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मशरूम की खेती ने दी पहचान, सुखराम के मशरूम का स्वाद चखेंगे बिहार के लोग

मशरूम
Written by Vijay Gaderi

11 साल की कठिन मेहनत, लगन व जुनून के बाद रांटी के सुखराम चौरसिया ने एक नयी मिसाल कायम की है, उनके प्रयास से छोटे से गांव में उत्पादित मशरूम अब हर स्तर पर मिल सकेगा सुखराम ने अपने घर पर ही मशरूम उत्पादन की बड़ी यूनिट स्थापित की है, इस यूनिट से प्रतिदिन औसतन एक क्विंटल मशरूम का उत्पादन होगा।

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सुखराम ने एक दिन में यह उपलब्धि हासिल नहीं की है, उनकी 11 वर्ष की कड़ी मेहनत से यह संभव हुआ है, सुखराम बताते हैं, “पहले हम पारम्परिक खेती (धान,गेंहू,मक्का) ही करते थे। पहले सौ बैग से ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू किया पहले उन्होंने उसे शौकिया तौर पर लिया था। पता नहीं था कि इसकी मार्केटिंग होगी और उसे व्यावसायिक रूप में परिवर्तित कर कमाई भी हो सकती है, जैसे-जैसे समय बीतता गया, इस पेशे में सुनहरा भविष्य दिखने लगा तो इसे ही करियर रूप में स्थापित करने की योजना बना ली है।

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मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण:-

सुखराम प्रसाद चौरसिया ने 8 साल पहले डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा से मशरूम उगाने का प्रशिक्षण लिया इसके बाद अपने आवास के कमरों के भीतर ही मशरूम उगाने लगे। इसके लिए किसी खास मौसम की दरकार नहीं होती हैं, इसे साल भर उगाते हैं अप्रैल से सितंबर तक राजेंद्र दूधिया 1, अक्टूबर से मार्च तक ओएस्टर और बटन प्रजाति के मशरूम का उत्पादन करते हैं। सुखराम बताते हैं कि नमीयुक्त भूसे से भरे दो से ढाई फीट के गोलाकार पॉलिथीन बैग में मशरूम को विशेष तकनीक के जरिए उगाया जाता है।

स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों में बड़ी मांग:-

कई विटामिन से युक्त होने के कारण मशरुम स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। स्वास्थ्य के प्रति सचेत और शाकाहारी मशरूम के व्यंजन काफी पसंद करते हैं। विवाह समेत अन्य अवसरों पर भी इसकी मांग बढ़ी है। सुखराम इसका पाउडर और अचार बनाकर बिक्री करते हैं। अब तो उनके नक्शे कदम पर चल कर जिले के 5 दर्जन से अधिक लोग इसकी खेती कर रहे हैं। प्रगतिशील किसान बेनाम प्रसाद कहते हैं कि मशरूम की खेती बेरोजगारी दूर करने में मददगार हो सकती है युवाओं को इसे अपनाना चाहिए।

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मधुवनी व दरभंगा में हो रहा सप्लाई:-

वर्तमान में सुखराम के मशरूम की सप्लाई लोकल स्तर पर ही हो रही है, मधुवनी के होटल, ढाबा पर लोग यहां से मशरूम ले जा रहे है धीरे-धीरे प्रचार प्रसार हो रहा है, जिसके बाद कई ग्राहक दरभंगा से भी आ रहें हैं।

पर सुखराम को उम्मीद है कि वह पूरे बिहार में सप्लाई हो सकेगी, दरभंगा प्रमंडल स्तर का यह पहला इतना बड़ा मशरुम प्रोजेक्ट हैं। सुखराम ने बताया कि यूनिट को स्थापित करने में करीब 25 लाख रुपये का खर्च आया है। प्रतिमाह 50 से 60 मजदूरों को काम मिल रहा है, जल्द ही अधिक युवाओं को रोजगार मिल सकेगा।

1500 बैग में मशरूम उत्पादन को किया स्थापित:-

सुखराम के घर पर बड़ी यूनिट स्थापित हो चुकी है। यह यूनिट यू तो एक साल पहले ही स्थापित कर दी गयी थी। पर इस बीच कई प्रकार को परेशानी के कारण, उम्मीद के अनुसार उत्पादन नहीं हो पा रहा था। सबसे अधिक परेशानी बिजली को लेकर हो रही थी। सुखराम बताते है कि इस यूनिट में कम से कम और 22 से 23 घंटे तक बिजली चाहिए। यूनिट एसी, कूलर से लैस है। पहले बिजली नहीं मिलने के कारण कई बार मशरूम तैयार होने से पहले ही खराब हो जाता था। अब बिजली के साथ ही बड़ा जेनेरेटर भी लग चुका है, सुखराम की मशरूम यूनिट में अब एकसाथ 1500 बैग में मशरूम का बीज लगा दिया गया है। इससे एक दिन में कम से कम एक विवंटल मशरूम का उत्पादन हो सकेगा।

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मशरूम की खेती में बेहतर संभावना:-

सुखराम बताते हैं, “पिछले सात सालों में बाजार में इसकी मांग काफी बढ़ गई है। स्थानीय बाजार के साथ बाहर के बाजारों में भी हर वक्त इसकी मांग बनी रहती है। मधुबनी जिले में करीब 100 किसान मशरूम की खेती कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर किसान साल के सिर्फ तीन-चार माह ही इसकी खेती करते हैं, जबकि करीब 10 किसान ऐसे हैं जो साल भर मशरुम की खेती करते हैं।” सुखराम आगे बताते हैं, “मशरूम की मौसमी खेती करने वाले किसान औसतन 30 से 35 हजार रुपए कमा लेते हैं, जबकि पूरी तरह मशरूम की खेती से जुड़ चुके किसान इससे 1.5 लाख रुपए सालाना तक कमा रहे हैं। कुछ ऐसे किसान भी है, जिनकी आय 2 लाख से 3 लाख रुपए के बीच है।”

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