भारत में लगभग 250 लाख पशुधन है जिनसे लगभग 1200 लाख टन गोबर का उत्पादन होता है। आमतौर पर इन पशुओं से प्राप्त गोबर का अधिकतर भाग कंडे बनाकर ईंधन के रूप में खाना पकाने हेतु ग्रामीण परिवारों द्वारा किया जाता है, एवं कुछ हिस्से के गोबर को कंपोस्ट बनाकर कृषि हेतु उपयोग में लिया जाता है। दोनों ही तरीकों से ग्रामीणों द्वारा गोबर का पूर्ण रुप से उपयोग नहीं लिया जा रहा है एवं इस अपशिष्ट का एक बहुत बड़ा हिस्सा व्यर्थ हो जाता है। बायोगैस
यूनाइटेड नेशन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन (यू.एन.आई.ओ.) की ओर से जुलाई 2014 में जारी रिपोर्ट ‘सभी के लिए टिकाऊ ऊर्जा’ के मुताबिक हमारे देश की 1 अरब 30 करोड़ की कुल आबादी में दो तिहाई से ज्यादा लोग खाना बनाने के लिए कार्बन उत्पन्न करने वाले जलाऊ लकड़ी और गोबर से तैयार होने वाले ईंधन का इस्तेमाल करते हैं। इसकी वजह से घर के अंदर उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषक उच्च स्तर तक अस्वस्थता और मृत्यु का कारण बनते हैं। इस तरह से ईंधन के इस्तेमाल से मोतियाबिंद और गर्भ संबंधी प्रतिकूल नतीजों मसलन, जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना और मृत शिशु का जन्म होना जैसी परिस्थितियां भी उत्पन्न हो सकती हैं।
इस संयंत्र द्वारा इन समस्याओं पर प्रभावी रूप से समाधान किया जा सकता है। बायोगैस संयंत्र एक ऐसा संयंत्र है जो पशुओं से प्राप्त प्रतिदिन के अपशिष्ट का कुशलतापूर्वक प्रबंधन करता है और साथ ही साथ उपयोगकर्ता के लिए ऊर्जा एवं खाद का उत्पादन करता है।
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बायोगैस:-
बायोगैस (biogas technology) को प्रायः गोबर गैस के नाम से भी जाना जाता है। बायोगैस ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक सामग्री जैसे गोबर, रसोई, अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट इत्यादि के विघटन से उत्पन्न होती हैं। यह सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की तरह ही नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत है। सामान्यतया पशुओं से उपलब्ध अपशिष्ट से पैदा की जा सकती हैं। इससे प्राप्त गैस का उपयोग खाना पकाने, प्रकाश व्यवस्था एवं डीजल इंजन चलाने के लिए किया जाता है, साथ ही बायोगैस तकनीकी एवं पाचन के बाद बायोगैस संयंत्र उच्च गुणवत्ता वाला खाद प्रदान करता है। जो कि सामान्य उर्वरक/कंपोस्ट की तुलना में बहुत अच्छा होता है। इससे फसल उत्पादन में 1.25 से 1.50 गुना बढ़ोतरी पाई गए हैं। इस प्रौद्योगिकी के माध्यम से ऊर्जा की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए महिलाओं एवं बच्चों द्वारा जलावन की लकड़ी जुटाने में लगे समय में बचत कर इसका सदुपयोग किया जा सकता है।
गोबर गैस/बायोगैस डाइजेस्टर के प्रकार:-
बायोगैस संयंत्र को उनके निर्माण के आधार पर मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है।
स्थित गुंबद वाले बायोगैस संयंत्र:-
यह एक गुंबदनुमा संरचना का होता है इसका निर्माण धरातल के भीतर स्थाई रूप से किया जाता है। गैस डाइजेस्टर के ऊपर के भाग में एकत्रित होती है। जब गैस धीरे-धीरे ऊपर के भाग में एकत्रित होने लगती है तो डाइजेस्टर में दबाव बढ़ता है जिसकी मदद से पचि हुई गैस स्वतः ही बाहर आ जाती है।
तेरतेनुमा ड्रम वाले बायोगैस संयंत्र:-
इस तरह के संयंत्रों में डाईजेस्टर कुए नुमा आकार में जमीन के भीतर बनाए जाते हैं एवं डाइजेस्टर के ऊपर एक उल्टा ड्रम (गैस होल्डर) रखा जाता है जिसमें बायोगैस एकत्रित होती है। बायोगैस की मात्रा के अनुरूप ड्रम केंद्रीय पाइप की मदद से ऊपर नीचे तैरता रहता है। जैसे-जैसे गैस का दबाव बढ़ता है ड्रम ऊपर की तरफ उठने लगता है। गैस के उपयोग के साथ साथ जैसे- जैसे गैस कम होने लगती हैं ड्रम नीचे की ओर आता है।
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बायोगैस संयंत्र के भाग:-
मिक्सिंग टैंक:-
मिक्सिंग टैंक का उपयोग गोबर को पानी के साथ बराबर मात्रा में अच्छी तरह मिश्रित करने के लिए काम में लिया जाता है, बाद में इस तैयार मिश्रण को एक इनलेट पाइप के जरिए डाइजेस्टर में प्रवाह कर देते हैं।
डाइजेस्टर:-
बायोगैस संयंत्र का महत्वपूर्ण भाग है जो धरातल के नीचे बनाया जाता है। इस में गोबर व पानी के घोल का ऑक्सीजन के अभाव में निरंतर किण्वन/पाचन होता है।
गैस ड्रम:-
गैस ड्रम वह स्थान है जहां किण्वन प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न गैस एकत्रित होती है। ड्रम के शीर्ष में एक गैस निकास पाइप लगा होता है जो नली द्वारा स्टोव से जुड़ा होता है।
आउट लेट टैंक:-
यह टैंक डाइजेस्टर में किण्वित हुए घोल को स्वतः ही बाहर निकालने के काम में आता है।
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बायोगैस संयंत्र स्थापित करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है-
- परिवार में सदस्यों की संख्या
- पशुधन की उपलब्धता एवं संख्या
- प्रतिदिन के पर्याप्त पानी की संयंत्र के पास उपलब्धता
- निर्माण सामग्री का साइट पर उपलब्धता
गोबर गैस उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक:-
तापमान:-
बायोगैस संयंत्र में बैक्टीरिया उत्पादन तापमान से प्रभावित होता है। बायोगैस किण्वन 0से 70 डिग्री सेल्सियस तापमान में हो सकता है, परंतु मीथेन का अधिकतम उत्पादन 35 डिग्री सेल्सियस पर होता है जो कि प्राकृतिक तरीके से अपने आप संयंत्र के भीतर नियंत्रित होता है।
पी.एच. मात्रा:-
किण्वन क्रिया में कारक बैक्टीरिया को विशेष पर्यावरण की आवश्यकता होती है जिसके लिए घोल का पी.एच. मात्रा 6.5 से 8.0 के मध्य होना आवश्यक होता है। यह भी प्राकृतिक तौर पर इसी स्तर में उपलब्ध होता है।
जल मिश्रण एवं ठोस पदार्थ एवं कार्बन नाइट्रोजन अनुपात:-
बायोगैस के उत्पादन में ठोस पदार्थ की मात्रा उचित किण्वन के लिए लगभग 8-10% होना आवश्यक हैं। प्राकृतिक तौर पर पशु गोबर में ठोस पदार्थ की मात्रा 20% के आसपास होती हैं, अतः इसमें बराबर पानी की मात्रा मिलाने से मिश्रण में ठोस पदार्थ की मात्रा 20% रह जाती हैं। एनरोबिक डाइजेशन के लिए C/N अनुपात 1:20 से 1:30 उपयुक्त मन जाता हैं।
प्रतिधारण समय:-
यह तापमान के साथ बदलता रहता है। तापमान वाले क्षेत्रों में प्रतिधारण समय कम होता है व कम तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। बायोगैस उत्पादन के लिए आदर्श प्रतिधारण समय साधारणतया 40 दिन का है जिसके लिए तापमान 35 डिग्री होना चाहिए।
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बायोगैस संयंत्र के लाभ:-
- यह ज्वलनशील गैस पर्यावरण के अनुकूल है एवं ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों के लिए बहुत उपयोगी है।
- यह तकनीकी रूप से पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करती हैं।
- बायोगैस की उपलब्धता से खाना पकाने में लगने वाले लकड़ी के उपयोग को कम कर सकते हैं। फलस्वरुप वृक्ष बचाकर पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है।
- गैस उत्पादन के लिए कच्चे माल की आपूर्ति गांव में ही उपलब्ध हो जाती है। कहीं और से कच्चे माल को आयात करने की आवश्यकता नहीं है।
- लकड़ी और गोबर के चूल्हे में बहुत धुआ निकलता है जो गृहणियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। परंतु इस तकनीकी में धुआँ नहीं निकलता है जिससे स्वास्थ संबंधी बीमारियों के रोकथाम में सहायता मिलती है।
- यह संयंत्र बायोगैस के साथ-साथ फसल उत्पादन के लिए उच्च गुणवत्ता वाला खाद भी देता है। जिसके इस्तेमाल से फसल उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है।
सावधानियां:-
- बायोगैस संयंत्र लीकेज रहित रखने के लिए उपयुक्त तकनीक एवं उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग करना चाहिए।
- बायोगैस पाइप एवं अन्य उपकरणों उत्तम गुणवत्ता के उपयोग में लेने चाहिए एवं उनकी समय-समय पर जांच करते रहना चाहिए।
- संयंत्र में निर्धारित मात्रा में प्रतिदिन गोबर डालने से पूर्ण दक्षता के साथ चल सकते हैं।
कैसे लगाएं बायोगैस संयंत्र:-
राज्य के किसी भी लाभार्थी को बायोगैस संयंत्र बनवाने के लिए सबसे पहले बायोगैस विकास एवं प्रशिक्षण केंद्र पर संपर्क करना होता है। लाभार्थी के पास उपलब्ध पशु एवं परिवार में रहने वाले सदस्यों के आधार पर बायोगैस संयंत्र की क्षमता का निर्धारण किया जाता है। बायोगैस संयंत्र के निर्माण के लिए प्रशिक्षित कारीगर की जरूरत होती है जिसकी सूची लाभार्थी को बायोगैस संयंत्र विकास एवं प्रशिक्षण केंद्र से मिल सकती हैं।
किसी भी बायोगैस संयंत्र पर केंद्रीय सहायता प्राप्त करने के लिए उक्त संयंत्र का बायोगैस विकास एवं प्रशिक्षण केंद्र के कर्मचारियों द्वारा निर्माण के स्थान का एवं बायोगैस संयंत्र बनने के बाद संयंत्र को चालू अवस्था का भौतिक सत्यापन करवाना अनिवार्य है। दोनों सत्यापन के बाद लाभार्थी को केंद्रीय अनुदान राशि उनके बैंक खाते में स्थानांतरित कर दी जाती है।
राष्ट्रीय बायोगैस एवं प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत राजस्थान राज्य के लिए निर्धारित की गई अनुदान राशि दो से 6 घनमीटर बायोगैस संयंत्र निर्माण पर:-
श्रेणी | प्रति इकाई केंद्रीय सब्सिडी (रु.) |
अनुसूचित जाती एवं अनुसूचित जनजाति | 7,000- 11,000 |
अन्य सभी | 5,500- 9,000 |
अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें:-
किसी भी प्रकार की तकनीकी जानकारी एवं निदान हेतु निम्नलिखित पते पर संपर्क किया जा सकता है।
विभागाध्यक्ष, नवीकरणीय ऊर्जा विभाग, प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय (सी.टी.ए.ई.) उदयपुर फोन नंबर- 0294-2471068
ई-मेल- sudhirjain@rediffmail-com
से प्राप्त कर सकता है।
प्रस्तुति:-
कपिल कुमार सामर एवं डॉक्टर सुधीर जैन
बायोगैस विकास एवं प्रशिक्षण केंद्र
फोन नंबर-0294-2471068
नवीकरणीय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग,
प्रोद्द्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर