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सीड बॉल बिजाई की नई तकनीक

सीड बॉल
Written by Vijay Gaderi

खेती में विभिन्न तरह के प्रयोग और नवाचार हो रहे हैं। इसी कड़ी में सीड-बॉल जैसी तकनीक भी काम में ली जाने लगी है। बड़े खेतों के लिए उपयोगी तकनीक से खेत में जमीन खोदकर बुआई करने के स्थान पर दूर से बॉल को फेंककर भी बीज डाले जा सकते हैं। अमेरिका में इस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है और बड़े खेतों के साथ वनों में खूबसूरत फूलों वाले पौधों को लगाने के लिए इस तकनीक को काम में लिया जा रहा है।

सीड बॉल

व्यक्तिगत खेत में घूमकर बॉल डालने के अलावा गिलौल या हेलीकॉप्टर से भी इसे छिड़काव की तर्ज डाला जा सकता है। बारिश के मौसम से ठीक पहले डालने से ये सीड बॉल मिट्टी के साथ घुल मिल जाते हैं और इसमें अंकुरण होने लगता है। कुछ समय बाद ये पौध या वृक्ष का रुप भी ले लेते हैं।

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कैसे तैयार करते हैं सीड बॉल:-

सीड बॉल तैयार करने के लिए काली और चिकनी मिट्टी काम में लिया जा सकता है। इसमें कोलिनाइट, स्मेकटाइट या बेंटोनाइट को मिलाया जा सकता है। इसके अलावा कंपोस्ट खाद को इसमें मिलाया जा सकता है। इसके बाद पोषक तत्वों के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होगी।

इसमें जरूरत के हिसाब से एक या अधिक बीज डालकर इसे लड्डू की तरह गोल बनाकर सूखने के लिए रख सकते हैं। सूखने पर ये सीड बॉल बन जाती है।

इसमें एक बार काम में ली गई मिट्टी को दोबारा काम में नहीं लेना चाहिए। इसमें मिट्टी का रंग कुछ भी हो सकता है वैसे लाल मिट्टी में रेड (ऑक्सीडाइज्ड) आयरन ज्यादा होता है। जरूरत के हिसाब से बारिश के मौसम या सर्दियों में भी इसे खेत या जंगल में वनारोपण के लिए डाल सकते हैं।

एकवेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार इस बॉल को हाथों से खेत में फेंककर बिजाई की जा सकती हैं। बड़े जंगलों में इसका इस्तेमाल करना है, तो हेलीकॉप्टर या प्लेन से भी छिड़काव किया जा सकता है।

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उन्नत किस्म के बीज:-

सीड बॉल तैयार करने के लिए उन्नत किस्म के बीजों का ही इस्तेमाल करना चाहिए। स्थानीय बीजों को भी काम में लिया जा सकता है, लेकिन वे जीवाणु रहित और रोगरोधक होने चाहिए, ताकि कोई शिकायत ना रहे।

फुलवारी के लिए उपयोगी:-

जंगल को सुनहरा बनाने और उसमें रंगरंगीले फूलों की फुलवारी बनाने के लिए इस्तेमाल सीड बॉल काफी उपयोगी साबित हुआ है। कुछ स्थानों पर गुलेल से भी इस सीड बॉल को फेंक कर प्रयोग किया गया है, जो सही साबित हुआ है।

अमेरिका के जंगलों में फूलों वाले पौधे लगाने के लिए इस विधि का सफल प्रयोग किया जा चुका है। भारत में इसका प्रायोगिक तौर पर कुछ स्थानों पर उपयोग शुरू हुआ है।

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