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जैविक खेती

नीम का जैविक खेती में महत्व एवं उपयोग

Written by Vijay Gaderi

नीम का वृक्ष प्रकृति का अनमोल उपहार है। नीम (Neem tree) से तैयार किए गए उत्पादों की कीट नियंत्रण शैली अनोखी है, जिसके कारण नीम से तैयार दवा विश्व की सबसे अच्छी कीट नियंत्रण दवा मानी जा रही है। परंतु अपने आसपास मौजूद इस अद्भुत खजाने को लोग भूल गए हैं। इसी का फायदा उठा रही हैं बड़ी-बड़ी कंपनियां ये नीम की निंबोली व पत्तियों से कीटनाशक व दवाएं महंगे दामों में बेच रही है।

नीम

कीटो को दूर भगाना:-

इसकी कड़वी गंध से सभी जीव दूर भागते हैं। ऐसे कीट जिसकी सुगंध की क्षमता बहुत अधिक विकसित होती है, वह स्थान या पौधों को छोड़कर दूर चले जाते हैं जिन पर नीम के रसायन डाले गए हो।

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जहर के रूप में:-

मुलायम त्वचा वाले कीट जैसे चेम्पा ,तेला , सफ़ेद मक्खी, थ्रिप्स आदि नीम के तेल के संपर्क में आने पर मर जाते हैं। नीम का मानव जीवन पर जहरीला प्रभाव नहीं होना ही इसको दवाओ में उच्च स्थान दिलाता है। नीम के फल जून से अगस्त माह तक पककर गिरते रहते हैं इसे निंबोली कहते हैं। निंबोली का गूदा स्वाद में हल्का मीठा होता है। पके फल में औसत तौर पर 23.8% छिलका, 47 .5% गुदा, 18. 6% कवच व10 .1% गिरी निकलती है।

गिरने पर निंबोली का छिलका और गुदा सड़ -गलकर जल्दी ही समाप्त हो जाता है,  किंतु इसकी गिरी सफेद गुठली से ढकी होने के कारण अधिक समय तक सुरक्षित रहती है। बीज को तोड़ने पर इसका आधे से अधिक भाग (55%) गुठली के रूप में अलग हो जाता है तथा शेष रूप (45%) गिरी के रूप में प्राप्त होती है। अच्छे ढंग से एकत्रित व संग्रहित गिरी हरे भूरे रंग की होती है।

निंबोली एकत्र करना:-

निंबोलिया पककर पीली होने लगे तो इन्हें वृक्ष पर ही तोड़ लेना सबसे उत्तम रहता है,  इसस्थिति में अजारेक्टिन की मात्रा सर्वाधिक होती है। चूकि सभी निंबोलिया एक साथ न पककर धीरे-धीरे पकती रहती है। अतः आर्थिक दृष्टि से जमीन पर टूटकर पड़ी हुई नींबोलियो को बिना उत्तम रहता है। झाड़ू लगाकर निंबोली एकत्र करना उचित नहीं है क्योंकि इससे बीज में हानिकारक जीवाणुओं के संक्रमण का खतरा रहता है जो बाद में चलकर बीज और इसके तेल को खराब करते हैं। अतः 4 से 7 दिन में एक बार निंबोलीयो की बिनाई कर लेनी चाहिए।

सिरकाया गुदा छुड़ाना:-

पूरे फल को सुखाकर संग्रह करना अधिक लाभप्रद है किंतु वर्षा में गुदेयुक्त फल को सड़न से बचाकर सुखा पाना लगभग असंभव है अतः नींबोलियों को पानी में डालकर धो देते हैं ताकि सभी गुदा व छिलका छूटकर बीज से अलग हो जाए।

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बीज सुखाना:-

उपरोक्त तरीके से प्राप्त बीज को अधिक गर्म सतह पर और अधिक धूप में सुखाना ठीक नहीं किंतु नमी को जल्दी से जल्दी सुखाना भी आवश्यक है। अतः बीज को टाट , बोरा, कपड़ा या चटाई पर बिछाकर हल्की धूप व छाया में सुखाना चाहिए। पक्का फर्श, प्लास्टिक शीट, लोहे की शीट धूप में अधिक गर्म हो जाती है अतः इन पर सुखाने से बचें।

भंडारण:-

अच्छा यह रहता है कि बीज से तेल 3 से 6 माह में निकाल लिया जाए, गिरी पुरानी होने पर तेल कम हो जाता है। किंतु यदि इसके भंडारण की जरूरत पड़े तो इससे धूप, नमी, गर्मी से बचाकरसूखे, ठंडे छायादार स्थान में कपड़े या जूट के बोरों या थेलों में रखें। प्लास्टिक के बर्तनों में रखना ठीक नहीं रहता।

निंबोली के उपयोगी रसायन अजादिरेक्टिन:-

आज पूरे विश्व में नीम रसायन की धूम मची हुई है। भारतीय नीम के 1 किलोग्राम गिरी में लगभग 5 ग्राम अजादिरेक्टिन मिलता है। आज बाजार में उपलब्ध नीम आधारित कीट नियंत्रण दवाओं का स्तर इसमें उपलब्ध अजादिरेक्टिन की मात्रा से माना जाता है। यह कीटों की आहार प्रक्रिया में बाधक है तथा उनका जीवनचक्र बर्बाद कर देता है।

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मेलेयन्त्रियाल एवं सेलेनीनी:-

यह कीटों को पत्ती खाने से रोक देता है।

निंबीडीन और निंबिन:-

बीज के गूदे में नींबिडिन 2% तक होता है। इसमें जीवाणु रोधक गुण होते है।

उपयोग के तरीके:-

पाउडर बनाकर:-

नीम के बीज को खूब महीन पीसकर पाउडर बना लें, इसमें बराबर या दोगुनी मात्रा में कोई निष्क्रिय पदार्थ जैसे लकड़ी का बुरादा, चावल की भूसी या बालू मिट्टी मिलाले। इस पाउडर को फसल पर इस ढंग से भूरके कि यह पत्ती और तने पर चिपक जाए। फसल पर लगे कीड़े इसे खाकर मर जाएंगे।  बीज की भांति नीम की खली का पाउडर बिना कुछ मिलाएं ही सीधे फसल पर भुरका जा सकता है। नीम की खली यदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होतो इसे खेत की मिट्टी में बुवाई पूर्व सीधे मिला दे जो अनेक प्रकार के हानिकारक  जमीन के कीड़ों को मार देगा तथा खेत में यूरिया की बचत करेगा।

तेल का प्रयोग:-

बढ़िया मशीन उपलब्ध हो तो नीम के तेल की 5 से 10  लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करें। नीम के तेल को साबुन के साथ पानी में घोले। एक टंकी (15 लीटर)  में एक चम्मच साबुन पाउडर व लगभग 75 से 100 ग्राम तेल फसल पर छिड़के। इस घोल के कुछ देर पड़ा रहने पर तेल व पानी अलग- अलग हो जाता है, अतः इसे थोड़ी- थोड़ी देर तक खूब मिला ते रहना चाहिए। ध्यान रखें कि नीम का तेल अधिक मात्रा में एक जगह पत्ती आदि पर पड़ने से उसे जला देता है।

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पानी में घोलकर:-

हालांकि शुद्ध रूप में अजाडिरेक्टिन पानी में कम घुलता है किंतु बीज, गिरिया खली में उपस्थित अजाडिरेक्टिन इन में उपस्थित रसायनों के कारण पानी में पूरा का पूरा घुल जाता है। वास्तव में नींबू आधारित कीटनाशक बीज या गिरी से फैक्ट्रियों में बनाए जाते हैं,  उतने ही कच्चे माल से उतनी ही प्रभावकारी दवा घर पर इसे पानी में घोलकर बना सकते हैं।

नीम पदार्थ से पूरी की पूरी दवा घोलकर बाहर निकालने के लिए निम्न तरीका अपनाएं:-

बीज, गिरी या खली को खूब महीन करके रात भर पानी में भीगने दें। अगले दिन सुबह इसको खूब मथकर पतले कपड़े से छान ले। छानने से बचे पदार्थ में फिर पानी मिलाकर मथकर पुनः छाने। ऐसा करने से पदार्थ में स्थित पूरा का पूरा कीटनाशक बाहर निकल आता है।

इसका दूसरा तरीका यह है कि बीज गिरी या खली भिगोये। इसको कपड़े के झोले में भर कर एक बड़े पानी से भरे बर्तन में बार-बार 15  मिनट तक खूब झकझोरे और निचोड़े, इससे पूरी दवा पानी में आ जाएगी।

पत्ती को पीसकर:-

यदि नीम का तेल, गिरी, बिज या खली न उपलब्ध होतो नीम की 3 से 4  किलो ताजी पत्तियों को पीसकर 10 लीटर पानी में घोलकर छानलें। यह गोल फसल पर छिड़कने से फसल की अनेक प्रकार से कीड़ों से रक्षा करता है।

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