भारत सरकार के पशुपालन सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी किए गए पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 में की गई 18 वी पशुगणना में राजस्थान का स्थान पशुधन में तीसरा था जब यहां देश का 10.75% पशुधन उपलब्ध था। परंतु वर्ष 2012 में की गई 19वीं पशुगणना के अनुसार यह बढ़कर ११.२७% के साथ प्रदेश दूसरे स्थान पर हो गया है। देशभर में ऊंटों और बकरियों की संख्या के लिहाज से राजस्थान का स्थान देश में प्रथम है।
वर्ष 2012 पशु गणना के अनुसार देशभर में पशुपालन (pashupalan yojana) में राजस्थान का स्थान भैंस वंश में दूसरा, भेड़ वंश में तीसरा और अश्व (घोड़े) वंश में चौथा आँका गया है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य हैं जहां ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली अधिकांश जनसंख्या की आजीविका कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। राजस्थान ने अपने उन्नत पशुधन से एक अलग पहचान कायम की है। पशुधन के संरक्षण और पशु पालकों के हित के लिए अनेक योजनाएं चलाई गई हैं। जिनसे राज्य की पशु सम्पदा लाभांविन्त हुई है, तथा पशु पालकों की तस्वीर बदलने में कामयाबी मिली है।
हमारे पशुपालक मजबूत हो, सुदृढ़ हो और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो इसके लिए प्रदेश में पशुपालन और पशु पालकों के हितों पर हमेशा जोर दिया जाता रहा है। आज राजस्थान का पशु पालक पहले की तुलना में कहीं ज्यादा संपन्न और प्रसन्न है। राज्य सरकार की कल्याणकारी और विकास नीतियों एवं निम्नलिखित विभागीय योजनाओं ने ही इस परिदृश्य को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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भामाशाह पशु बीमा योजना:-
प्रदेश के पशुपालकों को और पशुपालन की स्थिति को देखते हुए वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में भामाशाह पशु बीमा योजना शुरू किए जाने की घोषणा की गई थी। योजना के तहत दुधारू, मालवाहक और अन्य चयनित पशुओं का बीमा किया जा सकता है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य पशुओं की मृत्यु पर पशुपालकों को बीमा क्लेम राशि उपलब्ध करवाना है। जिससे उसके परिवार को आर्थिक क्षति पूर्ति हो सके। योजना के तहत दुधारू पशुओं की अधिकतम कीमत रुपए 40000/- एवं भैंस वंशीय पशु की अधिकतम कीमत रुपए 50000/- पर प्रतिवर्ष 2.5% की दर से प्रीमियम देना होगा। इसी प्रकार भेड़ बकरी की अधिकतम कीमत रु 5000 पर प्रतिवर्ष 4% की दर से प्रीमियम देना है तथा मालवाहक पशु की अधिकतम कीमत 50000 पर प्रतिवर्ष 3.5% की दर से प्रीमियम देना है।
भामाशाह पशु बीमा योजना के तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले बीपीएल श्रेणी के पशुपालकों को प्रीमियम राशि का 70% तथा अन्य पशुपालकों को 50% आर्थिक सहायता देय।
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बकरी पालकों को प्रजनन योग्य बकरों का वितरण:-
राज्य में उपलब्ध कुल पशुपालन सम्पदा का लगभग 38% योगदान बकरी वंश से हैं। बकरियों की संख्या की दृष्टि से राज्य देश में पहले स्थान पर हैं। बकरी विकास के लिए अजमेर जिले के रामसर गांव में बकरी फार्म स्थापित है जहां पर बकरी पालकों को निशुल्क प्रशिक्षण के साथ-साथ उन्नत प्रजनन योग्य सिरोही नस्ल के बकरे का वितरण किया जाता है। बकरियों में प्रजनन हेतु गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार को सिरोही जमुनापारी नस्ल का बकरा रु.1200/- प्रति बकरा तथा अन्य बकरी पालकों को रु.1600/- प्रति बकरा की दर से उपलब्ध कराए जाते हैं।
जमुनापारी नस्ल की बकरियों के विकास हेतु उन्नत नस्ल के बकरे का वितरण मत्स्य पालन केंद्र कुम्हेर भरतपुर से किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत उन्नत नस्ल के बीजू बकरे उनके गृह क्षेत्र (इटावा, उत्तर प्रदेश एवं सीआरजी, मखदूम) से क्रय करके बकरी पालकों को अनुदानित दर पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
पशुधन आरोग्य निशुल्क दवा योजना:-
राज्य की बहुमूल्य पशु धन/पशुपालन संपदा को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान किए जाने के लिए पशुधन आरोग्य निशुल्क दवा योजना संचालित की जा रही है जिसके अंतर्गत राज्य की सभी पशु चिकित्सा संस्थाओं एवं विभिन्न शिविरों के माध्यम से पशुओं के उपचार हेतु निशुल्क औषधियां उपलब्ध करवाई जा रही है।
योजना के अंतर्गत पंजीकरण स्वरूप राशि ₹2 प्रति केटल हेड की दर से देय हैं। पशुधन/पशुपालन की चिकित्सा के लिए सर्वाधिक उपयोग में आने वाली विभिन्न प्रकार की आवश्यक जेनरिक दवाइयां तथा सर्जिकल कन्ज्यूमेबल निशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
धन की कमी के कारण पशु चिकित्सा सुविधाओं से वंचित पशुपालकों के पशुओं को का समय पर विचार होने से प्रदेश में पशु रोग प्रकोप में कमी आई है साथ ही पशु चिकित्सा संस्थाओं में आने वाले रोगी पशुओं की संख्या में भी 25% तक की वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त प्रदेश के पशुपालकों को विभागीय सुविधाओं का अधिक से अधिक लाभ दिलाने के लिए राज्य के समस्त जिला मुख्यालयों पर पशुधन आरोग्य चल चिकित्सा अधिकारियों की संख्या भी “एक से बढ़ाकर तीन” कर दी गई है।
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मुर्रा नस्ल की भैंस पहाड़ों का वितरण:-
पशुपालन में भैंस वंश के विकास हेतु वृषभ पालन केंद्र कुम्हेर (भरतपुर) तथा नागौर में मुर्रा नस्ल की उन्नत सांडों का संधारण किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत मुर्रा नस्ल के 10 से 15 माह की आयु के उन्नत पहाड़ों का क्रय कर केंद्र पर पालन पोषण किया जा रहा है। इसके अलावा नागौर जिले के बंकलिया में भैंस फार्म स्थापित किया गया है।
मुर्रा पाडों के प्रजनन योग्य होने पर ग्राम पंचायतों, दुग्ध समितियों, प्रगतिशील पशुपालकों को राशि रु.3000/- प्रति वयस्क पाड़े की दर से उपलब्ध करवाए जाते हैं। जबकि अन्य विभागों की योजनाओं जैसे जलग्रहण, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण तथा बंजर भूमि विकास आदि के अंतर्गत वयस्क पाड़े की दर रु.6000/- रखी गई है।
खुरपका, मुँहपका टीकाकरण कार्यक्रम:-
खुरपका, मुँहपका रोग के कारण दुधारू पशुओं में दूध की एकाएक कमी हो जाती है जिससे सीधा-सीधा नुकसान पशुपालकों होता है। इसके अलावा बछड़े बछड़ों में इस रोग के कारण मृत्यु दर अधिक है।
इस रोग के कारण देश में प्रतिवर्ष 20,000 करोड़ रुपए की हानि का अनुमान है। प्रदेश के गों एवं भैंस वंशीय पशुओं को एफएमडी (खुरपका एवं मुँहपका) रोग से मुक्त किए जाने के लिए केंद्र सरकार के सहयोग से संपूर्ण प्रदेश में वृहद टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
खुरपका, मुँहपका रोग नियंत्रण कार्यक्रम से लाभ:-
- पशुधन को रोग के प्रति स्वास्थ्य सुरक्षा।
- रोग से होने वाले नुकसान पर नियंत्रण रोग नियंत्रण से पशुधन उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि।
- पशुपालक को आर्थिक रुप से लाभ रोगमुक्त क्षेत्र का वातावरण।
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डेयरी उद्यमिता विकास योजना:-
भारत सरकार द्वारा केंद्रीय प्रवर्तित योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के माध्यम से राज्य के डेयरी उद्योग को प्रोत्साहित करने हेतु डेयरी उद्यमिता विकास योजना नामक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी योजना संचालित की जा रही है।
पशुपालन योजना के अंतर्गत डेयरी उद्योगों की स्थापना के लिए राष्ट्रीयकृत बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, राज्य सहकारी बैंक अथवा राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना के तहत अधिकतम 10 दुधारू पशुओं की लघु डेयरी की स्थापना के लिए परियोजना लागत की अधिकतम रु.600000 का ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के माध्यम से अनुदान भी दिया जा रहा है। सामान्य श्रेणी के पशुपालकों को 25% तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के पशुपालकों को 33.3% अनुदान दिया जाता है।
संकर भेड़ मेढ़ों का वितरण:-
वृहद स्तरीय भेड़ प्रजनन फार्म फतेहपुर (सीकर) में भेड़ों की नस्ल में सुधार एवं बेहतर किस्म की ऊन प्राप्त करने के लिए भेड़ पालकों को नाली, चोकला, मारवाड़ी नस्ल के मेढ़ों का वितरण किया जाता है।
भेड़ प्रजनन फार्म द्वारा रु.50/- प्रति किलो जीवित शारीरिक वजन की दर से इन मेढ़ों का वितरण किया जाता है।
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शूकर इकाई वितरण कार्यक्रम:-
राज्य के लघु एवं सीमांत कृषकों खेतिहर मजदूर तथा अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के सदस्यों एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले व्यक्तियों के कल्याण हेतु शुक्र प्रजनन केंद्र अलवर में स्थापित है शूकर प्रजनन केंद्र अलवर “व्हाइट यार्कशायर” शुकरो पाले जा रहे हैं। ऐसे परिवारों को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर लगभग 2 माह के आयु वर्ग के एक-एक और मादा शूकर की इकाई उपलब्ध कराई जा रही हैं।
2 माह के एक नर का मूल्य 2000/- तथा मादा शूकर का मूल्य ₹1000/- प्रति पशु है। इस केंद्र द्वारा शुकार पालन के लिए तीन दिवसीय प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
ऊंट प्रजनन प्रोत्साहन योजना:-
ऊंटों की लगातार घटती शंख्या को रोकने तथा ऊंट प्रजनन को बढ़ावा दिए जाने के उद्देश्य से राज्य में उष्ट्र प्रजनन प्रोत्साहन योजना संचालित हैं। इस योजना के तहत ऊंटनी के ब्याने पर उतपन्न नर/मादा बच्चे (टोडिया) की आयु अनुरूप कुल रु.10,000/- राशि की आर्थिक सहायता ऊंटपालको को डे होती हैं। यह राशि निम्नानुसार किश्तों में दी जाती हैं:-
- एक माह की आयु पर रु. 3,000/-
- नो माह की आयु पर रु. 3,000/-
- अठारह माह की आयु पर रु. 4,000/-
उपरोक्त योजना के अंतर्गत ऊंट पलकों को नजदीकी पशु चिकित्सा संस्था में पंजीकरण करना आवश्यक हैं।
बकरी विकास योजना:-
बकरियों में अधिक उत्पादन क्षमता विकास हेतु नस्ल सुधार के लिए उदयपुर, बांसवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ सहित 20 जिलों में सिरोही/जमुनापारी/मारवाड़ी नस्ल के बकरे उपलब्ध करवाने के लिए जिले की पंचायत समितियां चयन की जाती है तथा वहां के चयनित बकरी पालन जिनके पास कम से कम 20 बकरियां हो इस योजना के लिए पात्र होते हैं। अनुसूचितजाति/ जनजाति एवं BPL परिवारों को प्राथमिकता से चयन कर बकरी बालकों को दो दिवसीय प्रशिक्षण हेतु रुपए 200/- प्रति प्रिक्षणार्थी प्रतिदिन परीक्षण भत्ता दिया जाता है। इसके बाद बकरा क्रय मूल्य पर 75% अनुदान अधिकतम रुपए 5,000/- दिया जाता है।
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मुर्गी एवं बटेर पालन योजना:-
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत राज्य के 23 जिलों में मुर्गी एल्बम बटेर पालन योजना संचालित है। योजना के अंतर्गत आगामी 3 वर्षों में 34950 परिवारों को मुर्गी एवं 525 परिवारों को बटेर पालन के लिए लाभांवित किया जाना है। क्लस्टर स्तर पर प्रगतिशील मुर्गीपालकों के यहां 1000 चूजों की मदर यूनिट को प्रारंभ किया जाता है।
मदर यूनिट की स्थापना हेतु मुर्गी आवास निर्माण हेतु कुल अधिकतम लागत रुपए 150000 पर 40% अर्थात 60000 की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। पुराने मुर्गी आवास में मदर यूनिट प्रारंभ करने हेतु मरम्मत, रंगाई-पुताई आदि के लिए 30000 की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती हैं।
गैर संगठित क्षेत्र में ग्रामीण मुर्गी पालन किया जा रहा है। BPL परिवारों का चयन ऐसे स्थान से किया जाता है, जो असंगठित हो तथा वहां किसी भी तरह का व्यवसायिक उद्योगिक क्षेत्र उपलब्ध नहीं है।
एक मदर यूनिट से सीमांत, भूमिहीन, BPL महिला के 50 व्यक्तियों को 4 सप्ताह के घर के पिछवाड़े में मुर्गी पालन हेतु अनुदान रुपए 25% की दर पर 20-20 मुर्गी पालन इकाई का वितरण किया जाता है। एक लाभार्थी को 4 सप्ताह के चूजे उपलब्ध करवाए जाते हैं तथा मुर्गी के आवास हेतु रु. 1500/- की आर्थिक सहायता दी जाती है।
गिर नस्ल के सांडों का वितरण:-
पशुपालन में गिर नस्ल के विकास हेतु वृषभ पालन केंद्र रामसर (अजमेर) में गिर नस्ल के उन्नत सांडों का संधारण किया जा रहा है। योजना के अंतर्गत गिर नस्ल के 10 से 15 माह की आयु के उन्नत सांडों का क्रय केंद्र पर पालन पोषण किया जा रहा है।
इन सांडों के प्रजनन योग्य होने पर ग्राम पंचायतों, दुग्ध समितियों, प्रगतिशील पशुपालकों को राशी रुपए 3000/- प्रति वयस्क सांड की दर से उपलब्ध करवाए जाते हैं।
जबकि अन्य विभागों की योजनाओं जैसे जल ग्रहण, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण तथा बंजर भूमि विकास आदि के अंतर्गत व्यस्त गिर सांड की दर रु. 6000/- प्रति सांड रखी गई है।
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राजकीय मुर्गी पालन प्रशिक्षण संस्थान अजमेर:-
इस संस्थान में मुर्गी पालन व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए सभी वर्गों के इच्छुक व्यक्तियों को स्वरोजगार के लिए मुर्गी पालन का व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया जाता है।
पशुपालन प्रशिक्षण संस्थान जोधपुर:-
प्रदेश के पशुपालकों में नई चेतना आत्मविश्वास और नई तकनीक की जानकारी देने के उद्देश्य से जोधपुर में पशुपालक प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना कर पशु पालकों के लिए विभिन्न परीक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किए गए हैं।
आधुनिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से प्रदेश में नवीनतम तकनीकी जानकारी से प्रगतिशील पशुपालकों की संख्या में आशातीत वृद्धि हो रही है।
पशु स्वास्थ्य एवं प्रजनन कार्ड वितरण:-
राज्य के पशुधन के स्वास्थ्य और प्रजनन कार्यों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए उनके स्वास्थ्य और प्रजनन कार्ड संधारित किए जाते हैं। इन कार्डों की प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं:-
- पशुधन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए 5 लाख 8 हजार पशुपालकों को पशु स्वास्थ्य एवं प्रजनन कार्ड का अब तक वितरण।
- कार्ड का पंजीयन शुल्क मात्र ₹ 5/- प्रति कार्ड।
- कार्ड धारक पशुपालकों को खनिज लवण मिश्रण का निशुल्क वितरण।
- कार्ड में विभिन्न जानकारियां दर्ज की जाती है।
- पशुपालक के पशुओं की किस्में एवं संख्या का विवरण।
- संक्रामक रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण का विवरण।
- खनिज लवण मिश्रण का वितरण।
- बाह्य एवं अंतः परजीवी रोगों के लिए कृमिनाशक औषधि का वितरण।
- रोगी पशुओं के उपचार परामर्श एवं सेवा का विवरण।
- कृत्रिम गर्भाधान से संबंधित विवरण।
- बछड़ा उत्पादन का विवरण।
- रोग निदान के लिए विभिन्न जातियों का विवरण।
- पशुधन बीमा संबंधी विवरण।
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