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बी. टी. कपास की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

बी. टी. कपास
Written by Vijay Gaderi

खेत की तैयारी:-

कपास की खेती के लिए दोमट / चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है। एक बार मिट्टी पलटने वाले हल तथा बाद में त्रिफाली या हैरो से 2-3 बार जुताई कर भूमि तैयार करें। बी.टी. कपास की बुवाई करते समय यह ध्यान रखे कि बी.टी. कपास के बीज के साथ नॉन बी.टी. कपास का बीज बी.टी. कपास के चारो ओर 20 प्रतिशत क्षेत्र में लगाना अनिवार्य है।

कपास

भूमि उपचार:-

जिन क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप हो वहां इसकी रोकथाम हेतु मिथाइल पैराथियोंन 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय खेत में मिलावे। दीमक का प्रकोप कम करने के लिए खेत की पूरी सफाई जैसे सूखे फसल अवशेषों को इकठठा कर जला देवें। कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग नहीं करें।

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उन्नत किस्में:-

जी.ई.ए.सी. द्वारा लगभग 550 से अधिक बी.टी किस्में अनुमोदित है। राज्य सरकार द्वारा भी प्रतिवर्ष प्रदेश में बुवाई हेतु बी.टी किस्मों का अनुमोदन किया जाता है। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 के लिए अनुमोदित बी.टी. कपास की विभिन्न किस्मों की सूची परिशिष्ट-1 पर संलग्न है। इनकी बुवाई भी सिफारिश किऐ गये क्षेत्रों में की जा सकती है।

खाद एवं उर्वरक:-

बुवाई से तीन चार सप्ताह पहले 8-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से जुताई कर भुमि में अच्छी तरह मिलाकर देवें संकर किस्मों की भाँति ही बी.टी. कपास किस्मों में 120 किलो नत्रजन, 60 किलो फॉस्फेट व 30 किलो पोटाश प्रति हैक्टर की दर से देवें। फॉस्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के समय बीज के नीचे ऊरकर देवे। नत्रजन की शेष आधी मात्रा दो बराबर भागों में कमशः कलियां एवं डोडे बनते समय देवें।

जिन मृदाओं में सल्फर, पोटश व जिंक कान्तिक स्तर से नीचे हो तो इन उर्वरकों का उपयोग करने से आर्थिक लाभ का स्तर बढ़ जाता है। 2 प्रतिशत म्यूरेट ऑफ पोटाश अथवा एन.पी.के. मिश्रण का छिड़काव डोड़े बनने के प्रारंभ में एवं अधिकतम डोड़े बनते समय करने से कपास की उपज एवं रेशे की गुणवत्ता बढ़ाने में लाभकारी रहता है। साथ ही 3 प्रतिशत पोटेशियम नाईट्रेट (KNO) का छिड़काव फूल तथा डोडे बनने की अवस्था में करें।

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बीज उपचार:-

बीज तथा मृदा जनित रोगों की रोकथाम हेतु बीजों को बुवाई पूर्व 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 8 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके बोयें। फसल की शुरूआती अवस्था में रस चूसक कीटो के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू.एस. अथवा थायोमिथोक्साम 5-7.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से को उपचारित करें।

कपास के बीजों को स्टेप्टोसाईक्लिन सल्फेट 400 मि. ग्राम प्रति 4 लीटर पानी में 8 घण्टे तक भिगोकर रखें फिर बुवाई के लिए काम में लें। स्ट्रेप्टोसाईक्लिन सल्फेट (100 मि.ग्रा/ लीटर) + कॉपर आक्सीक्लोराइड (2.5 ग्राम/लीटर) का 35, 55 एवं 75 दिन पर खड़ी फसल में छिड़काव करें। उपरोक्त प्रयोग से कोणीय पत्ती धब्बा एंव अन्य पत्ती धब्बा रोग समाप्त हो जाते है।

बीज दर, बुवाई का समय एवं विधि:-

सिंचित फसल जून के प्रथम पखवाड़े तक बोना सुनिश्चित करे। बी.टी. कपास किस्मों की बुवाई हेतु कतार से कतार तथा पौधे से पौंधे की दूरी 90×45 अथवा 90×90 से.मी. रखें। पॉलीथीन की थैलियों में अतिरिक्त पौधे तैयार कर रिक्त स्थानों पर रोपकर वांछित पौध संख्या बनाये रख सकते है। बी.टी. कपास किस्मों में 90×90 से मी. फसल ज्यामिति के लिए प्रति हैक्टर 12 से 1.5 किलोग्राम तथा 90×45 से.मी फसल ज्यामिति के लिए 2 से 2.5 किलोग्राम बीज काम में लेवें। बी.टी कपास की किस्मों की बुवाई के साथ नॉन बी.टी कपास के बीज (रिफ्यूजिया बीज) खेत के चारो और आवश्यक रूप से बोये।

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सिंचाई व निराई-गुड़ाई:-

बुवाई के 3-4 दिन बाद एक हल्की सिंचाई करने से अंकुरण अच्छा होता है। अंकुरण के बाद पहली सिंचाई 20 से 30 दिन में करें, इससे पौधों की जड़े ज्यादा गहराई तक बढ़ती है। इसी समय पौधों की छंटनी भी कर देवें उर्वरक देने के बाद। और फूल आते समय यदि वर्षा न हो तो सिंचाई अवश्य करें। दो फसली क्षेत्र में 15 अक्टूबर के बाद सिंचाई नहीं करें।

बुवाई के तुरन्त बाद 1 लीटर पेन्डामिथेलीन 500 लीटर पानी अथवा क्यूजालाफोप ईथाईल 750 मिली. 375 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करें। बुवाई के 20 से 25 दिन बाद प्रथम निराई-गुड़ाई अवश्य करें। यदि खरपतवार दुबारा हो जाये तो आवश्यकतानुसार दूसरी निराई-गुड़ाई करें।

फसल गुणवत्ता:-

कपास की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मैग्निशियम सल्फेट 1 प्रतिशत जिंक सल्फेट 0.5 प्रतिशत का छिड़काव 0.25 प्रतिशत बुझा हुआ चूना मिलाकर फूल आते समय एव डोडे बनते समय करें।

बी.टी. कपास में रिफ्यूजिया का महत्व:-

भारत सरकार की आनुवांशिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जी.ई.ए.सी.) की अनुशंषा के अनुसार कुल बी.टी. क्षैत्र के 20 प्रतिशत अथवा 5 कतारें (जो भी अधिक हो) मुख्य फसल के चारों ओर उसी किस्म का बिना बी.टी. (नॉन बी.टी) वाला बीज बोया जाना अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक बी.टी किस्म के साथ उसका नॉन बी.टी. बीज (120 ग्राम) उसी पैकेट के साथ आता है। आजकल नॉन बी.टी के स्थान पर अरहर का बीज भी कुछ किस्मो में आने लगा है। प्रायः इस रिफ्यूजिया बीज ना लगाने पर डोड़ा छेदक कीटों के प्रकोप की सम्भावना बन सकती है और इनके लगातार यहा रहने पर डेन्डू छेदक कीटो में प्रतिरोधकता विकसित हो सकती है। नॉन बी. टी. रिफ्यूजिया कतारे लगाने पर डोडा छेदक कीटों का प्रकोप उन तक ही सीमित रहता है और यहाँ उनके नियंत्रण के लिए कीटनाशक का छिड़काव करना आसान होता है।

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फसल संरक्षण:-

रोग नियंत्रण:-
रोग का नामबी.टी कपास में नियंत्रण उपाय
उखटा एवं जड़ गलन रोग
  • गर्मी में गहरी जुताई करें।
  • जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम / हैक्टर की दर से उपयोग करें।
  • ट्राइकोडर्मा 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेण्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।
  • खड़ी फसल में रोग की रोकथाम हेतु डाईथेन एम-45, 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से ड्रेचिंग करें।
  • जिस क्षेत्र में जड़ गलन का प्रकोप अधिक हो वहाँ 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति हैक्टर की दर से 200 किलोग्राम गोबर खाद के साथ मिलाकर खेत में डाले।
ब्लैक आर्म/जीवाणु अंगमारी·        खड़ी फसल में 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन तथा 25 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड का घोल बनाकर छिड़काव करें।

·        आवश्यकतानुसार दूसरा छिड़काव 10 दिन बाद दोहराये।

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग
·        खड़ी फसल में रोग लक्षण दिखाई देते ही 2 ग्राम मैन्कोजेब या प्रोपीनेब प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

·        दूसरा छिड़काव एक सप्ताह बाद दोहरायें।

पेराविल्ट या नया सूखाकपास में यह एक कार्यिकी विक्षोभ (Physiological Disorder) है। अधिक एवं निरन्तर वर्षा के पश्चात तेज धूप निकलने की स्थिति में बी.टी कपास की खड़ी फसल में कुछ पौधे सूख जाते है। जिसकी रोकथाम के लिए कोबाल्ट क्लोराईड (10 पी.पी.एम.) का ग्रसित पौधो पर छिड़काव करें। 10 पी.पी.एम. का घोल बनाने हेतू 2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराईड एक लीटर पानी में घोल कर उसमें से 75 मि.ली. घोल को 15 लीटर पानी की टंकी में घोल कर छिड़काव करें।
क्रेजी टॉप2.4-D एट्राजिन अथवा अन्य खरपतवार नाशी आमतौर पर खेतों में उपयोग में लाए जाते हैं जिसके प्रति कपास की फसल अति संवेदनशील हैं। इन खरपतवारनाशको की अति सुक्ष्म मात्रा भी कपास की फसल पर विपरित परिणाम डाल सकती हैं। यह अक्सर देखा गया हैं कि बगल के खेत में डाली जाने वाली एट्राजिन या 2,4-D या अन्य खरपतवार नाशी हवा द्वारा पास के खेत में बोई गई बी.टी. कपास के पौधों पर गिर जाती हैं, जिससे ग्रसित पत्तीयां सिकुड़कर एक पंजे का रूप धारण करती है।

जिसकी पतली उंगलियां भी दिखती है। पत्तियां विकृत रूप धारण कर लेती है। इसके अलावा खरपतवारनाशी छिड़कने हेतु उपयोग में लाए गए उपकरण अगर व्यवस्थित रूप से साफ न कर उसे कपास की फसल में उपयोग में लाया जाए तो क्रेजी टॉप नामक विकृति निर्माण होती हैं। इसके नियंत्रण हेतु फसल को सिचाई कर जड़ो में युरिया उर देवें तथा 1 प्रतिशत युरिया | के घोल का छिड़काव करें अथवा केल्शियम कार्बोनेट (1-5%) अथवा जिबरेलिक एसीड 0.1 मिली /10 लीटर पानी (50 ppm ) का घोल बनाकर छिड़कें।

कीट नियंत्रण:-

कीट का नामबी.टी कपास में नियंत्रण विधि
दीमकमिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से मृदा उपचार करें।
 रस चूसक कीट:- जैसिड्स:- आर्थिक नुकसान स्तर (2-3 निम्फ / पत्ती ) सफेद मक्खी / थ्रिप्स: आर्थिक नुकसान स्तर (6-8 वयस्क / पत्ती) उनके नियंत्रण उपाय निम्नानुसार हैं।
जैव नियंत्रणक्राइसोपर्ला परजीवी के अण्डे 50,000 प्रति हैक्टर की दर से पत्ती के नीचे उपयोग करें। अगर आवश्यकता हो तो फूल आने पर इसे दोहरायें।
रासायनिक नियंत्रण
निम्न वर्णित रसायनो का छिड़काव करें:

0.2 मिली इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. / लीटर पानी या

0.5 मिली थायोमिथोक्साम 25 डब्ल्यू. जी. / लीटर पानी या

400 से 600 मिली प्रति हैक्टर डायमिथोएट 30 ई.सी या

1 लीटर / हे. मोनोकोटोफास 36 एस. एल या

1.25 लीटर / हैक्टर ब्यूप्रोफेजिन 25 एस. सी या

100 मिली / हैक्टर एसिटामिप्रिड 20 एस.पी या

625 ग्राम / हैक्टर डायफेनथूरॉन 50 डब्ल्यू.पी.

650-700 ग्राम / हैक्टर एसीफेट 75 एस.पी.

मिलीबगनिम्न वर्णित कीटनाशी रसायनों का छिड़काव प्रति हैक्टर की दर से करें।

  • 1 लीटर/हैक्टर क्लोरोपाइरिफॉस 20 ई.सी. या 1.25 लीटर / हैक्टर प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. का छिड़काव करें या 1 लीटर / हैक्टर डाईमिथोएट 30 ई.सी. 1 लीटर / हैक्टर क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. या छिड़काव के समय एक चम्मच वॉशिंग पाउडर घोले.
तम्बाकू की लट (स्पोडोपटेरा)बी.टी कपास (बीजी-1) की संकर किस्मे तम्बाकू की लट के नियन्त्रण हेतु प्रभावी नहीं होती। यह लट सर्वभक्षी कीट है। कीट की लार्वा अवस्था अगस्त से अक्टूबर तक नुकसान पहुँचाती है। छोटी अवस्था में लार्वा काले सलेटी भूरे रंग की बालों रहित होती है। बड़ी होने पर गहरे हरे रंग की हो जाती है व शरीर पर काले तिकोने आकार के धब्बे बन जाते है। कीट की तितली पत्तियों की निचली सतह पर समूह मे अण्डे देती है व अण्डो का समूह बालों से ढका रहता है।
बी.टी कपास में तम्बाकू की लट के प्रभावी नियंत्रण हेतु:-
 (अ) शस्य व यांत्रिक नियंत्रण:-

  1. बी.टी. बी.जी.-II कपास की सिफारिस की गई गई किस्मों को ही उगाये।
  2. बी. टी कपास के खेत के पास अरण्डी मूगं ढेचा व भिण्डी ना लगाए क्योंकि ये तम्बाकू की लट के सर्वाधिक पसंद के पोषक पौधे है।
  3. खेत को खरपतवारों से साफ रखे / पत्थरचटा (साटा इटसिट) व कांग्रेस ग्रास न पनपने दे।
  4. स्पोडोपटेरा कीट के अण्डो के समूह से जो कि पत्तियों के नीचे वाली सतह पर होते है उन्हें इकटठा करके नष्ट कर दे।
  5. प्रकाश पाश का प्रयोग करे।
 (ब). रासायनिक नियंत्रण:-

  1. थायोडिकार्ब 75 एस. पी. 175 ग्राम प्रति लीटर पानी या
  2. क्लोरपाइरिफास 20 ई.सी. 5 मि.ली / लीटर पानी या
  3. क्यूनालफॉस 20 ई.सी. 2 मि.ली / लीटर पानी या
  4. एसीफेट 75 एस.पी. 2 ग्राम / लीटर पानी या
  5. न्यूवोलूरोन 10 ई.सी. 1 मि.ली / लीटर पानी या
  6. इमामैक्टन बैनजोएट 5 एस. जी 0.5 ग्राम / लीटर पानी या
  7. फलूबैन्डीयामाइड 480 एस सी 0.4 लीटर पानी या
  8. इन्डोक्साकार्ब 15.8 एस.ई. 350 मि.ली / है या
  9. क्लोरएन्थ्रानिलप्रोल (रायनाक्सीपर) 18.5 एस.ई. 150 मि.ली. है।

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