हमारे देश में उगाई जाने वाली बीजीय मसालों में धनिया का प्रमुख स्थान है। देश में धनिया उत्पादन का राजस्थान लगभग 7% हिस्सा पैदा करता है। यह बहु उपयोगी मसाला है जिसके बीज में हरी पत्तियों का उपयोग विविध व्यंजनों को सुवासित एवं स्वादिष्ट बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग औषधि के रूप में तथा वाष्पशील तेल प्रसाधको के बनाने में किया जाता है। धनिया की फसल में विभिन्न रोगों के प्रकोप होता है जो किसके उत्पादन के साथ- साथ इसकी गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं। धनिया में लेंगिया रोग/स्टेमगोल (stemgol), उखटा (विल्ट), छाछ्या (पाउडरी मिल्ड्यू) झुलसा (ब्लाइट) आदी रोगों का प्रकोप प्रमुख रूप से होता है। तना पिटिका रोग हाड़ोती क्षेत्र का प्रमुख रोग है जिसका सही समय पर नियंत्रण एवं उपचार आवश्यक है अन्यथा फसल की उपज एवं गुणवत्ता में भारी कमी होती है।
धनिया में लेंगिया रोग के लक्षण:-
- सर्वप्रथम धनिया में लेंगिया रोग के लक्षण तने के उस भाग पर दिखाई देते हैं जो जमीन से सटा हुआ है।
- प्रारंभिक अवस्था में तने पर रंगहीन या फल के पारदर्शी चमकीले फफोले दिखाई देते हैं।
- उपरोक्त फफोले पौधे की बढ़वार के साथ पौधे के सभी दिशाओं में फैल जाते हैं।
- रोग की उग्र अवस्था में तना इतना अधिक लंबा होकर ऐंठ एवं मुड़ जाता है। साथ ही फूल में धनिये के दानों की जगह लौंग के आकार की आकृति बन जाती है।
- मौसम की अनुकूल परिस्थितियों में रोग ग्रसित पौधे के ऊपर फफूंद की वृद्धि हो जाती है एवं पौधा सूख जाता है।
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रोग का फैलाव:-
रोग ग्रसित पौधों के वह अवशेष जो खेत में गिर कर मिट्टी में मिल जाते हैं या बीज के साथ खेत की जमीन में मिल जाते हैं, इस रोग को फैलाने का कार्य करते हैं।
अनुकूल परिस्थितियां:-
- भूमि में रोग ग्रसित पौधे के अवशेषों का होना।
- रोग रोधी किस्म की बुवाई न करना।
- भूमि में 60% से ज्यादा नमी का होना। वातावरण में नमी उमस के साथ आकाश में बादलों का छाया रहना। तेज हवाओं के साथ रिमझिम बारिश का होना।
- खेत में आवश्यकता से अधिक पौधों की संख्या होना।
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धनिया में लेंगिया रोग की रोकथाम के उपाय:-
बुवाई से पहले रोकथाम:-
- अगर फसल रोग ग्रस्त है तो फसल काटने के बाद खेत में बचे हुए अवशेषों को एक जगह इकट्ठा करके जला देवें या गहरा गड्ढा कर के गाड़ देवे।
- रोग ग्रस्त फसल को काटने के बाद गर्मी में खेत में हल का पानी देकर गहरी जुताई करें एवं मिट्टी को धूप में तपने के लिए छोड़ देवें।
- जिस खेत में पूर्व में रोग आया हो एवं खेत में पुनः 3 साल तक धनिया की फसल न बोवे।
- खेत में कहीं भी पानी भराव वाली स्थिति हो, तो उसे समतल करें।
- खेत को साफ सुथरा रखें।
बुवाई के समय रोकथाम:-
- धनिया फसल के रोगग्रसित बीज बुवाई हेतु काम में न लेवे।
- रोग रोधी किस्म का प्रमाणित बीज की बुआई के काम में लेवे।
- धनिया में लेंगिया रोग की रोकथाम के लिए बुवाई से पूर्व बीज को एक हेक्सोकोनोलॉजल या प्रोपिकोनोजोल नामक दवाई से 2 मिली लीटर प्रति किग्रा बीज दर या कार्बेंडाजिम 75 ग्राम+ थाइरम 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज दर से उपचारित करने के बाद ही बुवाई करें।
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खड़ी फसल में रोग नियंत्रण:-
- अगर खेत में लोंगिया रोग का इतिहास रहा है एवं मौसम में नमी तथा उमस के साथ जमीन गीली हो तो लोंगिया रोग की रोकथाम के लिए बुवाई के के 45, 60 एवं 75 से 90 दिन पर हेक्सोकोनोलॉजल या प्रोपिकोनोजोल नामक दवाई 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से अथवा बेलेटोन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें तथा आवश्यकतानुसार छिड़काव दोहरावे।
- लोंगिया रोग का इतिहास नहीं हो तो रोग के प्रथम लक्षण (जो तने के उस हिस्से पर होते हैं जो जमीन से सटा होता है) दिखाई देते ही उपरोक्त दवाई का छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो तो छिड़काव दोहरावे।
- छिड़काव करते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि पौधे का हर हिस्सा इतना गीला हो की पानी की बूंद जमीन पर टपक जाए। कम से कम 2 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर काम में लेवें।
- सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत में कहीं भी पानी भराव की स्थिति उत्पन्न न हो।
प्रस्तुति:-
सुनीता कूड़ी
मनोज कुमार रोलानियां
रामस्वरूप जाट
जोबनेर, जयपुर
स्त्रोत
कृषि भारती
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