कृषि में किसान भाई अधिकांशतः डी.ए.पी., यूरिया एवं कभी-कभी म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का उपयोग करते है। सल्फर (Sulphur) जो की मृदा पोषण में चौथा आवश्यक तत्व है, जिस पर किसान प्रायः ध्यान नहीं देते है। फलस्वरूप मृदाओं में इस तत्व की व्यापक कमी देखी जा रही है।
राजस्थान में मृदा नमूनों के परिक्षण अनुसार विभिन्न जिलों की 20-40% मृदाओं में सल्फर की कमी पाई गई है। जिस मृदा में 10 पी.पी.एम. से कम है उसे सल्फर की कमी वाली मृदा कहते है। अतः अधिक उत्पादन के लिए मृदा परीक्षण के बाद सिफारिश अनुसार खाद का उपयोग करें।
सल्फर का महत्व:-
- प्रोटीन के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान।
- पत्तियों में पर्णहरित के निर्माण में सहायक।
- पौधों में एंजाइमों की क्रियाशीलता को बढ़ता है।
- सरसों के तेल में गुल्कोसाइड के निर्माण में सहायक होता है।
- तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा का प्रतिशत बढ़ाता है।
- तम्बाकू, सब्जियों एवं चारे वाली फसलों की गुणवत्ता को बढ़ता है।
- आलू में स्टार्च की मात्रा को बढ़ता है।
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फसलों में सल्फर की कमी के लक्षण:-
बढ़ते हुए पौधों के लक्षणों को देख कर और पौधों के रासायनिक विश्लेषण द्वारा पौधों में सल्फर की मात्रा का पता लगाया जा सकता है। सल्फर की कमी के लक्षण सबसे पहले नई पत्तियों पर दिखाई देते है जो की नत्रजन देने के बाद भी बने रहते है।
- नई पत्तियां पीली पड़ जाती है।
- खाद्यान्न फसलें अपेक्षाकृत देर से पकती है एवं बीज ढंग से परिपक्व नहीं हो पाते है।
- दलहनी फसलों में स्थित गांठें ढंग से विकसित नहीं हो पाती है।
- इसके कारण प्राकृतिक नत्रीकरण प्रक्रिया पर विपरीत असर पड़ता है।
- चारे वाली फसलों में पोषकीय गुणों में कमी आती है।
- कपास में पत्ती वृत लाल रंग का हो जाता है।
- सरसों में पत्तियां कप के आकार की हो जाती है। पत्तियों की निचली सतह एवं तना लाल हो जाता है।
सल्फर की कमी युक्त पौधों में सांद्रता:-
प्रयोग द्धारा यह ज्ञात हुआ है की 45-55 दिन पुरानी धान, गेहूं, मक्का, ज्वार आदि में शुष्क पदार्थ पर आधारित इस तत्व की मात्रा 0.1 से 0.2% पौधों में सल्फर की कमी को इंगित करता है। इसी तरह सल्फर की सांद्रता मूंगफली, सरसों, सोयाबीन आदि में 0.1 से 0.25% इस तत्व की कमी का संकेत है।
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सल्फर के मुख्य स्रोत:-
इस तत्व की आपूर्ति गंधक युक्त उर्वरकों का प्रयोग तालिकानुसार कर की जा सकती है।
उर्वरक सल्फर % | प्रयोग विधि |
अमोनियम 24% | बुवाई से पूर्व अथवा बुवाई के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में सल्फेट तथा खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग के रूप में करें। |
सिंगल सुपर फास्फेट 12% | बुवाई के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में देवें। |
तात्विक 85-100% | बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व नम भूमि जिसमे वायु का अच्छा गन्धक संचार हो। |
पाइराइट 22-24% | ऊसर भूमि के लिए उपयुक्त हैं। भूमि की सतह पर बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व नम भूमि में करना चाहिए। |
जिप्सम 13-18% | जिन फसलों में चुने की आवश्यकता अधिक होती हैं। बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व नम भूमि में प्रयोग करें। |
सल्फर के प्रयोग से उपज में वृद्धि:-
सल्फर के उपयोग से फसलों के उत्पादन में आशातीत वृद्धि पाई गई है।
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फसलों में गन्धक की अनुमोदित मात्रा:-
विभिन्न अनुसंधानों में यह पाया गया है की अधिकांश फसलों के लिए इसकी मात्रा 20-40 किग्रा./हैं. तक अनुमोदित की गई है। खाद्यान फसलों की तुलना में तिलहनी एवं चारा वाली फसलों में इसकी अधिक मात्रा अनुमोदित की गई है। अनुसंधानों के आधार पर गेहूं, धान, दलहनी फसलों में इसके प्रयोग से क्रमश: 25,17,20 एवं 20-30% तक उपज में वृद्धि आंकी गई है।
क्र.सं. | फसल | की.ग्रा. सल्फर/हैक्टेयर |
1. | अनाज वाली फसलें (गेहू, मक्का, धान) | 24- 40kg |
2. | दलहनी फसलें (चना, मसूर, उड़द, मुंग) | 10- 40kg |
3. | तिलहनी फसलें (मुगफली, सरसों, सूरजमुखी) | 20- 50kg |
4. | चारें वाली फसलें | 25- 50kg |
5. | कन्द वाली फसलें (आलू) | 25- 60kg |
सल्फर प्रबंधन में सुझाव:-
- संतुलित उर्वरकों के उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु मृदा की जाँच अवश्य करावें।
- इसकी कमी वाली मृदाओं में उगाई जाने वाली फसलों में सल्फर उपयोग की अनुकूलतम दर 20-40 की.ग्रा./हैक्टेयर होनी चाहिए।
- नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर का उचित अनुपात 4:2:1:1 होना चाहिए।
- सल्फर के स्त्रोत के अनुसार इसका उपयोग फसलों की बुवाई से पूर्व छिटककर या मृदा में मिलाकर किया जाना चाहिए।
- इसकी कमी को पूरा करने के लिए अनेक स्त्रोत उपलब्ध हैं जिनमे सिंगल सुपर फास्फेट एवं जिप्सम बहुप्रचलित सल्फर के स्त्रोत हैं।
सारांश:-
सघन कृषि के फलस्वरूप मृदा में सल्फर की कमी दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। अनुमोदित संतुलित उर्वरक प्रबंधन गन्धक की आपूर्ति के बीना अधूरा हैं अतः इस तत्व की उपेक्षा कतई न करें। फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ाने में इस तत्व का अहम योगदान हैं।
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