भारतीय अर्थव्यवस्था में भैंस पालन की मुख्य भूमिका है। इसका प्रयोग दुग्ध उत्पादन एंव खेती के कार्यों में होता है। और डेरी व्यवसाय के लिहाज से भी भैंसपालन उत्तम माना जाता है। भारत में भैंसों की कई नस्लें पाई जाती है जिनमे से भदावरी भैंस भारत की प्रमुख भैंस नस्लों में से एक है। इस नस्ल का उत्पत्ति स्थान आगरा उत्तर प्रदेश हैं।
भदावरी की शारीरिक पहचान:-
इसके शरीर का रंग तांबे जैसा होता हैं। इस नस्ल का आगे का भाग पतला एवं पीछे से छोड़ा होता हैं। इसका शारीरिक आकार मध्यम एवं शरीर पर बाल कम होते हैं। टांगे छोटी तथा मजबूत होती है। घुटने से नीचे का हिस्सा हल्के चीले सफेद रंग का होता है। सिर के अगले हिस्से पर आँखों के ऊपर वाला भाग सफेदी लिए हुए होता है। गर्दन के निचले भाग पर दो सफेद धारियां होती है जिन्हें कंठमाला या जनेऊ कहते है। अयन का रंग गुलाबी होता है। सींग तलवार के आकार का होता है। (badawari bhens)
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खासियत:-
भदावरी भैंस के छोटे आकार तथा कम भार की वजह से इनकी आहार आवश्यकता भैंसों की अन्य नस्लों की तुलना में काफी कम है, जिससे इसे कम संसाधनों में गरीब किसानों,पशुपालकों,भूमिहीन कृषकों द्वारा आसानी से पाला जा सकता है।
इस नस्ल के पशु कठिन परिस्थितियों में रहने की क्षमता रखते है तथा अत्यधिक गर्म और आर्द्र जलवायु में आराम से रह सकते है। दूध में अत्यधिक वसा और जो भी मिल जाए उसको खाकर अपना गुजारा कर लेती है। इस नस्ल के पशु कई बीमारियों के प्रतिरोधी पाए गए है,इस नस्ल में बच्चों की मृत्यु दर अन्य नस्लों की तुलना में अत्यंत कम यानि 5 प्रतिशत से भी कम हैं।
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वजन:-
भदावरी नस्ल के वयस्क पशुओं का औसतन भार 300-400 किग्रा.होता है।
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वसा प्रतिशत:-
इस नस्ल के दूध में औसतन 8% वसा पाई जाती हैं। भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी में भदावसी भैंस संरक्षण एवं संर्वधन परियोजना के तहत रखे गए भैंसों के समूह में भदावरी भैंस के दूध में अधिकतम 13-14 प्रतिशत तक वसा पाई गई है।
दूध उत्पादन:-
भदावरी भैंस औसतन 5 से 6 किग्रा. दूध प्रतिदिन देती हें। लेकिन अच्छे पशु प्रबंधन द्वारा 8 से 10 किग्रा. प्रतिदिन तक दूध प्राप्त किया जा सकता है। भदावरी भैसें एक ब्यांत में 1200 से 1800 किग्रा. दूध देती है।
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