बरसीम (Barseem Cultivation) सभी पशुओं, विशेषकर दुधारू पशुओं के लिये एक उत्तम पौष्टिक एवं स्वादिष्ट हरा चारा है। रबी में बोये जाने वाले फलीदार चारों में इसका प्रमुख स्थान है। यह फसल अक्टूबर से मई तक छः कटाइयों द्वारा अधिक मात्रा में हरा धारा प्रदान करने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाती है। यह लवणीय एवं क्षारीय भूमि को भी सुधारती है।
उन्नत किस्में:-
खदरावी, फाइली एवं मसकावी (1995) आदि बरसीम की कुछ किस्में है। इसके अलावा पूसा जाइन्ट (1995), टी-780, टी-678. टी. 724 तथा टी-560 ए. एस-99-1 (वरदान) (1982) भी अधिक उपजाऊ किस्में है। उन्नतशील और देशी किस्म का बीज मिलाकर क्रमशः 1:3 से 1:1 के अनुपात में बोना अधिक लाभदायक रहता है। उन्नत किस्मों की पत्तियां चौड़ी होती है तथा शाखायें भी अधिक होती हैं जिसके फलस्वरूप वे पैदावार तथा पौष्टिकता में उच्चतम होती है।
यदि चाहें तो मस्कावी ( द्विगुणित) पूसा जाइन्ट (चतुर्गुणित) दोनों किस्मों का आधा-आधा बीज मिलाकर भी बुवाई कर सकते है। शुरू की 2-3 कटाईयां (शरद ऋतु में द्विगुणित किस्मों की अपेक्षा अधिक उपज देती है। जबकि बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में द्विगुणित किस्में अपेक्षाकृत अधिक उपज देती है।
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भूमि की तैयारी एवं उपचार:-
इसकी सर्वोत्तम बढ़वार अच्छे जल निकास एवं वायु संचार वाली तथा अधिक जल धारण क्षमता वाली दोमट भूमि में होती है। हल्की भूमि में इसे अधिक सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। कुछ क्षारीय क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है, किन्तु अम्लीय भूमि बरसीम के लिये उपयुक्त नहीं होती। बरसीम का बीज छोटा होने के कारण इसके अंकुरण के लिये खेत की अच्छी प्रकार जुताई करना नितान्त आवश्यक है। खेत में जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से अथवा ट्रेक्टर हल से तथा 2-3 जुताईयां देशी हल या हैरों से करनी चाहिए। फिर ढेले तोड़ने के लिये पाटा चलाकर उचित आकार की क्यारियां बना लेनी चाहिए।
दीमक एवं अन्य भूमिगत कीड़ों की रोकथाम के लिए अन्तिम जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से खेत मे बिखेर कर जुताई करनी चाहिए।
बीजदर:-
साधारणतयाः बीज दर 25-35 किलोग्राम प्रति हैक्टर रखी जाती है। यदि बीज स्वस्थ तथा पीले रंग का हो तो बीज दर कम रखनी पड़ती है। शीघ्र देर से बोई जाने वाली फसल में बीज दर 35 किलोग्राम प्रति हेक्टर रखी जाती है। पूसा जाइन्ट के लिए 50 किलोग्राम बीज की, प्रति हेक्टर आवश्यकता होती है।
बीजोपचार:-
अगर फसल खेत में पहली बार बोई जा रही है तो बीज को राइजोबिया कल्चर से उपचारित करना आवश्यक होता है। एक हैक्टर के लिये तीन पैकेट पर्याप्त है। यदि इसका कल्चर नहीं मिले तो ऐसे खेत में जहां पिछले वर्ष यह फसल बोई गई हो, ऊपरी 5-6 से.मी. सतह की 4 क्विंटल मिट्टी लाकर खेत में समान रूप से बिखेर देना चाहिए।
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बुवाई:-
बरसीम की बुवाई तब तक की जाती है जब तक कि अधिकतम तापमान 30 डिग्री से. से कम होने लगता है। बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से अन्त तक की जा सकती है। अच्छी उपज के लिये मध्य अक्टूबर तक बुवाई की जानी चाहिये। अधिक जल्दी होने पर फसल को देर से होने वाली वर्षा से हानि होती है तथा खेत में खरपतवार भी अधिक होते हैं जबकि देर से बुवाई करने पर कम तापमान रहने के कारण पौधों की बढ़ोतरी अच्छी नहीं होती है।
इसकी बुवाई के लिये खेत की समतल क्यारियों में पानी भरें पानी भरी क्यारियों में हल चलाकर पानी गन्दला करके बीज छिड़क देना चाहिये इसकी बुवाई सूखी क्यारियों में भी की जा सकती है। सूखी क्यारियों में बीज छिड़कने के बाद रेक चलाकर बीज को मिट्टी में मिला देते हैं।
अच्छे अंकुरण के लिये बरसीम का बीज स्वस्थ मोटा पीले रंग वाला होना चाहिये। साधारणतया कासनी के बीज बरसीम में मिले हुए होते है कासनी के बीजों को अलग करने के लिये बीज को 5 प्रतिशत नमक के घोल में डूबोकर नीचे बैठे स्वस्थ बीजों को अलग किया जा सकता है। ऊपर तैरते एवं बरसीम के हल्के बीजों को अलग कर देना चाहिये। नीचे बैठे स्वस्थ बीजों हुए कासनी को निकाल कर सादे पानी से धोकर छाया में सुखाने के बाद बोना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक प्रयोग:-
मिट्टी में जीवांश कायम रखने के लिये 15-20 टन प्रति हैक्टर अच्छा सड़ा हुआ गोबर का खाद खेत तैयार करते समय या 20 दिन पहले डाल देना चाहिये। इसके अतिरिक्त अच्छी पैदावार के लिये 20-30 किलोग्राम नत्रजन एवं 50-60 किलोग्राम फॉस्फोरस की प्रति हैक्टर आवश्यकता होती है। खाद की पूरी मात्रा भूमि में बुवाई से पूर्व अन्तिम हैरो अथवा हल चलाते समय मिला देनी चाहिए।
यह देखा गया है कि फॉस्फोरस डाली हुई बरसीम की फसल उस खेत पर बोई जाने वाली आगामी फसल के लिये लगभग 50 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टर स्थापित कर देती है।
मिश्रित फसलें:-
शुरू की कटाईयों से अधिक चारा उत्पादन के लिये बरसीम को जई के साथ मिलाकर बोना चाहिये। दोनों फसलों की बीज दर का आधा आधा बीज मिलाकर बोयें। जई नहीं बोने पर दो किलोग्राम सरसों का बीज प्रति हैक्टर बरसीम के बीज में मिलाकर बोना चाहिए।
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सिंचाई एवं जल निकास:-
अच्छे अंकुरण एवं बढ़ोतरी के लिये बरसीम को प्रारम्भ में दो साप्ताहिक सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। तत्पश्चात शरद ऋतु में 15-20 दिन के अन्तर पर और ग्रीष्म में 10 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए। पानी आवश्यकता से अधिक नहीं देना चाहिए।
कटाई एवं उपज:-
पहली कटाई बुवाई के लगभग 50 दिन बाद करनी चाहिए। बरसीम जई के मिश्रण की पहली कटाई 60 दिन बाद करनी चाहिये । तत्पश्चात मध्य मार्च तक 30-35 दिन के अन्तर पर तथा उसके बाद 25-30 दिन के अन्तर पर अगली कटाइयां की जा सकती है। यदि बरसीम बीज के लिये बोई गई है तो मध्य फरवरी अथवा मार्च के प्रारम्भ तक की कटाइयों के बाद “फसल को बीज के लिये छोड़ देना चाहिए।
विलम्ब से कटाई करने पर बीज की उपज कम हो जाती है एवं बीजों का अंकुरण प्रतिशत भी कम हो जाता है तथा शीघ्र होने वाली वर्षा से बीज की हानि होने का अधिक भय रहता है। फूल आ जाने के बाद बीज वाली फसल में सिंचाई नहीं करनी चाहिए। मई माह में तू चलने की वजह से परागण एवं निषेचन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि फसल से बीज न लिया जाय तो प्रति हैक्टर 1000-1200 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है। यदि फरवरी के बाद फसल को बीज के लिये छोड़ दिया जाता है तो करीब 700 किलो बीज तथा 600 क्विंटल हरा चारा प्रति हैक्टर प्राप्त होता है।
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