बाजरा असिंचित फसल के रूप में उगायी जाने वाली मुख्य फसल है। वर्षा आधारित क्षेत्र जहां वर्षा 250 से 300 मिलीमीटर के आस-पास होती है वहां भी संकर एवं संकुल बाजरा बोया जा सकता है। स्थानीय बाजरे की तुलना में संकर एवं संकुल बाजरे की पैदावार काफी अधिक होती है।
उन्नत किस्में एवं उनकी विशेषताएं:-
एच.एच.बी. 67 (1990):-
यह 65 से 70 दिन में पकने वाली संकर किस्म है। इसके पौधों की ऊँचाई 140 से 160 सें. मी. तथा सिट्टे की लम्बाई 18 से 22 सें.मी. होती है। 15 से 22 क्विंटल प्रति हैक्टर उप देने वाली इस किस्म के दाने सामान्य मोटाई के होते हैं। इसके सूखे चारे की पैदावार 25 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टर है। यह तुलासिता रोग प्रतिरोधी है।
एम. एच. 36 (एम.बी.एच. 118) (1985):-
यह एक अधिक उपज देने वाली संकर किस्म है, जिसके पौधों की ऊँचाई 180 से 200 सें.मी. होती है। इसके सिट्टे लम्बे (30 से 35 सें.मी.) और सघन होते हैं। यह किस्म 80 से 85 दिन में पककर तैयार हो जाती है और औसतन 18 से 34 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज देती है। हवा अधिक तेज होने पर इसमें आड़ी गिर जाने की प्रवृति पाई गई है। इस किस्म के दाने मोटे व हरे- स्लेटी रंग के होते हैं। यह किस्म अरगट, कण्डुआ व रोली रोग प्रतिरोधी है।
आर.एच.बी.-90 (2000):-
कृषि अनुसंधान केन्द्र, दुर्गापुरा से विकसित मध्यम फुटान वाली इस किस्म की ऊंचाई 165 से 175 सेमी तथा सिट्टों की लम्बाई 25 से 30 सेमी है। जोगिया रोगरोधी इस किस्म की पकाव अवधि 72-78 दिन है। इस किस्म के दानों की उपज 20-22 क्विंटल तथा सूखे चारे का 40 से 50 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है। इस किस्म के दाने गोल व हल्के सलेटी रंग के होते है। बेलनाकार सिट्टों वाली इस किस्म के दाने कसे हुये तथा बाल युक्त होते है। यह किस्म कम वर्षा व अधिक वर्षा दोनों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म सूखे से अत्यधिक प्रतिरोधक क्षमता रखती है।
आर.एच.बी.-121 (एम.एच. 892) (2001):-
मध्यम फुटान व पतले तने वाली, इस संकर किस्म के पौधों की ऊंचाई 163-175 सेमी. है। कल्ले 3-4, सिट्ठे बेलनाकार, ऊपरी भाग में पतले, कसे हुये तथा रोयेदार होते है। जोगिया रोगरोधी इस किस्म की पकाव अवधि 75-78 दिन, दानों की औसत उपज 25 क्विंटल एवं चारे की उपज 68 क्विंटल प्रति हैक्टर है। दाना हल्का पीला, भूरापन लिये होता है।
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खेत की तैयारी:-
संकर बाजरे के लिए बलुई दुमट मिट्टी वाला खेत, जिसमें जल निकास की पूरी व्यवस्था हो, को चुने। भारी मिट्टी तथा पानी के भराव वाले क्षेत्र में बाजरा न बोयें। पहली वर्षा होते ही खेत की अच्छी जुताई करके बुवाई करे। अंकुरण के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। भारी मिट्टी और खरपतवार से ग्रस्त खेतों में दो अच्छी जुताइयों की आवश्यकता होती है। बुवाई के दो-तीन सप्ताह पहले मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को ध्यान में रखते हुये प्रति हेक्टर 10 से 12 गाड़ी गोबर की खाद डाल दीजिये। जहाँ गोबर-कचरे की खाद की व्यवस्था न हो सके, वहाँ प्रति हेक्टर 10 से 15 किलो अतिरिक्त नत्रजन दीजिये।
बीजोपचार:-
गुन्दिया या चैपा (अरगट) रोग से बचाने के लिये बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल (1 कि.ग्रा. नमक एवं 5 लीटर पानी में लगभग 5 मिनट तक डुबोकर हिलायें तैरते हुए हल्के बीजों व कचरे को निकाल कर जला दीजिये व शेष बचे हुए बीजों को साफ पानी से धोकर अच्छी प्रकार सुखा लें। इसके बाद में प्रति किलो बीज को 3 ग्राम मेटाक्जिल दवा से उपचारित करके ही बोने के काम में लीजिये।
क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में बोने से पहले बाजरा के बीज को एक प्रतिशत सोडियम सल्फेट के घोल में 12 घंटे तक भिगो कर पानी में साफ धो लीजिये। इसके बाद बीजों को छाया में सुखा लें। फफूंदनाशी द्वारा बीजोपचार इसके बाद ही करें। ऐसे उपचारित बीज को खारी मिट्टी में बोने से अंकुरण ज्यादा व अच्छा होगा।
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बाजरा की बीज की दर एवं बुवाई:-
सामान्यतः प्रति हेक्टर 4 किलोग्राम बाजरा का प्रमाणित बीज बोए तथा कतार से कतार की दूरी 40-45 सें. मी. रखें। बाजरा की बुवाई जून की पहली वर्षा के साथ अवश्य कर दें। बाजरे की बुवाई का उपयुक्त समय जून के मध्य से जुलाई के तृतीय सप्ताह तक है। वर्षा न होने पर यदि समय पर बुवाई न हो सके तो जहाँ पानी पर्याप्त मात्रा में हो वहाँ बाजरे की रोपणी तैयार कर पौध को जुलाई के अन्त तक भी खेत में रोप लेना लाभदायक रहेगा।
बीज को 3 से 5 सें.मी. गहरा बोईये, जिससे अंकुरण सफलतापूर्वक हो सके और साथ ही बीज का उर्वरक से सम्पर्क न होने पाये। बुवाई के 15-20 दिन बाद पौधों की छंटाई कर पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. कर दें और जहाँ बीज न उगा हो वहाँ घंटे हुए पौधे रोप दें। अधिकतम उपज हेतु एक हेक्टर में पौधों की संख्या 1.66 लाख तक रखनी चाहिए। अनिश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों में बाजरा के साथ दलहनी फसलें बोना चाहिए। मूल फसल अगेती नहीं होनी चाहिए।
अन्तःशस्य:-
इन्टर क्रोपिंग हेतु बाजरा को 30-30 सें.मी. की दूरी पर दो जुड़वा कतारों के बाद 30 सें.मी. की दूरी पर मूंग या ग्वार की एक कतार बोई जा सकती है। भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में अरहर (किस्म ग्वालियर-3) भी बोई जा सकती है।
खाद एवं उर्वरक:-
कारक (वर्षा, सिचित, असिचिंत, किस्म, उपयोगिता) | नाइट्रोजन किग्रा /हैक्टर | फास्फोरस किग्रा./हैक्टर | पोटाश किग्रा / हैक्टर | अन्य |
600mm से ज्यादा वर्षा | 90 | 30 | – | – |
600mm से कम वर्षा | 30-60 | 20-30 | – | – |
बाजरा की उपयुक्त आर्थिक स्तर पर अधिक उपज लेने के लिये देशी खाद के साथ उर्वरक भी दें।
नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फेट की पूरी मात्रा बुवाई से पहले कतारों में 10 सें.मी. गहरा ऊर कर दीजिये। बुवाई के 25 से 30 दिन बाद वर्षा वाले दिन नत्रजन की आधी मात्रा दे दीजिये। उर्वरक की सही आवश्यकता जानने हेतु मिट्टी की जाँच करानी चाहिये। जहाँ रबी में फॉस्फेट दिया गया हो वहाँ खरीफ में बाजरा की फसल में फॉस्फेट देने की आवश्यकता नहीं है।
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सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई:-
सिंचित फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करें। पौधों में फुटान होते समय, सिट्टे निकलते समय तथा दाना बनते समय भूमि में नमी की कमी न हो इसका विशेष ध्यान रखें। वर्षा की कमी की स्थिति में पौधे पीले पड़ने से पहले ही सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिये। बुवाई के तीसरे-चौथे सप्ताह तक खेत में खरपतवार अवश्य निकाल दीजिये।
इसके पश्चात समय-समय पर आवश्यकतानुसार खेत से खरपतवार निकालते रहिये। जहाँ निराई-गुड़ाई करना सम्भव न हो वहाँ बाजरा की शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने के लिए बुवाई के तुरन्त बाद प्रति हेक्टर आधा किलोग्राम एट्राजीन सक्रिय तत्व 600 लीटर पानी में मिलाकर भी छिड़का जा सकता है। जहाँ अर्न्तशस्यावर्तित फसल हो, वहाँ केवल निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकालें एवं गुड़ाई 5 सें.मी. से अधिक गहरी नहीं करनी चाहिये।
फसल संरक्षण
फड़का:-
फड़का नियन्त्रण के लिए खेतों के आस-पास की पड़त भूमि पर ग्रीष्मकालीन जुताई करें। फड़का का प्रकोप होने पर फसल पर मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें। कातरा नियन्त्रण : कातरा कीट की रोकथाम के उपाय इस पुस्तिका के कातरा नियन्त्रण शीर्षक में पृथक से दिये गये विवरण के अनुसार करें।
सफेद लट:-
बाजरा एक हैक्टर में बोये जाने वाले बीज में 12 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत या क्यूनालफॉस 5 प्रतिशत कण मिलाकर बुवाई करें।
रूट बग:-
जहाँ रूट बग का प्रकोप हो वहाँ प्रकोप को देखते ही 25 किलो मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत प्रति हेक्टर के दर से भुरकाव करें। जहाँ रूट बग का प्रकोप प्रतिवर्ष होता हो वहाँ ये उपचार अवश्य करें।
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जोगिया (ग्रीन ईयर) या हरित बाल रोग:-
रोगरोधी किस्में आई.सी.एम. एच. 356, आर.एच.बी. 30. आर.सी.बी. 2. डब्ल्यू.सी.सी. 75, राज 171, एच.एच.बी. 67, आर.एच.बी. 58 आदि किस्में बोये चरी बाजरे की फसल में से रोगग्रस्त पोधें को निकालकर नष्ट करे। मुख्य फसल की बुवाई के समय रोग ग्रस्त पौधें खेत में नहीं रहने चाहियें। संकर बीज उत्पादन हेतु बीज को बुवाई से पूर्व मेटालक्सिल – 35 प्रतिशत 2 ग्राम से प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। खड़ी फसल में खेतों में जहां जोगिया रोग दिखाई देवें वहां बुवाई के 21 दिन बाद मैन्कोजेब 2 किलो प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
बाजरा के खेत और उसके आस-पास अंजन घास (सेन्करस सिलियेरिस) की निराई कर नष्ट करें क्योंकि बाजरा का गूंदिया रोग अंजन घास द्वारा भी फैलता है। | सिट्टे निकलते समय अरगट, कांगिया एवं हरित बाल रोग का पता लगाने के लिय फसल को अच्छी तरह देखें तथा रोगी पौधों को खेत से उखाड़कर नष्ट कर दें। | अरगट रोग ब्लिस्टर या चेफर बीटल द्वारा भी फैलता है, अतः सिट्टे आने के समय उनकी रोकथाम के लिए मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत या कारबेरिल 5 प्रतिशत 25 | किलो चूर्ण प्रति हेक्टर भुरकिये। बाजरे की बुवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में किये जाने पर अरगट के प्रकोप में स्वतः ही कमी होना पाया जाता है। एक हैक्टर में छिड़काव के लिए लघु आयतन फव्वारे से 200 लीटर पानी और बहुआयतन फव्वारे से 1000 लीटर पानी की आवश्यकता होगी।
बीज भण्डारण:-
बाजरे के बीज को डेल्टामेथिन (2.8 ई.सी.) 0.04 मिलीलीटर + 5 मिलीलीटर पानी के घोल अथवा 2.5 ग्राम थाइरम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके, बोरियों में लगभग डेढ़ वर्ष तक बीज भण्डारण से कीटों के प्रकोप से सुरक्षित रखा जा सकता है या बिना उपचारित कीट रहित बीज को 700 गेज पोलीथिन बैग में रखने से भी बीज का भण्डारण कीटों के प्रकोप से लगभग डेढ़ वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
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