फॉल आर्मीवर्म के प्रबंधन हेतु निम्न शस्य / यांत्रिक / जैविक / रासायनिक उपाय अपनाये जाने चाहिए –
- फॉल आर्मीवर्म (Fall Armyworm) कीट के अण्डे एवं लार्वा को हाथों द्वारा एकत्रित कर नष्ट कर दे।
- समय पर बुवाई, अन्तराशस्य फसलों की बुवाई, समय पर निराई-गुड़ाई संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें।
- फॉल आर्मीवर्म से प्रभावित पौधे के पोटे में सूखी, बारिक मिट्टी / राख डाले। बुवाई के 30 दिवस बाद मक्का के पोटे में मिट्टी + चूना 91 के अनुपात में डाले।
- फसल की 30 दिन की अवस्था तक पक्षियों के बैठने हेतु ‘T’ आकार के पक्षी मचान ( Bird Perches) 25 प्रति हैक्टर स्थापित करें।
- कीट के शलभ (Moth) को अधिक संख्या में पकड़ने के लिए फाल आर्मीवर्म का विशेष फेरोमोन ट्रेप (40 प्रति हैक्टर) स्थापित करें।
- बेसिलस थुन्जिनेसिस, एन.पी.वी. 2 ग्राम / लीटर पानी या एक लीटर / हैक्टर या ईपीएन (Metarhizium anisopliae, Metarhizium Rileyi, Numoraea Rileyi, Beaveria bassiana. Verticilium Lecani) 5 ग्राम / लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
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पल्लव से पोटे की पूर्व अवस्था (अंकुरण से लगभग 2 सप्ताह बाद )-
फसल के 5% नुकसान की स्थिति में NSKE/ Azadirachtin 1500PPM घोल का 5 एमएल / लीटर पानी में छिड़काव करें। यह अण्डे से लार्वा निकलने की दर को कम करता है।
पोटे की मध्यम एवं बाद की अवस्था कीट के लार्वा की द्वितीय एवं तृतीय अवस्था 10 प्रतिशत से अधिक नुकसान करती है। फसल की फूंदना (Tasseling ) अवस्था पर निम्न कीटनाशी में से किसी एक कीटनाशी का उपयोग करें.:-
क.सं. | कीटनाशी का नाम | मात्रा प्रति लीटर पानी |
1. | स्पिनोटोरम 11.7% एस.सी. | 0.3 मि.ली. |
2. | थायमिथोक्जोम 12.6%+लेम्डासायहेलोथ्रिम 9.5% | 0.5 मि.ली. |
3. | क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल 18.5% एस.सी. | 0.3 मि.ली. |
4. | इमामेक्टिन बेन्जोएट 5% एस. जी. | 0.4 ग्राम |
फॉल आर्मीवर्म कीट का प्रकोप दिखने पर राज्य सरकार के निर्देशानुसार कीट का प्रकोप आर्थिक दहलीज स्तर से अधिक होने पर फसलों को उपचारित करने हेतु अनुदान पर कीटनाशी रसायन कृषकों को उपलब्ध कराये जाने के लिए मांग हेतु कीट व्याधि की सर्वेक्षण / रेपिड रोविंग सर्वे रिपोर्ट (प्रपत्र- 5) पूर्ण कर अविलम्ब संयुक्त निदेशक कृषि (पौ.स) को भिजवायें ताकि प्रभावित क्षेत्र में कीट नियंत्रण हेतु अनुदान पर कीटनाशी रसायन उपलब्ध कराने के लिए भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्यों का आवंटन किया जा सके। कीट का समय पर नियंत्रण कर कृषकों की फसलों का नुकसान से बचाव किया जा सके ।
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