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सफेद शकरकंद की खेती से रावलचंद ने बनाई पहचान

सफेद शकरकंद
Written by Vijay Gaderi

सफेद शकरकंद की खेती से रावलचंद ने बनाई पहचान- हौसले बुलंद हो, और मन में कुछ नया करने की चाह हो तो एक दिन मंजिल जरूर मिलती हैं। ऐसी ही कुछ कहानी हैं, जोधपुर जिले के नोसर गांव के रहने वाले रावल चंद पंचारिया की। पिताजी को बहुत जल्द खो देने के बाद अपनी स्कूली शिक्षा को बीच में ही छोड़कर जोधपुर आना पड़ा। जहां मात्र 1500 रुपए महीने में नौकरी करने लगे। अच्छी नौकरी की तलाश में रावल पंचारिया चेन्नई, मुंबई, हैदराबाद गए, परन्तु महीने के 5000 से ज्यादा नहीं कमा पाए और शहर-शहर भटकने के बाद वापस अपने गांव आ गए।

जैसे की उनके खेत उन्हें वापस बुला रहे थे। गांव में 30 बीघा जमीन थी, जिससे कोई खास आमदनी नहीं थी। रावल पंचारिया ने अपने खेतों को संभाला और दृढ़ निश्चय किया कि वे केवल जैविक खेती करेंगे। लोगों ने भी कहा कि आप खेती में भी फेल हो जाओगे लेकिन धुन के पक्के रावल ने हार नहीं मानी। कड़ी मेहनत से रावल पंचारिया खेतों में जुट गए। काले गेंहू उगाने लगे, चिया सीड लगाए।

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सफेद शकरकंद का पहला नवाचार

जैविक व प्रगतिशील किसान पंचारिया ने बताया कि सात साल पहले सलेक्सन विधि से शकरकंद की नई किस्म तैयार हुई, इसे बाजार में भी अच्छे भाव मिले। पांच साल बाद सलेक्सन विधि से सफेद शकरकंद तैयार हुए राज्य भर में सफेद शकरकंद का पहला नवाचार रहा। सरकार व संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया।  थार मरू शकरकंद तैयार होने के बाद मरू-गुलाबी तैयार करने में दो साल का समय लगा। साल 2022 में मरु गुलाबी पककर तैयार हो गए। शक्करकंद की लम्बाई भी 2.5 फीट है, और वो भी बिना किसी रसायनों के प्रयोग।

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खेतों पर आने लगे विजिटर्स

किसान पंचारिया के कृषि फार्म पर आसपास गांवों के ही नहीं राजस्थान के कई जिलों व बाहरी राज्यों से कई किसान विशेषज्ञ व जानकार आकर जैविक तकनीक के अनुभव साझा करते है। अब उनके खेतों पर आने वाले विजिटर्स की संख्या बढ़ती जा रही है।

सफेद शकरकंद की उपयोगिता

किसान पंचारिया ने बताया कि उनके द्वारा उगायी गई सभी फसलें पूर्णतया जैविक है। शकरकंद में हिमोग्लोबिन प्रचुर मात्रा में है। खाने में स्वादिष्ट ज्यूस व सलाद के रूप में उपयोगी है। चार बीघा में चार रंग की किस्म बीज के लिए बोई है।

इन फसलों में किया नवाचार:-

जैविक तरीके अपनाकर किसान रावलचंद ने सुपर फूड चिया सीड्स, विभिन्न प्रकार के गेहू जैसे लाल देशी, काला, खपली, सोना मोती (पैगंबरी), बैंगनी शकरकंद के बाद थार- मरू किस्म तथा सफेद शकरकंद, लाल देशी शकरशद, सफेद बैंगन, हरे बैंगन आदि वेरायटी तैयार की है।

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गायों के संरक्षण व संवर्द्धन में जुटे

जैविक खेती करने व फसलों में विभिन्न नवाचार को लेकर किसान पंचारिया ने बताया कि वे पांच साल से हर रोज कुछ नया करने की सोच रहे है। जैविक खेती के साथ अब गाय संवर्द्धन केन्द्र के तौर पर विशेषकर थारपारकर गायों के संरक्षण व संवर्द्धन में जुटे है। 8 से 10 देसी नस्ल की गायों से प्रात दूध तथा उनसे बनने वाला घी बाजार में बेच रहे हैं। नेपियर घास, अजोला घास की यूनिट भी लगा रखी है।

सफेद शकरकंद

मरुरत्न पुरस्कार से सम्मानित:-

नौसर मरु पर्यावरण संरक्षण संस्थान (डेको) एवं पीजी महाविद्यालय जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में नौसर के प्रगतिशील जैविक किसान रावलचंद पंचारिया को एस. एन. जोधावत ऑडिटोरियम, महिला पीजी महाविद्यालय जोधपुर में मरु रत्न पुरस्कार-2021 देकर सम्मानित किया गया। परंपरागत पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन, जैविक कृषि एवं पौधरोपण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए यह पुरस्कार दिया गया।

शुद्ध आय

किसान पंचारिया ने बताया कि शकरकंद की फसल में प्रति बीघा औसतन 35 क्विंटल उपज हुई। इसमें लाल शकरकंद मंडी व बाजार में बेची जा रही है। सफेद शकरकंद की आधी उपज बेचने के पश्चात शेष को सलेक्टेड बीज के रूप में तैयार की जाएगी। कुल मिलाकर लेबर चार्ज आदि निकालकर इन 15 बीघा में जैविक तरीके अपनाकर किसान रावलचंद ने सुपर फूड चिया की शुद्ध आय के साथ साढ़े सात लाख होगी।

किसानों को सलाह

शकरकंद की फसल कम पानी में पकती है। बुवाई के बाद पत्तों से जमीन ढक जाती है। इससे नमी बनी रहती है। पश्चिमी राजस्थान में किसान बेर, नींबू गाजर व शकरकद की उन्नत खेती से आमदनी बढ़ाने में कामयाब हो सकते हैं।

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