ब्रोकली की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक - innovativefarmers.in
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ब्रोकली की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

ब्रोकली
Written by Vijay Gaderi

हमारे देश में अधिकतर सब्जियों की औसत उत्पादकता विभिन्न सब्जियों की विश्व औसत उत्पादकता से कहीं कम है। आगे आने वाले समय में सब्जियों का उत्पादन तथा निर्यात दोनों ही बढ़ने की संभावना है। जहां हम जानी पहचानी कई तरह की सब्जियां अपने देश में उगा रहे हैं वह अभी भी कुछ ऐसी सब्जियां है जो आर्थिक व पौष्टिकता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह की सब्जियों में ब्रोकली का नाम बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी खेती पिछले कई वर्षों से धीरे-धीरे बड़े शहरों के आसपास की जा रही हैं। बड़े महानगरों के पास इस सब्जी की मांग बढ़ने लगी है। पांच सितारा होटल तथा पर्यटक स्थलों पर सब्जी की मांग बहुत है तथा जो किसान इसकी खेती करके उसको सही बाजार में बेचते हैं उनको उस की खेती से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

ब्रोकली

ब्रोकली का उद्गम स्थल इटली है। 2000 साल पूर्व इसकी उपज।की बात कही जाती है। ब्रोकली की खेती आर्थोपोजन के दृष्टिकोण से लाभदायक है। जो साधारणतया फूलगोभी से काफी महंगी बिकती है। यह सब्जी किचन गार्डन के लिए अति उत्तम रहती हैं। शरद ऋतु की फसल होने से छतों, बालकनी तथा निचे क्यारियों में उगाई जा सकती है।

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जलवायु:-

ब्रोकली को ठंड के मौसम में उगाया जा सकता है। 15 से 24 डिग्री सेल्सियस के उत्कृष्टता तापमान  में इसकी खेती की जा सकती है। गर्म जलवायु उचित नहीं होती है। ब्रोकली को उत्तर भारत के मैदानी भागों से जाड़े के मौसम में अर्थात सितंबर मध्य के बाद से फरवरी तक उगाया जा सकता है। जो किसान साधारण फूलगोभी की खेती का अनुभव है वैसे किसान ब्रोकली की खेती को आसानी से कर सकता है।

मिट्टी:-

इस फसल की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। इस सब्जी के लिए कोई विशेष भूमि की आवश्यकता नहीं होती बल्कि यह सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। लेकिन सर्वोत्तम भूमि दोमट या हल्की बलुई दोमट जीवनशयुक्त भूमि का होना नितांत आवश्यक है जिसका PH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

खेत की तैयारी:-

ब्रोकली के लिए दो से तीन बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें क्योंकि खरीफ की फसल के अवशेष गल-सड़ जाये अर्थात खेत को खरपतवार घास रहित कर लेवे। आवश्यकतानुसार जुताई करके  खेत को भली-भांति भुरभुरा कर तैयार करना चाहिए। जिससे खेत में खरपतवार ना उगे तथा खेत ढेले रहित होना चाहिए।

नर्सरी की तैयारी:-

ब्रोकली का बीज भी आसानी से उपलब्ध हो जाता हैं जो किसी भी रजिस्टर्ड बीज भंडार में उपलब्ध हो सकता है। सितंबर मध्य से नवंबर के शुरू तक पौध तैयार की जा सकती है। बीज बोने के लगभग 4 से 5 सप्ताह में इसकी पौध खेत में रोपाई करने योग्य हो जाती है। इसकी नर्सरी फूलगोभी की नर्सरी की तरह तैयार की जाती है।

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ब्रोकली की किस्में:-

ब्रोकली की लगभग सभी किस्में।विदेशी हैं। इनमे से कुछ इस प्रकार हैं:-

ग्रीन हेड किस्म:-

इस किस्म के शीर्षक हरे रंग के होते हैं जो ऊपर से जुड़े हुए होते हैं।

इटेलियन ग्रीन:-

यह भी हरे रंग की भली भांति शिष्य दिखाई देते हैं जो ऊपर से कुछ खुले हुए दिखाई देते हैं।

डी.पी.जी.वी.-1:-

यह किस्म विकसित की गई है जिसका रंग कुछ हल्के हरे जैसा होता है। लेकिन नीचे से शीर्ष हरे रंग के होते हैं।

पूसा ब्रोकली:-

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में हाल ही में ब्रोकली-1 किस्म की खेती के लिए सिफारिश की है तथा इसके बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराइन कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किए जा सकते हैं।

के.टी.एस.-1:-

इसके पौधे शीर्ष मध्य ऊंचाई के पत्तियां हरी, शीर्ष सख्त और छोटे तने वाला होता है।

प्रीमियम क्रॉप, टॉप ग्रीन कोमट, क्राइटेरियन, नाइन स्टार, पेरिनियल, इटालियन ग्रीन स्प्रौक्टिंग या केलेब्रस, बाथम 29 और ग्रीन हेड प्रमुख किस्में हैं। कई बीज कंपनियां अब ब्रोकली के संकर बीज बेच रही है।

संकर किस्मों में:-

पाइरेट पेकमे, प्रीमियम क्रॉप, क्लिपर, क्रूसेर, स्टिक व ग्रीन सर्फ मुख्य है।

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बीज की मात्रा:-

एक हेक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए लगभग 375 से 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। 200 ग्राम प्रति एकड़ तथा 40 से 50 ग्राम प्रति बीघा या 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है।

बुवाई का समय:-

बीज की पौधशाला में सितंबर से अक्टूबर के माह में करें तथा खेत या क्यारियों में बीज बुवाई के 20-25 दिन बाद यानी अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में अवश्य करें क्योंकि देरी से बोने पर शीर्ष गुणवत्ता वाले तैयार नहीं होते।

बुवाई का तरीका:-

रोपाई:-

नर्सरी में पौध जब फूल गोभी की तरह 8-10 से.मी. लम्बी या  सप्ताह की हो जाये तो उनको तैयार खेत में कतार से कतार में 15 से 60 सेमी का अंतर तथा पौधे से पौधे के बिच 45 से.मी. का फासला देकर रोपाई करनी चाहिए। रोपाई करते समय मिट्टी में नमी होनी चाहिए तथा रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें।

बुवाई:-

पौध की रोपाई दोपहर के बाद शाम के समय करनी चाहिए।

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खाद और उर्वरकों की मात्रा:-

अच्छी पैदावार लेने के लिए निम्न खाद की मात्रा प्रति हेक्टेयर देना लाभदायक होता है। खाद एवं उर्वरकों की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर देना उचित रहता है। इस सब्जी के लिए गोबर की खाद 20 से 30 टन, नाइट्रोजन 80 से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा फास्फोरस 45 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। गोबर की खाद, सुपर फास्फेट व पोटाश की मात्रा को खेत की तैयारी से पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन दो या तीन भागों में बांट कर 25, 45 या 60 दिन बाद प्रयोग करना अच्छा माना जाता है। नाइट्रोजन को दूसरी बार लगाने के बाद,पौधों पर मिट्टी चढ़ाना उचित रहता है।

निराई गुड़ाई व सिंचाई:-

प्रथम सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें तथा अन्य सिंचाई मिट्टी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर करें। इस फसल में लगभग 10 से 15 दिन के अंतर पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए और रोपाई के 15 दिन बाद प्रथम गुड़ाई करें तथा जंगली घास होने पर निकाल देवे। इस प्रकार से दो से तीन बार निराई- गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है कोई पौधा मर गया हो तो रोपाई कर देनी चाहिए और पौधों पर मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए जिससे पौधा गिरने न पाए।

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ब्रोकली की फसल में प्लास्टिक मल्चिंग का इस्तेमाल:-

जिस खेत में सब्जी वाली फसल लगानी है। उस खेत में उठी हुई क्यारियां बनाए। फिर उनके ऊपर ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन बिछाए। ब्रोकली की खेती के लिए 25 से 30 माइक्रोन प्लास्टिक फिल्म बेहतर होती है। इस फिल्म को उचित तरीके से बिछाते जाए और फिल्म के दोनों किनारों को मिट्टी से दबाते जाए इसे आप ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन से भी दबा सकते हैं। इसके बाद फिल्म पर गोलाई में पाइप से 2 पौधों की बराबर दूरी तय करके छेद करने होंगे। फिर इन छेदों में पौधों का रोपण करना चाहिए।

खेत में प्लास्टिक मल्चिंग करते समय सावधानियां:-
  • प्लास्टिक फिल्में ज्यादा तनाव यानि टाइट नहीं लगानी चाहिए।
  • प्लास्टिक फिल्म में जो भी सल हो उसे निकालने के बाद ही मिट्टी चढ़ावे।
  • खेत में प्लास्टिक फिल्म हमेशा सुबह या शाम के समय लगानी चाहिए।
  • प्लास्टिक फिल्म में छेद करते वक्त छेद सावधानी से करें और सिंचाई नली को ध्यान रखकर ही लगाएं।
  • प्लास्टिक फिल्म छेद एक जैसे हो और फिल्म फटने भी ना पाए।
  • खेत में प्लास्टिक फिल्म पर मिट्टी चढ़ाने में दोनों साइड पर एक जैसी रखना अच्छा रहता है।
  • प्लास्टिक फिल्म की घड़ी करना (लपेटना) हमेशा गोलाई में करना अच्छा रहता है।
  • प्लास्टिक फिल्म को फटने से बचाना चाहिए ताकि उसका उपयोग दूसरी बार भी किया जा सके और उपयोग सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए।

शीर्षों की कटाई:-

शीर्षों को काटने या तोड़ने का भी एक समय होता है। हेड की कलियां बड़) बड़ी या खुलने से पहले ही कच्चे नरम फूलों या हेड को काटना चाहिए अन्यथा ब्रोकली की गुणवत्ता नष्ट हो जाती है। इन तैयार शीर्षों को 12 से 15 सेमी लंबे ठंडल के साथ काट लेना उचित रहता है।

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कीट एवं उपचार:-

फसल की प्रारंभिक अवस्था में प्राय यह गिडार, आरा मक्खी, तंबाकू की सुंडी इत्यादि कई कीटों का हमला होता है।

नियंत्रण:-

इसके नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50 ई.सी. को मिथाइल पैराथियान 50 ई.सी. की 10 से 15 मी.ली. मात्रा 10 लीटर पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार दो से तीन बार प्रयोग करें।

रोग एवं उपचार:-

फसल में काला सदन (ब्लेक राट),काली मेखला (ब्लेक लेग), पत्ती धब्बा, फिलोड़ी तथा मृदु आदि रोगों का प्रभाव पड़ता है प्रमुख रोग निम्न है:-

काला सडन:-

इस रोग में पत्तियों के किनारे वि आकार के मुरझाए हुए धब्बे दिखाई देते हैं, रोग की तीव्र अवस्था होने पर पत्तियों की शिराओं का रंग काला तथा भूरा होने लगता है।

रोकथाम:-

इसकी रोकथाम हेतु पौध डालने के पहले 3% फार्मेलिन के गोल से क्यारी को उपचारित करके काली पॉलिथीन से तुरंत ढककर चारों ओर से दबा दें।

पत्ती धब्बा रोग:-

पत्तियों पर अनेक छोटे- छोटे गहरे रंग के धब्बे बनते हैं। इन धब्बो के मध्य का भाग पर नीलापन लिए हुए फफूंदी की वृद्धि पाई जाती है।

नियंत्रण:-

इसके नियंत्रण हेतु 2.5 की.ग्रा. मेंकोजेब प्रति हेक्टेयर क दर से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। ब्रोकली की गुवत्तायुक्त उपज लेने हेतु एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन की संस्तुतियों को भी अपनाने की आवश्यकता है।

जैविक रोकथाम:-

काला सडन, तना सड़न, मृदु रोमिल रोग यह प्रमुख बीमारियों से रोकथाम के लिए 5 लीटर देशी गाय के मट्ठे में 2 किलो नीम की पत्ती, 100 ग्राम तंबाकू की पत्ती, एक किलो धतूरे की पत्तियों को 2 लीटर पानी के साथ तब तक उबालें जब तक पानी 1 लीटर बचे तो ठंडा करके छान के मट्ठे में मिला लें। 140 लीटर पानी के साथ (यह पुरे घोल का अनुपात है। आप लोग एकड़ में जितना पानी लगे उसी अनुपात में मिलाएं ) मिश्रण तैयार कर पंप के द्वारा फसल पर छिड़काव करें।

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कटाई:-

फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बनकर तैयार हो जाए तो इसको तेज चाकू या दराती  से कटाई करना चाहिए। ध्यान रखे की कटाई के साथ गुच्छा खूब गुथा हुआ कसा हो तथा उसमे कोई  कली खिलने न पाए। ब्रोकली को अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली होकर बिखर जाएगी तथा उसकी कली खिलकर पीला रंग दिखाने लगेगी। ऐसी अवस्था में कटाई किए गए गुच्छे बाजार में बहुत कम दाम पर बिक सकेंगे। मुख्य गुच्छा काटने के बाद, ब्रोकली के छोटे गुच्छे   बिक्री के लिए प्राप्त होता रहता है।

उपज:-

ब्रोकली के एक हेड को काटने के बाद पौधों में नई नई शाखाएं निकल आती है। इस प्रकार से पौधे का प्रथम हेड लगभग 200 से 400 ग्राम तथा अन्य 100 से 150 ग्राम तक के होते हैं। इस प्रकार से 1 पौधे से औसतन 800 से 1000 ग्राम या 1 किलो तक हैड (ब्रोकली) मिलता है। ब्रोकली की अच्छी फसल के लिए से लगभग प्रति हेक्टेयर 160- 180 क्विंटल उपज मिल जाती है।

महत्वपूर्ण सुझाव:-

ब्रोकली के लिए सबसे बड़ी समस्या है उसकी बिक्री को लेकर हैं। ब्रोकली ज्यादातर शहरी क्षेत्र में ही बिक्री होती है। कारणों में जाए तो शिक्षित वर्ग ही इसके सबसे ज्यादा खरीदार है क्योंकि कई प्रकार से गुणकारी तत्व के कारण ब्रोकली अन्य गोभी के बाबत महंगी होती है। जानकारी व ज्ञान के अभाव में ऐसे लोग इस की खरीददारी करना उचित समझते हैं। इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।

किसान इसकी खेती कर स्वावलंबी भी बन सकते हैं। लेकिन ब्रोकली के लिए आसपास में बड़ा बाजार नहीं होने के कारण ब्रोकली का सही दाम नहीं मिल पाता है। आमलोगों को उन कार्यों की जानकारी का अभाव होने के कारण ब्रोकली को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

ब्रोकली की खेती को बढ़ावा देने के लिए उपाय:-

ब्रोकली की खेती करने वाले किसानों को जिला प्रशासन उचित बाजार उपलब्ध कराने के लिए उपाय सुझाए। साथ ही गुणकारी तत्वों के संदर्भ में आम व खास के बीच जागरूकता के कार्य करें तो ब्रोकली की खेती से किसानों को बढ़ावा दिया जा सकता है।

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Vijay Gaderi

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