हमारे गांवों में लगभग 75 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट (भूसा, कड़ब, गोबर, पत्तियाँ एवं कचरा आदि) उपलब्ध है। केंचुओं द्वारा यह अपशिष्ट उत्तम किस्म की खाद (कम्पोस्ट) में परिवर्तित हो सकता है व लगभग 2 करोड़ टन पोषक तत्व उक्त कम्पोस्ट से प्राप्त हो सकते हैं। केंचुओं द्वारा कृषि अपशिष्ट का कम्पोस्ट में परिवर्तन “वर्मीकम्पोस्ट के रूप में जाना जाता है। वर्गीकम्पोस्ट व ककून का मिश्रण “वर्मीकम्पोस्ट कहलाता है। चर्मी कम्पोस्ट में 65 प्रतिशत कृषि अपशिष्ट एवं 35 प्रतिशत गोबर का मिश्रण उपयोगी रहता है।
केंचुए के प्रकार:-
एपिगीज केंचुए:-
कम्पोस्ट बनाने में उपयोगी हैं। सतह पर (कम गहराई – 1 मीटर तक) समूह में रहते हैं। कृषि अपशिष्ट 90 प्रतिशत एवं मृदा 10 प्रतिशत खाते हैं। आईसीनिया फीटिडा एवं यूड्रिलिस यूजिनी प्रमुख प्रजातियाँ हैं।
इन्डोगिज केंचुए:-
भूमि में गहरी सुरंग (3 मीटर से अधिक) बनाकर मिट्टी भुरभुरी बनाते हैं। यह किस्म जल निकास व जल संरक्षण में उपयोगी है। ये 90 प्रतिशत मिट्टी खाते हैं।
डायोगिग केंचुए:-
ये केंचुए 1-3 मीटर गहराई पर रहते हैं एवं दोनों प्रजातियों के बीच की श्रेणी में आते हैं।
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वर्मीकम्पोस्ट एवं अन्य कम्पोस्टों में तुलनात्मक पोषक तत्व:-
कम्पोस्ट किस्म | प्रमुख पोषक तत्व (प्रतिशत) | ||
नत्रजन | फास्फोरस | पोटाश | |
वर्मी कम्पोस्ट | 2.5-3.0 | 1.5-2.0 | 1.5-2.0 |
गोबर की खाद | 0.5 | 0.25 | 0.50 |
नेडेप कम्पोस्ट | 0.5-1.5 | 0.50-0.90 | 1.2- 1.4 |
शहरी कम्पोस्ट | 1.5 | 1.0 | 1.5 |
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लाभ:-
- वर्मी कम्पोस्ट में एक्टीनोमाइसिटीज गोबर की खाद की तुलना में 8 गुणा अधिक होते हैं। इस खाद से तैयार फसल में बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है।
- केंचुए मृदा की जलशोषण क्षमता में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि करते हैं। भूमि का कटाव रुकता है एवं पौधों को जल उपलब्धता में भी वृद्धि होती है।
- वर्मी कम्पोस्ट में पेरीट्रोपिक झिल्ली होने के कारण जल वाष्पीकरण में कमी होती है। अतः सिंचाई की संख्या भी कम रहती है।
- केंचुओं के खाद से खेत में ह्यूमस वृद्धि के कारण वर्षा की बूंदों का आघात सहने की क्षमता साधारण मृदा की अपेक्षा 56 गुणा अधिक होती है। अतः मृदा क्षरण कम होता है।
- केंचुओं की खाद प्रयुक्त खेत में खरपतवार कम होते हैं। खेत में दीमक भी नहीं लगती है।
वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधि:-
- वर्मीकम्पोस्ट शेड बनाने हेतु छायादार जगह चुनें, जहाँ पानी का भराव नहीं हो। शेड पानी के स्रोत/धौरे के पास हो ताकि पानी देने में आसानी रहे। खाद के गड्ढे जल स्रोत से ऊपर वाले क्षेत्र में नहीं हो अन्यथा रसायनिक तत्व रिसाव से जल को प्रदूषित कर सकते हैं।
- सामान्यतः वायुवेग की दिशा में गड्ढों की चौड़ाई रखें तथा आवासीय मकान गड्ढों से निचले क्षेत्र (जिधर हवा बहती है) में नहीं बनायें इससे वायु प्रदूषण द्वारा नुकसान नहीं होगा।
- खाद की आवश्यकतानुसार गड्ढों की संख्या निश्चित करें। गड्ढे की लम्बाई अवशेषों / अवशिष्टों की मात्रानुसार रखें। चौड़ाई2 मीटर (4 फीट) रहे, अन्यथा अपशिष्ट पलटते समय असुविधा रहेगी। गड्ढे की गहराई 30-45 सें.मी. (1-1.5 फीट) रखें। गड्ढे 2 मीटर ऊंचे छप्पर से ढके रहें।
- गड़ढों में भरने हेतु अपशिष्ट इकट्ठा करें ताकि एक ही दिन में भर सकें। सबसे नीचे मोटे कचरे की (कड़ब, सरसों, तुअर अपशिष्ट आदि ) 5- 7.5 सें.मी. तह (24 घंटे पूर्व भीगोई हुई) बिछायें।
- इसके ऊपर 10 सें.मी. बारीक भूसा की तह अवशेष / अवशिष्ट (हरा अथवा सूखा अवशेष) फैलाकर पानी से नम करें। पानी लगभग 30-40 प्रतिशत रहे।
- अब गोबर की 5 सें.मी. समान रूप से यादगार।
प्रति वर्गमीटर के लिए केंचुओं की संख्या 1000 रखें। केंचुए अलग-अलग तह में विभाजित करें।
- इस सतह को मिट्टी, नीम की पत्तियों एवं राख के मिश्रण से ढकें। यह सतह पोषक तत्वों को स्थिर रखेगी।
- क्र.सं. 5 से 8 तक की क्रियाएँ दोहरायें जब तक कि गड्ढा भर न जाये।
- सबसे ऊपर सड़ा हुआ गोबर व पत्तियाँ रखें ताकि मध्य में ऊँचा वाले हिस्से नीचे रहें ताकि पानी भरे नहीं।
- जूट या टाट से मिश्रण ढकें। इससे नमी संरक्षित रहेगी।
- गर्मी में प्रतिदिन व सर्दी में 2-3 दिन में एक बार पानी देकर उचित नमी रखें।
- प्रतिमाह मिश्रण को पलटें ताकि वायु का संचार हो सके एवं केंचुओं का संवर्धन भी होता रहे।
- कचरे की किस्म के अनुसार वर्मी कम्पोस्ट 75-90 दिन में तैयार हो जाता है। भुरभुरा-भूरे रंग का खाद बन जाने पर पानी देना बंद करें। मिश्रण को रेती छानने की छलनी में छानकर बोरों में भरें अथवा उपयोग में लें। खाद में 10-20 प्रतिशत नमी रहनी चाहिये। केंचुए पुनः खाद बनाने हेतु काम में लें।
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि के बारे में अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें:-
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वर्मीकम्पोस्ट उपयोग:-
1. | सामान्य फसलें (गेहूँ, मक्का, सरसों, सोयाबीन, बाजरा आदि) | 5 टन / हैक्टर |
2. | सब्जियाँ | 5–7.5 टन / हैक्टर |
3. | फलदार वृक्ष | 5 किलो पौधा |
4. | फूलों की क्यारियाँ | 1-2 किलो / वर्गमीटर |
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