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नींबू वर्गीय फलों की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

नींबू वर्गीय
Written by Bheru Lal Gaderi

नींबू वर्गीय फलों में विटामिन सी बी एवं खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। इन फलों में मौसम्बी, किन्नो, सन्तरा व नींबू आदि प्रमुख है।

नींबू की खेती की जानकारी के लिए यह वीडियो देखें

जलवायु एवं भूमि:-

नींबू वर्गीय के फल विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाये जाते है। किन्नों व माल्टा के उत्पादन के लिये गर्मी में अच्छी गर्मी व सर्दियों में अच्छी सर्दी एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है। सन्तरा एवं नींबू के लिये गर्म, पाला रहित तथा नम जलवायु उपयुक्त रहती है।

नीबूं प्रजाति के फलों के लिए गहरी, भुरभुरी तथा अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है जिसका पी.एच. मान 70-80 के बीच होना चाहिए। लवणीय या क्षारीय मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। मृदा में सतह से 1.5 से 2 मीटर गहराई तक कैल्शियम कार्बोनेट की कठोर परत नहीं होनी चाहिए। पौधे विभिन्न प्रकार की मृदाओं जैसे लाल मिट्टी, लैटेराईट, जलोढ़ तथा रेतीली दोमट मिट्टी में आसानी से उगाए जा सकते है।

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पदोन्नति:-

नींबू वर्गीय के फलों का प्रवर्धन बीज तथा वानस्पतिक दोनों ही तरीकों द्वारा किया जाता है। संतरा तथा मौसम्बी के पौधों को कलिकायन से तैयार किया जाता है। इसके लिये पहले बीज से मूलवृन्त तैयार करते है। बीज हमेशा रफ लेमन (जम्बेरी) के स्वस्थ एवं पके फलों से लेने चाहिये। नींबू के पौधे बीज से तैयार किये जाते है। बीजों को फलों से निकालने के बाद तुरन्त नर्सरी में बुवाई कर देनी चाहिये। नींबू के पौधे गुट्टी से भी तैयार किये जा सकते है।

उन्नत किस्में:-

नींबू वर्गीय के विभिन्न वर्गों में उपयोग में लाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियों का विवरण निम्नलिखित है:-
  • संतरा वर्ग- किन्नों व नागपुर संतरा मौसम्बी वर्ग- ब्लड रेड माल्टा, मौसम्बी
  • नींबू वर्ग- कागजी प्रमालिनी, विक्रम, साई शर्बती
  • लेमन वर्ग:- पंत लेमन, कागजी कालान

पौधे लगाने की विधि:-

नींबू वर्गीय पौधे 6X6 मीटर की दूरी पर लगावे रेखांकन करने के बाद 100X100X100 सेमी आकार के गड्डे मई महिने में खोद लेने चाहिये। गड्डों में 25 किलो गोबर की खाद, एक किलो सुपरफास्फेट व 50 से 100 ग्राम क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण मिट्टी में मिलाकर भर देनी चाहिये। पौध लगाने का सबसे उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त रहता है। जहाँ पानी की अच्छी सुविधा हो वहां इनको फरवरी माह में भी पौधे लगाये जा सकते है।

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खाद एवं उर्वरक:-

संतरा (नागपुर), मौसम्बी व नींबू में खाद एवं उर्वरक की निम्नानुसार जरूरत होगी।

खाद / उर्वरक                               मात्रा किलोग्राम प्रति वृक्ष
प्रथम वर्ष     द्वितीय वर्ष   तृतीय वर्ष   चतुर्थ वर्ष  पंचम वर्ष एवं बाद में
गोबर की खाद    15              30              45            60                  75
सुपर फास्फेट      0.25          0.5             0.75         1.0               1.25
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश –              –                  0.2         0.2                 0.4
यूरिया               0.125        0.125          0.375     0.500             0.625

अम्बे बहार:-

गोबर की खाद, सुपर फॉस्फेट एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी व यूरिया की आधी मात्रा दिसम्बर जनवरी में तथा यूरिया की शेष आधी मात्रा अप्रेल-मई माह में देवें

मृग बहार- गोबर की खाद, सुपर फॉस्फेट एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी व यूरिया की आधी मात्रा जुन में तथा यूरिया की शेष आधी मात्रा सितम्बर-अक्टूबर माह में देवें

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सूक्ष्म तत्व:-

नींबू वर्गीय फलों में गौण तत्वों की कमी से वृक्षों में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते है इनमें जिंक, बोरान, मैंगनीज, तांबा तथा लोहा मुख्य है। पौधों में इन तत्वों की कमी के दुष्प्रभाव को रोकने के लिये गौण तत्वों का छिड़काव पेड़ों पर फरवरी व जुलाई में करना चाहिये।

इन तत्वों को अलग अलग घोलने के बाद पानी में मिलाना चाहिये।

इसके लिये

  • जिंक सल्फेट 500 ग्राम,
  • कॉपर सल्फेट 300 ग्राम,
  • मैंगनीज 200 ग्राम
  • मेगनीशियम सल्फेट 200 ग्राम,
  • बोरिक एसिड 100 ग्राम,
  • फेरस सल्फेट 200 ग्राम,
  • बुझा हुआ चूना 900 ग्राम व पानी 100 लीटर रखना चाहिये।

सिंचाई एवं देखभाल:-

गर्मियों में करीब 10 से 15 दिन के अन्तर पर व सर्दियों में 25-30 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिये। फूल खिलने के समय सिंचाई नहीं करें तथा जब फल मूंग के दाने के बराबर हो जाये तो नियमित सिंचाई करें। फल विकास के समय उचित मात्रा में नमी होना आवश्यक है, अन्यथा फल फटने लगते है।

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पौध संरक्षण:-

कीट प्रबंध:-

• नींबू की तितली:-

इसकी लटें प्रारम्भ में चिड़ियों के बीट की तरह दिखाई देती है। अण्डों से निकलने के तुरन्त बाद यह पत्तियों को खाने लगती है। तथा नुकसान पहुंचाती है। नियंत्रण हेतु पेड़ों की संख्या अधिक नहीं हो तो लटों को पेड़ों से चुनकर मिट्टी के तेल मिले पानी में डालकर मार देना चाहिये। क्यूनालफॉस 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

फल चूसक पतंगा:-

यह कीट फलों मे सुराख करके रस चूसता है जिससे संक्रमित भाग पीला पड़ जाता है। फल की गुणवत्ता कम हो जाती है। नियंत्रण हेतु रोशनी का प्रयोग कर पतंगों को इकटठा करके मार देवें। शीरा या शक्कर 100 ग्राम के एक लीटर घोल में दस मिलीलीटर मैलाथियॉन 50 ई सी मिलाकर प्रलोभक तैयार करके मिट्टी के प्याले में 100 मिलीलीटर प्रति प्याला के हिसाब से पेड़ों पर कई स्थानों पर टांग देना चाहिये। मैलाथियॉन 50 ई सी का एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।

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लीफ माइनर:-

लीफ माइनर यह बहुत छोटी चमकदार सफेद रंग की तितली है। इस तितली की लट पत्तियों के ऊपरी व नीचे की सतह के बीच सूरंग बनाती हुई पत्तियों को खाती है जिससे पत्तियां सूख जाती है।

नियंत्रण हेतु डाईमिथोएट 2 मि.ली. प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 1 मि.ली. प्रति 3 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करे है।

सिट्रस सिला:-

सिट्रस सिला यह कीड़ा पौधों के कोमल भाग से रस चूसता है जिससे पौधे की वृद्धि रूक जाती है। इसके शिशु चिपचिया पदार्थ निकालते हैं, जिससे काले रंग की फफूंद लग जाती है और पौधे भोजन नहीं बना पाते।

नियंत्रण हेतु डाईमिथोएट 2 मि.ली. प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 1 मि.ली. प्रति 3 लीटर हिसाब से छिड़काव करे है।

मूल ग्रन्थी (सूत्र कृमि):-

इसका प्रकोप नींबू की जड़ों पर होता है। इसके प्रकोप से पत्तिया पीली पड़ जाती हैं तथा टहनियां सूखने लगती है। जड़ गुच्छेदार बन जाती है। पर फल छोटे व कम लगते है। तथा जल्दी गिर जाते है। नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 20 ग्राम प्रति पेड़ की दर से प्रयोग करें।

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नींबू वर्गीय पौधों मे व्याधि प्रबंध:-

नींबू का केंकर रोग :-

जीवाणु से होने वाले इस रोग से पत्तियों, टहनियों व फलों पर भूरे रंग के मध्य से कटे खुरदरे व कार्कनुमा धब्बे स्पष्ट दिखाई देते है। रोगी पत्तियां गिर जाती है। नियंत्रण– नये बगीचे में सदैव रोग रहित नर्सरी के पौधे ही उपयोग में लाये और रोपण से पूर्व पौधों पर बोर्डो मिश्रण 4:4:50 या ताम्रयुक्त कवक नाशी (ब्लाईटॉक्स) 2 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें।

रोग के प्रकोप को रोकने के लिये कटाई छंटाई के बाद विशेषकर जून से अक्टूबर तक बोर्डो मिश्रण (4:4:50) या ताम्रयुक्त कवक नाशी (ब्लाईटॉक्स) 2 ग्राम प्रति लीटर व स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 6 ग्राम प्रति 40 लीटर के घोल का बीस दिन के अन्तर पर छिड़काव करें।

गोदाति रोग ( गमोसिस) ताम्रयुक्त कवकनाशी :-

इस रोग के कारण तनों पर भूमि के पास से और टहनियों के रोग ग्रस्त भाग से गोंद जैसा पदार्थ निकल कर छाल पर बूंदों के रूप में इकट्ठा हो जाता है जिसकी वजह से छाल सूख कर फट जाती है और भीतरी भाग भूरे रंग का हो जाता है।

नियंत्रण:-

नियंत्रण के लिये रोगग्रस्त छाल खुरचने के बाद रिडोमिल एम जेड 20 ग्राम तथा अलसी का तेल एक लीटर को अच्छी प्रकार मिलाकर या ताम्रयुक्त कवकना शी का लेप कर दीजिये और ताम्रयुक्त कवक नाशी (ब्लाईटॉक्स) 2 ग्राम प्रति लीटर अथवा रिडोमिल जेड 2 ग्राम प्रति लीटर के घोल के चार पांच छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर कीजिये।

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विदर टिप या डाई बैक:-

इस रोग से पत्तियों पर भूरे बैंगनी धब्बे पड़ जाते है। टहनियां ऊपर से नीचे की ओर सूखती हुई भूरी हो जाती है, और पत्तियां सूखकर गिर जाती है।

नियंत्रण:-

नियंत्रण हेतु रोगयुक्त भाग की छंटाई के बाद ताम्रयुक्त कवकनाशी (कॉपरआक्सीक्लोराइड) तीन ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव वर्षा ऋतु में 15 दिन व सर्दीयों में 20 दिन के अन्तराल पर करना चाहिये।

फलों का गिरना:-

तुड़ाई के पांच सप्ताह पहले से फल गिरने लग जाते है। इनकी रोकथाम के लिये एक ग्राम 2-4 डी. सोडियम लवण बागवानी ग्रेड का 100 लीटर पानी में या प्लेनोफिक्स हारमोन्स एक मिलीलीटर प्रति 4 से 5 लीटर पानी में घोल कर संतरा और मौसम्बी के वृक्षों पर छिड़कना चाहिये।

तुड़ाई एवं उपज:-

सतरा, मौसम्बी व नींबू का रंग जब हल्का पीला हो जावे तब इनकी तुड़ाई करनी चाहिये।

मौसम्बी, संतरा की उपज प्रति पौधा 70 से 80 किलोग्राम होती है। कागजी नींबू में 40 से 50 किलो प्रति वृक्ष उपज प्राप्त होती है।

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