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उन्नत खेती औषधीय फसलों की खेती

ब्राह्मी की उन्नत खेती एवं इसका औषधीय महत्व

ब्राह्मी
Written by Vijay Gaderi

औषधीय जगत में एक जड़ी बूटी के रूप में ब्राह्मी को अत्यधिक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त है। ब्राह्मी जिसे अंग्रेजी में थाइम लिविड ग्रेटेयाला के नाम से जाना जाता है। जिसका वानस्पतिक नाम बाकोपा मोनीएरी है। यह पौधा स्क्रोफुलरियेसी कुल की सदस्य हैं।

ब्राह्मी

क्षेत्रीय नाम:-

संस्कृत- किनीर ब्रह्मी, हिंदी- ब्रह्मी, मराठी, तमिल एवं मलयालम- निर ब्रह्मी, कन्नड़- निरुब्रह्मी, बंगाली- जलनीम, अंग्रेजी थाइम लीवड ग्रेटेयाला।

वानस्पतिक विवरण:-

ब्राह्मी का पौधा छोटा तथा छतेदार विसर्पी होता है। इसका तना दूर- दूर तक जमीन पर फैलता है जिसकी प्रत्येक ग्रंथि पर अनेक मूल तथा फूल-फल लगते हैं। इसकी शाखाएं एवं पत्ते मुलायम तथा गुद्देदार होते हैं। इसकी पत्तियां अठन्नी के समान गोलाकार- वृत्ताकार होती है तथा इसके किनारे सरल तथा किन्ही-किन्ही संदर्भों में गोल दंतुर या कभी- कभी विच्छिन होते हैं।

पुष्प वृंतरहित तथा लाल रंग के होते हैं तथा 3 से 6 गुच्छों में लगते हैं। इसके फल लगभग 1/3 इंच तक बड़े होते हैं जिन पर 7-9 उन्नत धारियां होती हैं। इन फलों पर चपटे बिज लगते हैं।

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भौगोलिक विवरण:-

ब्राह्मी भारत में पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु तक में पाई जाती है। परंतु मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल इत्यादि प्रदेशों मेस्फलतापूर्वक उगाई जाती हैं।

औषधीय उपयोग:-

ब्राह्मी मुख्यतः बलवर्धक औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। साथ ही विर्यविकारों को भी दूर करती है एवं आयुवृद्धि करने की शक्ति भी रखती है। इस प्रकार इसमें आयुवर्धक, बुद्धि परिष्कारक व स्वर माधुर्यकारक 3 विशेष गुण विद्यमान होते हैं। हृदय की दुर्बलता दूर करने में भी उपयोगी है। इस पौधे में मध्य-मधावर्धक एवं मानव रोगों की एक अचूक औषधि है। इसके अतिरिक्त ब्राह्मी तेल को सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी प्रयोग किया जाता है।

सक्रिय घटक:-

ब्राह्मी में ब्रिन हरपेस्टिन, हाइड्रोकाटिलीन एल्कोलाइड, एशिया टीकोसाइड, वेल्लेरिन, उड़नशील तेल, रालीय सत्व तथा पेक्टिक एसिड इत्यादि पाए जाते हैं।

भूमि एवं जलवायु:-

ब्राह्मी की खेती के लिए दोमट, रेतीली, हल्की काली मिट्टी उपयोगी होती है। साथ ही शीत प्रधान एवं आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं।

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खेत की तैयारी:-

ब्राह्मी की खेती के लिए चयनित भूमि में 10-12 बार जुताई करके 5 ट्राली गोबर खाद या कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालकर पुनः खेत की जुताई करनी चाहिए ताकि खाद ठीक प्रकार से भूमि में मिल जाए।

प्रवर्धन:-

ब्राह्मी का प्रवर्धन उसकी शाखाओं द्वारा होता है।

बुवाई:-

मानसून प्रारंभ होते ही जून-जुलाई माह में कर दी जानी चाहिए। इसकी बुवाई पूर्णतः विकसित शाखाओं द्वारा की जाती हैं। शाखाओं को कतारबद्ध तरिके से 60×60 से.मी. की दुरी पर लगाना चाहिए। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 500 की.ग्रा. या 25000 नग गीली शाखाओं की आवश्श्यकता पड़ती हैं।

सिंचाई:-

ब्राह्मी को बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वर्षा ऋतु के बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।

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निराई गुड़ाई:-

ब्राह्मी की फसल के दौरान दो बार निराई-गुड़ाई के पहली बुवाई के 15 से 20 दिन बाद वह दूसरी लगभग 2 माह बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवार हटा देनी चाहिए।

रोग एवं इसकी रोकथाम:-

ब्राह्मी की फसल में किसी भी प्रकार के कीटों का प्रकोप नहीं होता। परंतु कभी-कभी एफिड एवं अन्य कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए उचित कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए।

दोहन वह संग्रहण:-

ब्राह्मी की फसल लगभग 6 माह में तैयार हो जाती है। इसका संपूर्ण पौधा, अगले वर्षों के लिए, बीज हेतु पौधे को छोड़कर उखाड़ लेना चाहिए। तत्पश्चात पौधों को छायादार स्थान पर सुखा लेना चाहिए। लगभग 8-10 दिनों में पौधे सूखने के उपरांत बोरे में भरकर संग्रहण कर लेना चाहिए।

उत्पादन एवं उपज:-

ब्राह्मी की फसल से लगभग 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

बाजार मूल्य:-

ब्राह्मी का बाजार में वर्तमान मूल्य 25-30 रूपये प्रति किलोग्राम तक हैं।

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