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बारानी क्षेत्रों में खेती कैसे करें?

Written by Vijay Gaderi

वर्षा जल प्रबंधन:-

बारानी क्षेत्रों में मक्का+ उडद (22) तथा मूंगफली + तिल (62) की अन्तर्शस्य खेती के लिए समन्वित नमी संरक्षण के लिए खेत के चारों तरफ परिधि मेड (45 से. मी. X 30 से.मी.) गहरी जुताई (हर तीसरे वर्ष), चीजल हल से 4 मीटर दूरी पर पांच वर्ष में एक बार जुताई, रोटावेटर से प्रथम वर्षा के बाद जुताई ढलान के विपरीत बुवाई, बुवाई के 30 दिन बाद डोल (25 से.मी. X 15 से.मी.) बनाना चाहिए। इससे 28 से 30 प्रतिशत अधिक फसल उत्पादन प्राप्त होता है।

बारानी

बारानी क्षेत्रों में बेर फलोत्पादन के लिए नमी संरक्षण हेतु ट्रेंच प्लान्टिग आवश्यक है। इसके लिए 0.5 मीटर चौडी एवं 1.0 मीटर गहरी ट्रेंच 5 मीटर अन्तराल पर खोदें। ट्रेंच में मिट्टी, कार्बनिक खाद एवं रासायनिक खाद का मिश्रण भरें। 5 मीटर के प्राकृतिक ढलान का वर्षा जल ट्रेंच में एकत्रित करें तथा 5X5 मीटर के अन्तराल पर बेर की उन्नत किस्म उमरान एवं गोला लगायें।

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आकस्मिक फसल योजना:-

(अ) जुलाई के प्रथम सप्ताह से पूर्व मानसून के आगमन पर
  • रोटावेटर का उपयोग करके मिट्टी को भुरभरी बनाना।
  • मक्का के बीजों को1 प्रतिशत थायोयूरिया घोल से 6 घन्टे उपचारित करके बुवाई करना।
  • मक्का + उडद (2:2) अन्तर्शस्य का फसल चक्र में समावेश।
  • शीघ्र पकने वाली फसलों की किस्मों का प्रयोग । 10 दिन से अधिक सूखा अन्तराल पर05 प्रतिशत थायोयूरिया का पर्ण छिडकाव।
(ब) 15 से 20 जुलाई के बीच मानसून आगमन पर
  • मक्का की सूखी बुवाई।
  • प्रतिशत थायोयूरिया के घोल में 6 घन्टे बीजों को भिगोना।
  • मक्का की अतिशीघ्र पकने वाली किस्म जैसे हिम-129 एवं विवेक 17 की बुवाई।05 प्रतिशत थायोयूरिया का 45दिन तथा 60 दिन पर पर्ण छिडकाव।
  • मक्का + उड़द (22) या मक्का + ग्वार (2:2) अन्तर्शस्य पद्धति का समावेश।
(स) 20 जुलाई के उपरान्त मानसून आगमन की दशा में।
  • तिल, उड़द एवं ज्वार चरी की बुवाई।
  • कम उपजाउ मिट्टी में कुलथ की बुवाई।
  • बुवाई के दौरान 20 प्रतिशत ज्यादा बीज की मात्रा का प्रयोग।
  • लगातार मृदा का आच्छादन करना।
  • केओलिन 5 प्रतिशत का छिड़काव।

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पौषक तत्व प्रबंधन:-

बारानी क्षेत्रों में मक्का + उडद (2:2) अन्तर्शस्य पद्धति में 110 किलोग्राम यूरिया तथा 200 किलोग्राम प्रोम खाद प्रति हैक्टर प्रयोग करने से अधिक उत्पादन लिया जा सकता। प्रोम खाद बनाने के लिए गड्ढे का आकार 12 फीट लम्बा, 5 फीट चौडा एवं 3 फीट गहरा गड्ढा बनाना चाहिए। गड्ढे में फसल अवशेष, ताजा गोबर तथा उच्च श्रेणी रॉक फास्फेट (34/74 ग्रेड) का 100. 100 तथा 33 किलोग्राम के मिश्रण के अनुपात में भराई करनी चाहिए। 90 दिन बाद 1 किलो फास्फेट कल्चर एवं 1 किलो एजेक्टोबेक्टर कल्चर को मिलाना चाहिए।

बारानी क्षेत्रों में मिट्टी को उपजाऊ बनाये रखने तथा नमी संरक्षण हेतु तालाब की मिट्टी का प्रयोग करें। अगर मृदा में क्ले (मृतिका मिट्टी) की मात्रा 33 प्रतिशत से कम हो तो रेतीली मिट्टी 100-150 ट्रेक्टर ट्रोली प्रति हैक्टर, रेतीली दोमट मिट्टी में 50-100 ट्रेक्टर ट्रोली प्रति हैक्टर तथा रेतीली दोमट चिकनी मिट्टी में 25-50 ट्रैक्टर ट्रोली प्रति हैक्टर के उपयोग से मक्का तथा मक्का-गेहूं, मक्का-सरसों तथा मक्का तारामीरा की 20-25 प्रतिशत तक अधिक उपज ली जा सकती है। साथ ही मृदा में नत्रजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कार्बन एवं सूक्ष्म तत्वों में बढोत्तरी होती है एवं मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है।

समन्वित बारानी कृषि पद्धति:-

कम तथा मध्यम उपजाऊ मृदा में बारानी खेती से अधिकतम मुनाफा एवं कम जोखिम के लिए आधा हैक्टर में फसल [मक्का + उडद (2:2 कतारें 30 से.मी. पर) या मूंगफली + तिल (62 कतारें 30 से.मी. पर) तथा तारामीरा रबी में], आधा हैक्टर में समोच्य नाली ( 8 मीटर दूरी पर 0 से 30 से.मी. की गहरी तथा 1 मीटर चौडी नाली बना कर उससे निकलने वाली मिट्टी से डोल बनायें), 0.25 हैक्टर में धामन घास तथा 0.25 हैक्टर में ग्वारपाटा को (सब्जी वाला) 60 से.मी. की दूरी पर करोंदा, बेर, एवं सीताफल 5 मीटर की दूरी पर लगायें।

ग्वारपाठा को मेड पर 60 से.मी. की दूरी पर लगायें। ग्वारपाठे को समतल एवं कम उपजाउ जमीन पर 60 X 60 से.मी. की दूरी पर लगाना चाहिए। फलदार पौधों की जीवन रक्षक सिंचाई हेतु 15 से 150 क्यूबिक मीटर का पक्का टांका बनाकर जल संग्रहण कर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।

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फार्म मशीनीकरण:-

मक्का, मूंगफली, खरीफ दालें तथा ज्वार आदि फसलों के लिए आरजिया दो कतारी बुवाई हल से एक दिन में 1.5 हैक्टर की बुवाई की जा सकती है। इस यं से मक्का की दो कतारों के साथ उड़द की दो कतारों को 30 से. मी. की दूरी प तथा मूंगफली + तिल (6:2 कतारें 30 से.मी. पर) से एक हैक्टर में बुवाई करने में घन्टे लगते है तथा एक दिन में 5-6 हैक्टर में बुवाई की जा सकती है।

खरीफ फसलों में नमी संरक्षण एवं खरपतवार हटाने के लिए बुवाई के 20 से 2 दिन बाद आरजिया वीडर (व्हील हो) से गुडाई करनी चाहिए। इससे एक हैक्टर निराई-गुडाई के लिए 10 दिन श्रम शक्ति की आवश्यकता होती है।

बारानी क्षेत्रों में समय की कमी तथा श्रम शक्ति के अभाव में पावर वीडर खरीफ फसलों में निराई-गुडाई करनी चाहिए। पावर वीडर से एक हैक्टर निराई-गुडाई में 5-6 घन्टे लगते हैं तथा 0.75 दिन श्रम शक्ति की आवश्यकता होती है।

बारानी क्षेत्रों में मिट्टी में नमी का संचयन अधिक समय तक रखने तथा खेत के अच्छी तैयारी करने के लिए खरीफ फसलों की बुवाई रोटा- टिल- ड्रील से करनी चाहिए। इससे एक दिन में 5 हैक्टर क्षेत्रफल में बुवाई की जा सकती है।

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शुष्क कृषि के लिए ध्यान रखने योग्य बातें:-

  1. वर्षा के पानी को मृदा में संचय करने के उपाय
  • रबी की फसल कटते ही गहरी जुताई करना ।
  • मृदा में जल धारण क्षमता बढ़ाने के लिए कार्बनिक पदार्थ 10 टन प्रति हैक्टर तीन साल में एक बार अवश्य देना।
  1. भूमि की सतह पर पानी रोकने के लिए खेत को समतल कर मेडबन्दी करना। सचित पानी को फसल उत्पादन हेतु सही ढंग से उपयोग करने एवं मिट्टी में पानी के नुकसान को रोकने के लिए निम्न उपाय करें।
  • मृदा के ऊपरी सतह से वाष्पीकरण कम करने हेतु मृदा आच्छादन करना, खरपतवार की रोकथाम करना एवं पौधों की निचली पत्तियों को हटाना।
  • उर्वरकों का उचित उपयोग करें, जिससे पौधों की जड़ों का विकास हो सके तथा जड़ें गहराई से पानी का उपयोग कर सकें।
  1. खरीफ की फसल के लिए खेत की गहरी जुताई करें, जिससे बरसात के पी का अधिक संरक्षण हो सके। लेकिन रबी में उथली जुताई उपयुक्त रहती है, इससे नमी का वाष्पीकरण नहीं होता है।
  2. रबी की फसलों की बुवाई खरीफ की फसल कटने के तुरन्त बाद (कम समयान्तरण में) करनी चाहिए। संचित नमी का उपयोग रबी में खेत की तैयारी में नहीं करें। कम समय में पकने वाली फसलें एवं किस्में काम में लेवें।
  3. बारानी खेती में रबी की फसलों में सभी उर्वरक बुवाई के समय लगभग 10 सें.मी. गहराई पर ऊर कर देने चाहिए। जबकि खरीफ की फसलों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटेशियम की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष नाइट्रोजन खड़ी फसल में भूमि में नमी होने पर देवें।
  4. बीज की मात्रा सामान्य से 10-15 प्रतिशत अधिक, लेकिन पौधों की संख्या सिंचित क्षेत्र से 10-15 प्रतिशत कम रखें। भूमि में संचित पानी के अलावा वर्षा का इकट्ठा किया गया पानी का उपयोग पौधों के विकास की नाजुक अवस्था में सिंचाई में करें।
  5. मिलवाँ खेती व उपयुक्त फसल चक्र अपनाएँ।
  6. खरीफ फसलों की बुवाई ढाल के विपरीत दिशा व कतारों में करें।
  7. वर्षा में देरी से फसलों को पानी की कमी महसूस हो तो कुल्फा चलाकर या ड्राइलेण्ड वीडर का प्रयोग कर मिट्टी को उथला आच्छादित कर दें जिससे भू-जल का वाष्पन कम होगा।

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