संरक्षित नमी में तारामीरा फसल की उपज बढ़ाने हेतु संतुलित दर पर नत्रजन व फास्फोरस देने के साथ-साथ बुनाई पूर्व एजोटोबेक्टर एवं पी. एस. बी. द्वारा बीज उपचार कर बुवाई करने तथा वर्मीवाश का 7.5 प्रतिशत सान्द्रता वाले घोल का फूल आते समय व फलियों में दाना मनरामय दो बार छिड़काव करने से उपज में सार्थक वृद्धि पाई गई है।

सिंचाई:-

फसल में प्रथम सिंचाई 40-50 दिन में, फूल आने से पहले करें। तत्पश्चात् आवश्यकता पड़ने पर दूसरी सिंचाई दाना बनते समय करें।

निराई-गुडाई:-

फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिये बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई-गुडाई करें। पौधों की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 8 10 दिन बाद अनावश्यक पौधों को निकालकर पौधे से पोधे की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर कर देवें।

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फसल संरक्षण:-

मोयला :-

कीट लगते ही मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से फसल पर भुरकें अथवा मैलाथियान 50 ई.सी. 1.25 लीटर या डायमिथोइट 30 ईसी 875 मिलीलीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 600 मिलीलीटर दवा का पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।

सफेद रोली, झुलसा व तुलासिता:-

सफेद रोली, झुलसा व तुलासिता रोगों के लक्षण दिखाई देते ही मैन्कोजेब दो किलो पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें। यदि प्रकोप ज्यादा हो तो यह छिड़काव 20 दिन के अन्तर पर दोहरायें ।

फसल की कटाई:-

फसल में जब पत्ते झड़ जायें और फलियां पीली पड़ने लगें तो फसल काट लेनी चाहिए अन्यथा कटाई में देरी होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है।

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