रबी प्याज की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक - innovativefarmers.in
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रबी प्याज की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

प्याज
Written by Vijay Gaderi

भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में प्याज का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह एक ऐसी सब्जी है जिसका निर्यात ताजी सब्जियों के निर्यात से आयोजित होने वाली विदेशी मुद्रा का लगभग 70% भाग विदेश से आता है। इसका प्रयोग सलाद, के रूप में कच्ची तथा भूनकर कई तरह से शाकाहारी एवं मांसाहारी भोजन बनाने में, सुखाकर अचार आदि के रूप में होता है। (रबी प्याज की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक)

प्याज का तीखापन सल्फर के कारण होता है। जिसमें एलाइन प्रोफाइल डाई सल्फाइड होता है। प्याज में कार्बोहाइड्रेट तथा खनिज लवण प्राप्त मात्रा में पाए जाते हैं। इसका गुण डाइयुरेटिक होता है तथा पाचन शक्ति में सहायता करती है। आंखों के लिए लाभदायक होती है और हृदय रोग को कम करने में सहायता करती है।

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रबी प्याज की उन्नत किस्में:-

लाल रंग वाली किस्में:-

पूसा रेड, नासिक रेड (एन.-53), पूसा रतनार, हिसार-2, एग्रीफाउंड डार्क रेड, एग्रीफाउंड लाइट रेड, पूसा माधवी, कल्याणपुर रेड राउंड, पंजाब रेड राउंड, उदयपुर- 101, उदयपुर- 103,आर.ओ.-59, सी.ओ.-02, बी.एल.-1, बी.एल.-67, अर्का निकेतन, अर्का प्रगति, भीमा रेड, भीमा सुपर, अर्का, लालिमा, अर्का कीर्तिमान।

सफेद रंग वाली किस्में:-

उदयपुर-102, पूसा वाइट फ्लैट, पूसा वाइट राउंड, पटना सफेद, फुले सफेद।

पीले रंग वाली किस्में:-

आर.ओ.-1, अर्ली ग्रेनो, अर्का पीताम्बर, फुले स्वर्णा, बरमुडा येलो, स्पेनिश ब्राउन आदी प्याज की उन्नत किस्मे है।

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जलवायु:-

रबी प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है। प्याज ठंडे मौसम की फसल है। इस पर तापमान व प्रकाशकाल का सीधा प्रभाव पड़ता है। इसकी अच्छी फसल हेतु कंद निर्माण के समय 15.5 से 21 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है।

भूमि/ मृदा:-

प्याज की अच्छी फसल के लिए मिट्टी का गहरा, भुरकाव एवं अधिक उपजाऊ व जीवांशयुक्त होना आवश्यक है। बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी प्याज के लिए सिफारिश की जाती है। खेत की मिट्टी में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 5.8 से 6.8 के बीच पी.एच. वाली मृदा प्याज के लिए सर्वोत्तम रहती है।

बीज की मात्रा:-

8 से 10 किलोग्राम बीज प्याज की फसल के लिए पर्याप्त रहता है।

प्याज की पौध तैयार करना:-

प्याज की पौध 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंची उठी हुई क्यारियों में तैयार करनी चाहिए। एक क्यारी की लंबाई 5 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर रखते हुए उसने 50 किलोग्राम अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद तथा 125 ग्राम DAP एवं 100 ग्राम पोटाश प्रति क्यारी के हिसाब से भली भांति मिलाकर तैयार करें।

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पौधशाला की मिट्टी का शोधन:-

प्याज की पौध को मिट्टी जनित व्याधियों से बचाव के लिए जिस जगह पौध तैयार कर रहे हैं वहां की मिट्टी का शोधन करना अति आवश्यक होता है। मिट्टी का शोधन निम्न विधियों द्वारा किया जाना चाहिए।

सूर्य ताप द्वारा मिट्टी का उपचार:-

बीज बोने के लगभग 15 से 20 दिन पूर्व तैयार पौधशाला को 200 गज की पारदर्शी पॉलिथीन शीट से ढक कर पॉलिथीन को चारों तरफ से मिट्टी द्वारा दबा देना चाहिए ताकि पॉलीथिन हवा से उड़ न पाए और मिट्टी वायुरोधित हो जाए। सूर्य के प्रकाश की गर्मी से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है। जिस कारण मिट्टी में उपस्थित व्याधिकारक (फफूंद, सूत्रकृमि, जीवाणु आदि) नष्ट हो जाते हैं। 15 से 20 दिन तक ढके रहने के बाद पॉलिथीन को हटाकर हल्की सिंचाई कर बीज की बुवाई करनी चाहिए।

रसायन द्वारा मिट्टी का उपचार:-

पौधशाला मिट्टी को उपचारित करने के लिए फार्मलीन का प्रयोग किया जाता है। पौधशाला की तैयार मिट्टी को फार्मलीन (250 मी.ली./10 लीटर पानी में) से सिंचित कर पॉलीथिन शीट से ढक कर लगभग 15 दिन तक छोड़ दिया जाता है। फार्मलीन की गंध से मिट्टी में पाए जाने वाले फफूंद, सूत्रकृमि, जीवाणु आदि मर जाते हैं।

15 दिन बाद पॉलिथीन हटाकर मिट्टी को 48 घंटे तक छोड़ दिया जाता है, तत्पश्चात एक निराई कर लेनी चाहिए ताकि मिट्टी का उपचार उपरोक्त दो विधियों द्वारा न हो पाया हो तो ऐसी स्थिति में बीज बोन से 2-3 दिन पूर्व नर्सरी की मिट्टी को फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम 0.2% (0.2 ग्राम दवा/ 1 लीटर पानी) के घोल से अच्छी तरह सिंचित करना चाहिए, जिससे दवा मिट्टी में 8-10 इंच गहराई तक पहुंच जाये।

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बीजोपचार एवं बुवाई:-

उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करने के बाद बीज को 3 ग्राम थायरम या 2 ग्राम कैप्टन प्रति किलो बीज की दर से मिला कर बीज को उपचारित करें। जैविक उपचार हेतु बीजों को ट्राईकोडर्मा वीरीडी अथवा ट्राइकोडर्मा हारजेनियम 8 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। उपचारित क्यारियों में लकड़ी की छड़ी या लोहे की सरिया की सहायता से 4 से 6 सेमी. की दूरी पर एक से दो सेमी. गहरी लाइने बना लेते हैं।

इन लाइनों में बीज की बुवाई करते हैं। बीज को लाइन में 0.5- 1.0 सेमी. गहराई तक बोना चाहिए। बुवाई के पश्चात लाइन को बारीक गोबर की खाद मिट्टी की पतली तह से ढक देना चाहिए। तत्पश्चात क्यारियों को धान के पुवाल या सुखी घास से ढक देते हैं। आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। अंकुरण होने पर घास को नर्सरी से हटा लेना चाहिए।

पौध की रोपाई:-

नर्सरी में बीज की बुवाई के 7 से 8 सप्ताह बाद पौध रोपाई योग्य हो जाती है। रोपाई से पूर्व पौधशाला में हल्की सींचा कर ले जिससे पौधों को नुकसान कम से कम हो। तैयार खेत में रोपाई करते समय कतारों के बीच की दूरी 15 से.मी. तथा पौध से पौध की दूरी 10 से.मी. तथा गहराई 2.5 सेमी रखते हैं। रोपाई क्यारियों में करें तो अच्छा रहता है। प्याज की रोपाई 15 दिसंबर से 15 जनवरी तक कर लेनी चाहिए।

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सिंचाई:-

सिंचाई की संख्या भूमि तथा जलवायु की दशा आदि पर निर्भर करती है। परंतु खेत में पौध रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना आवश्यक होता है जिससे पौधे की जड़ का जमाव हो सके। रबी प्याज की फसल को सिंचाई की अधिकतम आवश्यकता रोपाई के तीन माह बाद तक होती है। रोपाई पश्चात हल्की सिंचाई का कम अंतर पर देने से लाभ होता है।

रोपाई के 1 माह तक हल्की सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। कंद बनते समय सिंचाई करना अति आवश्यक है। इस समय मृदा में नमी की कमी होने पर कंद फटने लगते हैं एवं उपज घट जाती है। फसल तैयार होने पर शीर्ष पिले पड़कर गिरने लगे या खुदाई के 7 से 8 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन:-

रबी प्याज के लिए अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से तैयार करते समय मिला दे। इसके अलावा 100 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 100 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा  पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के बाद खड़ी फसल में देवें। जिन्क की कमी वाले क्षेत्रों में रोपाई से पूर्व जिन्क सल्फेट 25 की.ग्रा. प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलाये।

खरपतवार नियंत्रण:-

रबी प्याज की फसल उथली जड़ों वाली फसल है। अतः खरपतवारों से निजात पाने के लिए रोपाई से पूर्व खेत में आक्सीफ्लोरफेन (23.5 ई.सी.) 800 मि.ली. दवा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। रोपाई पश्चात निराई- गुड़ाई एक माह बाद करें एवं गुड़ाई सावधानीपूर्वक करें अन्यथा कन्दो को नुकसान पहुंचता है।

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प्याज की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट एवं व्याधिया:-

परजीवी (थ्रिप्स):-

यह एक बहुत ही छोटा पीले रंग का होता है। जो पत्तियों का रस चूसता है। जिससे पत्तियां कम हो जाती है तथा इस कीट के आक्रमण से पत्तियों पर सफेद रंग के चकत्ते/ धब्बे पड़ जाते हैं।

नियंत्रण:-

इसके नियंत्रण के लिए मेलाथियान (23.5 ई.सी.) 1 मिलीलीटर दवाई या एसीफेट 75 एस.पी.2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें आवश्यकता हो तो 15 दिन बाद छिड़काव दोहरावें।

तुलसिता रोग:-

इस रोग में पत्तियों पर सफेद रुई जैसी फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है।

नियंत्रण:-

इसके नियंत्रण हेतु मेंकोजेब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।

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प्याज का अंगमारी रोग:-

इस रोग के कारण पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते हैं। जो बाद में बीच से गुलाबी रंग के होते हैं।

नियंत्रण:-

इसके नियंत्रण के लिए मेंकोजेब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ तरल साबुन का घोल अवश्य मिलना चाहिए।

खुदाई:-

प्याज की खुदाई इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस उद्देश्य से लगाया गया है। सामान्यतः हरी प्याज के लिए 80 से 85 दिन बाद तथा परिपक्व प्याज हेतु 95 से 145 दिन बाद खुदाई करते हैं। प्याज की फसल की पत्तियां जब 50% गिर जाए इसके 15 दिन बाद खुदाई कर देनी चाहिए।

उपज:-

प्याज की 250 से 350 क्विंटल प्रति प्राप्त की जा सकती है।

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