सीताफल अत्यन्त पौष्टिक तथा स्वादिष्ट फल है। सीताफल के पौधों में सूखा सहन करने की अधिक क्षमता होती है। राजस्थान में चित्तौड़गढ़, उदयपुर, राजसमन्द, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ जिलों में काफी मात्रा में पाया जाता है।
जलवायु एवं भूमि:-
इसके लिए गर्म एवं सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पाले वाले क्षेत्र में इसकी फसल को हानि होती है। इसकी खेती के लिए 50-75 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र उपयुक्त होता है। इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती है लेकिन अच्छी जल निकास वाली दोमट भूमि इसकी खेती के लिये उत्तम मानी जाती है।
सीताफल की उन्नत किस्में:-
स्थानीय किस्मों के अतिरिक्त निम्नलिखित उन्नत किस्में है।
बालानगर:-
इस किस्म के हृदय आकार के फल जो स्थानिय किस्मों की तुलना में बड़े व ज्यादा उपज देते हैं प्रति वृक्ष 8 से 10 किग्रा. फल (औसत फल वजन 300 ग्राम) प्राप्त होता है। जिनमें प्रति फल 18 से 25 बीज तक होते हैं।
अर्का सहन:-
संकर किस्म जिसके फल हल्के हरे रंग लिए बड़े आकार के होते हैं। प्रति वृक्ष 12 से 15 किग्रा. फल (औसत फल वजन 350 ग्राम) प्राप्त होते हैं तथा हस्त प्ररागण द्वारा उपज व फल गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है। प्रति फल बीज 12 से 15 तक होते हैं।
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सीताफल के पौधे लगाने की विधि:-
पौधे लगाने के लिए उपयुक्त समय जुलाई माह होता है। इसके पौधे 55 मीटर की दूरी पर लगाये जाते है। पेड़ लगाने से पहले 60X60X60 सेमी. आकार के गड्डे खोद लिये जाते है। गड्डों में रोपाई में पहले 10 किलो गोबर की खाद मिलाते है। फिर पौधों की रोपाई करते है।
खाद एवं उर्वरक:-
अच्छी वृद्धि एवं उपज के लिये निम्न मात्रा में खाद एवं उर्वरक देवें।
आयु (वर्षों में) | खाद व उर्वरक मात्रा प्रति पौधा | |||
गोबर की खाद (किलो) | यूरिया (ग्राम) | सुपर फॉस्फेट (ग्राम) | म्यूरेट ऑफ पोटाश(ग्राम) | |
1-3 | 20 | 50 | 200 | 50 |
4-7 | 20 | 75 | 300 | 75 |
8 वर्ष से ऊपर | 20 | 100 | 400 | 100 |
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सिंचाई एवं अन्तराशस्य:-
सीताफल के छोटे पौधों को गर्मियों में 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिये। नियमित सिंचाई देने पर अप्रैल मई माह में पुष्पन से जुलाई अगस्त में फल आते हैं। प्रारम्भ के तीन वर्षों तक बाग में कुष्माण्ड कुल की सब्जियों के अलावा सभी प्रकार की सब्जियां जैसे ग्वार, मटर, चवला, मिर्च, बैंगन आदि ली जा सकती है
कटाई-छँटाई:-
सीताफल की पुरानी सूखी एवं घनी शाखाओं की काट-छाँट कर निकाल देना चाहिये । दिसम्बर-जनवरी माह में तथा बड़े वृक्षों को मई-जून में पानी रोकने से जुलाई में पुष्पन आता है जो अक्टूबर माह में फलन में आता है।
कीट प्रबंध:-
स्केल कीट :-
यह एक छोटे एवं चपटे आकार का कीट होता है तथा वृक्ष की कोमल टहनियों एवं फूलो पर एकत्रित होकर रस चूसता है। नियंत्रण हेतु पेड़ के आसपास की जगह को साफ रखें तथा अगस्त सितम्बर तक थांवले की मिट्टी को पलटते रहे। क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण अथवा मिथाइल पेराथियॉन 2 प्रतिशत चूर्ण 50 से 100 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से थांवले में 10-25 सेमी की गहराई से मिलावें। पेड़ों पर इसके नियंत्रण हेतु मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल या डाईमिथोएट 10 ई.सी. 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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फूल एवं फल आने का समय:-
मार्च से जुलाई तक फूल आते है। फूल लगने के लगभग चार माह बाद फल पक कर तैयार हो जाते है। फलों का पकना तब पता चलता है जब फलों की आखें खुल जाती है तथा पीले रंग की हो जाती है। फल इसी अवस्था में तोड़ लेना चाहियें। इसकों तोड़ने के तीन चार दिन बाद फल पक जाते है।
तुड़ाई एवं उपज:-
शरीफा के पौधे तीन साल बाद फल देने लगते है। इस समय लगभग 5 किलो फल प्रति पौधा मिल जाता है। 5 साल बाद 12 से किलो फल प्रति पौधा प्राप्त होता है।
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