मूंगफली की उन्नत किस्में एवं उनकी विशेषताएँ:-
मूंगफली की तीन अलग-अलग प्रजातियाँ होती हैं। हल्की मिट्टी के लिए फैलने वाली और भारी मिट्टी के लिये झुमका किस्म के पौधों वाली प्रजातियाँ हैं जो भूमि के अनुसार बोने के काम में ली जाती है। कम फैलने वाली तथा फैलने वाली प्रजाति के पौधों की शाखाएँ फैल जाती हैं तथा मूंगफली काफी दूर-दूर लगती है जबकि झुमका प्रजाति की फलियाँ मुख्य जड़ के पास ही लगती है और गुलाबी या लाल रंग का दाना पैदा होता है। इसकी पैदावार फैलने वाली प्रजाति से कम होती है परन्तु यह जल्दी पकती है। मूंगफली की उपयुक्त किस्में एवं उनकी विशेषताओं का विवरण निम्न प्रकार है:-
जे. एल. 24 (1984):-
यह मूंगफली की एक अल्पावधि वाली झुमका किस्म है जो 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह दोमट भूमि में उगाने के लिये उपयुक्त है और सूखे की स्थितियों के प्रति सहनशील है। इसकी उपज 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।
आर.जी. 141 (1991):-
इस झुमका किस्म में 35 से 40 दिन में फूल आते है व 125 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 13 से 16 क्विंटल प्रति हैक्टर तथा इसमें 61% गुली होती है। इसका दाना मोटा (100 दानों का वजन 20.5 ग्राम ) होता है। इसके बीजों में 48.10% तेल की मात्रा होती है।
जी. जी. 2 (1984):-
यह अल्पावधि की झुमका किस्म है जो 100-110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। फलियाँ दो दाने से युक्त एवं दाने मोटे होते हैं। इसके 100 दानों का वजन 36 ग्राम होता है। तेल की मात्रा 49% होती है एवं उपज क्षमता 31 क्विंटल प्रति हैक्टर है।
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जे. 38 (जी.जी. 7) (2001):-
यह मूंगफली की उन्नत झुमका किस्म है। इसकी सूखी फलियों की औसत पैदावार 2329 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर है। इस उन्नत किस्म की फलियों में दानों का अनुपात 60% तथा 100 दानों का वजन 48 ग्राम होता है। यह किस्म 95 से 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 51% होती है।
डी. एच. 86 (2002):-
यह जायद मूंगफली की एक झुमका किस्म है। यह किस्म 125-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी शुष्क फलियों की औसत उपज 30-32 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। इसकी फलियों में दाने का अनुपात 70% एवं तेल की मात्रा 48 से 50% होती है। इसके 100 दानों का वजन 48 ग्राम होता है।
टी.जी. 37 ए (2004):-
यह मूंगफली की एक झुमका किस्म है। यह किस्म 95-98 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी शुष्क फलियों की औसत उपज 28-30 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। इसकी फलियों में दानों का अनुपात लगभग 71% एवं तेल की मात्रा 49 से 50% है। इसके 100 दानों का वजन 40 से 44 ग्राम होता है। यह किस्म अगेती एवं पिछती धब्बा, कलिका विषाणु रोग, ग्रीवा विगलन एवं तना गलन रोग से सामान्य प्रतिरोधी है। इस किस्म की बारानी क्षेत्रों में औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।
प्रताप मूंगफली 2 (2005):-
यह मूंगफली की 95-99 दिन में पकने वाली एक झुमका किस्म है। इसकी शुष्क फलियों की औसत उपज 25-28 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है। इसकी फलियों में दानों का अनुपात 67-70% एवं तेल की मात्रा 48 से 50% होती हैं। इसके 100 दानों का वजन 40-44 ग्राम होता है यह किस्म अगेती पिछेती धब्बा एवं मूंगफली का कलिका विषाणु रोग से सामान्य प्रतिरोधी है।” प्रताप राज मूंगफली (यू.जी. 5) (2011) झुमका मूंगफली की यह किस्म राज्य के खरीफ एवं जायद मौसम के लिए सर्वोत्तम है। यह 95-97 दिन में पक कर 16-22 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज देती है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 48 प्रतिशत है। इसकी फलियों में दाने का अनुपात 68 प्रतिशत है। यह किस्म मूंगफली के प्रमुख रोगों एवं कीटों से मध्यम प्रतिरोधी है।
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टी.ए.जी.-24 (1992):-
मूंगफली की 100-105 में पककर तैयार होने वाली झुमका किस्म है, जिसकी सूखी फलियों की औसत उपज असिंचित वर्षा पोषित क्षेत्र में लगभग 14-15 क्विंटल प्रति हैक्टर हो जाती है, जिनसे लगभग 9 से 10 क्विंटल दाने प्राप्त किये जा सकते है। इस किस्म में तेल लगभग 48 प्रतिशत तक होता है इस किस्म पर टिक्का बीमारी का प्रकोप कम होता है।
जी.पी.बी.डी.-4:-
यह मूंगफली की झुमका किस्म है। यह किस्म 95-99 दिन में पककर तैयार हो जाती है। फलियों में 1-2 दाने होते है। फलियों में दानों का अनुपात लगभग 70% एवं तेल की मात्रा 49% है। बारानी क्षेत्रों में शुष्क फलियों की औसत उपज 14-15 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। यह किस्म अगेती व पछेती धब्बा रोग, विषाणु रोग, ग्रीवा व तना विगलन रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
आर.जी. 425 (राज. दुर्गा):-
मूँगफली की यह किस्म 2011 में विकसित की गई थी। यह एक अर्द्ध-विस्तारित किस्म है जो कि 125-130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। यह किस्म बारानी तथा सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसके दानों का रंग हल्का गुलाबी तथा सफेद रहता है। असिंचित क्षेत्रों में इसकी औसत उपज 15-18 क्विंटल तथ सिंचित क्षेत्रों में 32-36 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह किस्म जलकट (कॉलर रौट) रोग से रहित है।
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खेत की तैयारी:-
मूंगफली विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगायी जा सकती है। रेतीली दोमट एवं भारी मटियार दोमट में अलग-अलग जाति की मूंगफली बोयी जाती है। एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में देशी हल से या हेरो से दो तीन बार खेत की। जुताई करिये ताकि भूमि भुरभुरी हो जाये और इसके बाद पाटा चलाकर बुवाई लिये खेत तैयार कर लीजिये।
भूमि उपचार:-
दीमक का प्रयोग कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई, जैसे सूखे डण्ठल हटाना, कच्ची खाद का प्रयोग न करना आदि उपाय सहायक होते हैं। सफेद लट की रोकथाम के लिए एक हैक्टर में 25 किलो फोरेट 10 प्रतिशत या क्यूनालफॉस 5 प्रतिशत या कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत में से कोई एक दवा को बुवाई से पूर्व हल द्वारा कतारों में ऊर दें तथा इन्हीं कतारों पर बुवाई करें।
उर्वरक:-
कारक (वर्षा सिंचित, असिचित किस्म, उपयोगिता) | नाइट्रोजन किग्रा / हैक्टर | फास्फोरस किग्रा / हैक्टर | पोटाश किग्रा / हैक्टर | अन्य
|
सिंचित क्षेत्रों में | 15 | 60 | 25 किग्रा फेरस सल्फेट (पत्तियों के बीच हरीमा हीनता के लिए) | |
250 किग्रा जिप्सम का प्रयोग |
मूँगफली में पोषक तत्व प्रबन्धन जैविक पोषक प्रबन्धन के लिए मूंगफली में केंचुऐ की खाद (वर्मीकम्पोस्ट) 1.0 टन प्रति हेक्टेयर + 0.35 टन रॉक फॉस्फेट या गोबर की खाद (एफ.वाई.एम) 3.0 टन प्रति हैक्टेयर + 035 टन रॉक फॉस्फेट प्रति हैक्टेयर प्रयोग करने से 13-15 क्विंटल उपज प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है। साथ ही बायोडायनेमिक खाद 500 एवं 501 का कलेण्डर के अनुसार छिड़काव करें।
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बीज उपचार:-
दीमक की रोकथाम के लिये क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 6 मि.ली. प्रति किलो या एसीफेट 75 एस.पी. 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचार कर बुवाई करें। सफेद लट की रोकथाम के लिये 40 किलो बीज को 1 लीटर क्लोरोपायरीफॉस 20 ई. सी. से उपचारित करें। इस उपचार से फसल को दीमक से भी बचाया जा सकता है। फफूंदनाशी से उपचार बुवाई से पहले प्रति किलो बीज में 3 ग्राम थाइरम या 2
ग्राम मैंकोजेब नामक दवा मिलाकर उपचारित करें। कालर रॉट : कालर रॉट रोग से बचाव हेतु बीज को ट्राइकोडरमा, जैविक फफूंदनाशी 6 से 8 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें। मूंगफली में कालर रॉट रोग से बचाव हेतु बीजों को 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम + 8 ग्राम ट्राइकोडरमा + 8.5 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें। कालर रोट एवं चारकोल रोट की रोकथाम हेतु कार्बोक्सिन 35.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत 3 ग्राम का प्रतिकिलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करें।
राइजोबिया शाकाणु संवर्ध (कल्चर) से उपचार : राइजोबिया कल्चर से बीजोपचार का विवरण पुस्तक में दिया गया है। फफूंदनाशी, कीटनाशी और राइजोबिया कल्चर के क्रम में ही बीजोपचार करें।
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बीज एवं बुवाई:-
उन्नत किस्म वाली झुमका किस्म का 100 किलो बीज (गुली) प्रति हैक्टर बोइये। इन किस्मों हेतु कतार से कतार की दूरी 30 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सें.मी. रखिये फैलने वाली किस्म 60 से 80 किलो बीज (गुली) प्रति हैक्टर बोइये तथा कतार से कतार की दूरी 40 से 45 सें.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखिये। मूंगफली की बुवाई का उपयुक्त समय जून के प्रथम सप्ताह से दूसरे सप्ताह तक है।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई:-
सूखा पड़ने पर आवश्यकतानुसार 1-2 सिचाइयाँ, खासतौर पर फूल आने और दाना बनते समय अवश्य कीजिये खेत में से खरपतवार निकालते रहिये। खरपतवार नियंत्रण हेतु इमेजाथापयर 10 एस.एल. 100 ग्राम प्रति हैक्टर की दर आवश्यकतानुसार पानी में घोल बनाकर बुवाई के 10-12 दिन बाद छिड़काव करें। 30 दिन की फसल होने तक निराई-गुड़ाई पूरी कर लीजिये। बुवाई के एक माह बाद झुमका किस्म के पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा दीजिये।
जमीन में मूंगफली की सुईयाँ बनना शुरू होने के बाद गुड़ाई बिल्कुल न कीजिये। मूंगफली एवं तिल अन्तराशस्य में फ्लूक्लोरेलिक 0.5 कि.ग्रा. ( बुवाई से पूर्व मिट्टी में मिलाकर) या पेण्डीमिथेलिन 0.5 कि. ग्रा. प्रति हैक्टर (बुवाई के तुरन्त बाद) छिड़काव करें व 25 से 30 दिन की अवस्था पर एक गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें। इसके अतिरिक्त एक महीने की फसल हो तब गुड़ाई करें व मिट्टी चढ़ावें ।
अंतःआश्य:-
बारानी क्षेत्रों में मूंगफली व तिल की मिलवाँ खेती 6:2 के अनुपात की कतारों में करें। कतार से कतार की दूरी 30 सें.मी. रखिये।
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पौध संरक्षण:-
कातरा:-
कातरे की रोकथाम के लिये कातरा नियन्त्रण शीर्षक से इस पुस्तक में पृथक से दिये गये विवरण के अनुसार उपाय करें। मोयला नियन्त्रण : मोयला नियंत्रण हेतु प्रति हैक्टर मैलाथियान 5% या मिथाईल पैराथियॉन 2% चूर्ण 25 किलो का भुरकाव करें या मैलाथियान 50 ई.सी. सवा लीटर अथवा मिथाइल पैराथियॉन 50 ई.सी. 750 मि.ली. या मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. एक लीटर दवा का घोल बनाकर प्रति हैक्टर छिड़काव करिये।
क्राउन रॉट:-
इस रोग से बचाव के लिये 3 ग्राम थाइरम दवा से बीजोपचार करें।
टिक्का रोग:-
मूंगफली में टिक्का रोग अक्सर होता है। इस रोग से फसल के पौधों पर गोल मटियाले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिये रोग दिखाई देते ही कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. 20 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा 2 किलो मैन्कोजेब का प्रति हैक्टर प्रयोग करिये, इसके बाद 10 से 15 दिन के अन्तर पर दो बार ऐसे छिड़काव और करें।
पीलिया रोग:-
0.5 प्रतिशत हरा कसीस के घोल का छिड़काव कर 500 लीटर घोल प्रति हैक्टर का छिड़काव करना लाभदायक रहता है। आवश्यकता हो तो दुबारा भी छिड़काव करें। इसके अभाव में गंधक के अम्ल के 0.1 प्रतिशत घोल को फसल में फल आने से पहले एक बार तथा पूर फूल आ जाने के बाद दूसरी बार छिड़काव करके भी पीलिये का नियन्त्रण किया जा सकता है। इस घोल में चिपकना पदार्थ जैसे साबुन आदि अवश्य मिलाइयें।
खुदाई:-
मूंगफली की पत्तियाँ जब पीली पड़ने लगें तो खेत में सिंचाई करके पौधों को उखाड़ दीजिये। इन पौधों की छोटी ढेरियों को 7 से 10 दिन तक धूप में सूखने दीजिये और मूंगफली को छांटकर अलग कर दीजिये।
भंडारण:-
मूंगफली को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारित करें किसी भी हालत में मूंगफली के दानों में नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये अन्यथा बीज पर एसपरजिलस नामक फफूंद होने लगती है, जिससे एक विषैला पदार्थ एफ्लाटोक्सिन जमा होना शुरू हो जाता है। इससे ग्रस्त बीजों को खाना घातक सिद्ध होता है।
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