सफेद मूसली की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक - innovativefarmers.in
उन्नत खेती औषधीय फसलों की खेती

सफेद मूसली की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक

Written by Vijay Gaderi

औषधीय पौधों का महत्व आदिकाल से विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक, यूनानी तथा अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियाँ औषधिय पौधों पर निर्भर करती हैं और भारतीय जलवायु के अनुसार औषधि पौधों का प्रयोग भारतीयों पर अनुकूल पड़ता है। (सफेद मूसली)

सफेद मूसली

वर्तमान समय में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर्बल उत्पादों एवं जड़ी बूटियों की बढ़ती जा रही मांग, हर्बल उत्पाद के प्रति लोगों के पुर्न झुकाव तथा इनकी व्यवसायिक स्तर पर खेती के अत्यधिक लाभकारी होने जैसी विशेषताओं ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में यह सर्वाधिक संभावना संपन्न व्यवसाय क्षेत्र को जन्म देता है वह है औषधीय पौधों की खेती।

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सफेद मूसली की खेती:-

सफेद मूसली एक अति महत्वपूर्ण औषधि है। औषधि के रूप में इसका कंद प्रयोग किया जाता है। यह एक ऐसी जड़ी बूटी मानी गई हैं इसमें किसी भी प्रकार की तथा किसी भी कारण से आई शारीरिक शिथिलता को दूर करने की क्षमता पाई जाती हैं।

यह इतनी पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है कि इसे दूसरे शिलाजीत की संज्ञा दी जाती है। इसका प्रयोग स्त्रियों में दूध बढ़ाने, प्रसव के बाद होने वाले रोग, मधुमेह, नपुसंकता आदि बीमारी में किया जाता है।

सफेद मूसली का पौधा जंगलों में वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने पर उग आता है। इसे आदिवासी इकट्ठा करके बाजार में बेच देते हैं। जड़ी-बूटियों की अधिक मांग होने के कारण इसका दोहन वनों से अधिक होने के कारण लुप्त होने के कगार पर है। विश्व भर में वार्षिक उपलब्धता लगभग 5000 टन है। जबकि इसकी मांग लगभग 35000 टन प्रति वर्ष हैं। इसके जड़ी- बूटी को बचाने के लिए खेतों में इसकी खेती करना आवश्यक हो गया है।सफ़ेद मूसली की खेती करके किसान अपनी आर्थिक स्थति को सुधर सकते हैं।

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भूमि:-

सफेद मूसली कंद वाला पौधा है। जिसकी बढ़ोतरी जमीन के अंदर होती है। इसके लिए बलुई मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है तथा जल निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए।

खेत की तैयारी:-

गर्मी की ऋतु में खेत में 12 से 15 ट्राली प्रति हैक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुर-भुरी हो जाए। पाटा की सहायता से खेत को समतल कर लेना चाहिए। फिर उसे 3.5 फीट चौड़े जमीन से एक से डेढ़ फीट ऊंची क्यारी बना ली जाती है। प्रत्येक क्यारी के बीच में जल निकास व कृषि कार्यों के लिए डेढ़ फीट चौड़ी जगह छोड़ देनी चाहिए।

प्रजातियां:-

क्लोरोफाइटम, बोरोविलिएनम, क्लोरोफाइटमट्यूबरोजम, क्लोरोफाइटमएटनुएटम, क्लोरोफाइटम अरुण्डिनेशियम, क्लोरोफाइटम ब्रिवि-स्केपन आदि।

कंद रोपण का समय एवं विधि:-

क्यारियों में कन्द का रोपण वर्षा प्रारंभ होते ही करना चाहिए। रोपण के लिए 5 से 10 ग्राम वजन की सर्वाधिक उपयुक्त रहती है। रोपण के लिए 5 से  10 ग्राम वजन वाली फिंगर्स सर्वाधिक उपयुक्त रहती हैं। 1 हैक्टेयर में लगभग 10 से 12 क्विंटल कन्द की आवश्यकता पड़ती है। कन्द को पतली खुरपी की सहायता से 6x 6 इंच की दूरी पर पंक्तियों में लगाना चाहिए। फिंगर जमीन में 1 इंच से ज्यादा गहरे नहीं होने चाहिए।

क्राउन वाला भाग तथा फिंगर का अंतिम भाग नीचे वह सीधा होना चाहिए। कन्द को लगाने से पहले बीमारी से मुक्त होने के लिए कार्बेन्डाजिम में 2 मिनट तक रखना चाहिए। जिससे यह रोग मुक्त हो जाते हैं। रोपण के उपरांत बारीक़ मिट्टी से कन्द को ढक देना चाहिए। रोपाई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

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खाद एवं उर्वरक:-

अच्छी फसल के लिए ढेंचा या सनई की खाद का प्रयोग बुवाई से पहले करना चाहिए।गोबर की खाद 12- 15 ट्राली प्रति हैक्टेयर के हिसाब से खेत में बिखेर देना चाहिए।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण:-

समय से वर्षा होने की स्थिति में मिट्टी को नम बनाने के लिए सिंचाई करना आवश्यक होता है एवं अधिक वर्षा होने पर जल का निकास करते रहना चाहिए। वर्षा ऋतु के पश्चात खेत में 10- 15 दिनों के अंतराल पर खेती करना चाहिए से मुक्त रखने के लिए समय-समय पर खेत की हल्की निराई करते रहना चाहिए।

बीमारियां:-

इस फसल में कोई विशेष बीमारी नहीं लगती है। अतः किसी प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है।

कंद की खुदाई एवं उपज:-

बुवाई के लगभग 80-90 दिन बाद सूखने लगते हैं। पत्ते सुख जाने पर 1 से 2 माह तक कन्दो को जमीन में ही रहने देते हैं। पानी का हल्का छिड़काव किया जाता है।पकने पर रंग गहरा भूरा हो जाने पर कुदाल से कंधों को निकाला जाता है। एक पौधे से लगभग 10- 12 कंद प्राप्त होते हैं व उसका वजन 10 ग्राम प्रति कंद होता है। बीज वाले कन्दो को अलग कर शेष की छिलाई करना आवश्यक होता है छिलका उतार ने से यह अच्छी तरह सूख जाती है। अच्छी मुसली सूखने पर पूर्ण सफेद होती है। इसी प्रकार एक हेक्टेयर में लगभग 10 क्विंटल सुखी मुसली प्राप्त होती है।

शुद्ध आय:-

सूखी हुई सफेद मूसली 900 से 1200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती हैं। इस प्रकार 1 हैक्टेयर में शुद्ध लाभ लगभग 7 से 8 लाख रूपये प्राप्त होता है।बुवाई हेतु कन्द की की कीमत लगभग ₹100 प्रति किलो होती है।

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